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सत्संग का जीवन से संबंध नहीं तो वह कथा नहीं व्यथा है रामचरितमानस से उच्च कोटि का समाजशास्त्र दुनिया में कहीं नहीं : संत श्री मैथिलीशरण भाई जी

 छतरपुर,जवाहर रोड स्थित बुंदेलखंड गैरेज में जय नारायण अग्रवाल एवं परिवार द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय रामकथा का शुभारंभ करते हुए संत श्री मैथिलीशरण भाई जी ने कहा कि रामचरितमानस से उच्च कोटि का समाजशास्त्र दुनिया में कहीं और देखने नहीं मिलेगा, रामचरितमानस पर टीका टिप्पणी करने वाले तथाकथित ज्ञानियों को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि मात्र 5-7 चौपाइयों को पढ़ लेने से समूची रामायण की व्याख्या नहीं की जा सकती है, यह उसी तरह से होगा कि मात्र  कुछ अनुच्छेद पढ़ लेने के बाद कोई कानून की समग्र व्याख्या करने लगे, रामचरित मानस एक ऐसा दिव्य ग्रंथ है जिसमें जीवन के सारे सूत्र समाहित है उन्होंने कहा कि सत्संग जीवन से जुड़ा होना चाहिए अन्यथा वह कथा न होकर व्यथा का गुणगान मात्र होगा, सत्संग हमारे जीवन का अनावरण करता है जो हमारे पास है उस पर से माया का पर्दा हटता है और इसी अनावरण को हटाने के लिए पुराणों की रचना की गई सभी पुराणों शास्त्रों और ग्रंथों का सार रामायण में समाहित है, मानस बच्चों से लेकर युवा गृहस्थ वानप्रस्थ सन्यासी सभी का ग्रंथ है, श्री मैथिलीशरण भाई जी ने गीता प्रेस गोरखपुर में अपने प्रवचन के दौरान हुए अनुभव को साझा करते हुए कहा कि उन्हें बताया गया कि गीता प्रेस द्वारा सबसे अधिक हनुमान चालीसा का प्रकाशन होता है जबकि सबसे कम महाभारत का, उन्होंने कहा कि महाभारत भी पढ़ने योग्य ग्रंथ है उसे ध्यानपूर्वक पढ़ने से जीवन में महाभारत कम हो जाएगी, रामायण में जहां सभी की निष्ठा का आधार भगवान राम है पर महाभारत में सब की निष्ठा अलग अलग है और यह विभाजन ही हमारे दुख का कारण है,

प्रकृति में विभिन्नता भेदभाव के लिए नहीं अपितु परस्पर पूरकता के लिए है
 उन्होंने सभी को आगाह किया कि आप कब तक बटे रहोगे, विभाजन की भी क्या कोई सीमा है? प्रकृति में विभिन्नता भेदभाव के लिए नहीं अपितु परस्पर पूरकता के लिए है यदि आपको भोजन चाहिए तो फिर उसे पैदा करने वाला भी कोई चाहिए, मानव शरीर भी आराम के लिए नहीं पुरुषार्थ के लिए बना है यदि हमें कुछ खर्च करना है तो फिर उसके लिए अर्जन भी करना होगा,
श्री रामचरितमानस में लक्ष्मण जी महाराज के चरित्र की व्याख्या करते हुए संत मैथिलीशरण जी ने कहा कि उनकी निष्ठा का आधार सिर्फ भगवान राम हैं इसी तरह अयोध्या में सभी की निष्ठा का आधार सिर्फ और सिर्फ राम है, और इसी से रामराज्य बनता है, रामचरितमानस की इस चौपाई को पढ़कर संसार में ऐसा कौन सा व्यक्ति है जिसे प्रसन्नता नहीं होगी,
धन्य जनमु जगतीतल तासू।
पितहि प्रमोदु चरित सुनि जासू॥
संसार में जन्म की धन्यता इससे अधिक क्या हो सकती है पुत्र का चरित्र पिता को शीतलता और आनंद देने वाला हो,जीवन में सुख शांति आनंद चाहते हैं तो राम कथा को अपने बच्चों तक ले जाइए, माता सुमित्रा लक्ष्मण जी को भगवान राम के साथ वन जाने को इस तरह से प्रोत्साहित कर रही हैं
पुत्रवती जुबती जग सोई। रघुपति भगतु जासु सुतु होई॥
नतरु बाँझ भलि बादि बिआनी। राम बिमुख सुत तें हित जानी॥
सुमित्रा जी ने तो यहां तक कह दिया कि
तुम्हरेहिं भाग रामु बन जाहीं।
दूसर हेतु तात कछु नाही||
इस प्रसंग को मात्र पुत्र और मां के संदर्भ रूप मात्र में मत देखिए अपितु सामाजिक संदर्भ और खुद के संदर्भ में देखिए
संत मैथिलीशरण भाई जी ने कहा कि भगवान राम समुद्र की तरह सबके अच्छे और बुरे दोनों गुणों को स्वीकार कर लेते हैं सुमति होती है तो ह्रदय गहरा होता है समुद्र का खारापन उसका अपना दोष नहीं है अपितु सारे संसार की गंदगी वहकर समुद्र में जाती है और समुद्र उसे स्वीकार कर रहा है



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