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भगवान बनने के गुण मनुष्य में भी मौजूद हैं : आचार्य श्री विमर्श सागर

 बकस्वाहा / - सर्वज्ञ प्रभु की वाणी में सबका हित निहित है । आप प्रतिदिन मंदिर आते हैं आपका मंदिर आने का क्या कारण है ? मंदिर आने का हमारा एक ही प्रयोजन होना चाहिए कि मुझे भी भगवान बनना है । मंदिर में भगवान के दर्शन करते हुए हमें यह विचार करना चाहिए कि भगवान भी पूर्व अवस्था में मेरे ही समान थे उन्होंने अपनी आत्मा से अवगुणों को हटाकर आत्मा के स्वभाव रुप गुणों को प्राप्त कर लिया है। मेरे अंदर भी भगवान के समान वे सभी गुण मौजूद हैं , अब मैं भी भगवान की तरह पुरुषार्थ करके भगवान की तरह अनंत गुण वैभव को प्राप्त करूंगा।

       उपरोक्त उदगार बकस्वाहा के श्री पारसनाथ दिग. जैन मंदिर परिसर में द्वितीय दिवस आयोजित धर्मसभा में ' जीवन है पानी की बूंद ' महाकाव्य के मूल रचयिता, बुंदेलखण्ड गौरव, भावलिंगी संत, राष्ट्रयोगी आचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज ने अपने प्रवचन मे कहें।  

        आचार्य श्री ने कहा कि यदि हमें धर्म प्राप्त करना है तो हमें अधर्म का भी पता होना चाहिए । जब हमें यह पता होगा कि क्रोध अधर्म है तब हम उसे त्याग कर क्षमा धर्म को प्राप्त करने का पुरुषार्थ कर सकेंगे । जब हमें अपने वस्त्र की मलिनता का भान होगा तब ही हम उसे साफ करने व धोने का प्रयास पुरुषार्थ करेंगे । हम अधर्म को जानकर उसे त्याग कर अपनी आत्मा के स्वभाव रूप धर्म को प्राप्त करें ।

         बुधवार को द्वितीय दिवस आचार्य श्री विमर्श सागर जी महाराज का ससंघ 25 पिच्छीधारी से अधिक साधु व आर्यिका माताजी सहित विशाल चतुर्विध संघ की आहार चर्या भी सम्पन्न हुई। दोपहर उपरांत आचार्यश्री  का संघ सहित हीरापुर की ओर बिहार हुआ, रात्रि विश्राम गडोही मे होगा और गुरुवार की आहारचर्या हीरापुर ग्राम मे होगी।


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