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दी पहचान एकलव्य को गुरु द्रोणाचार्य ने -मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज

 कुंडलपुर। कुंडलपुर में विराजमान मुनि श्री निरंजनसागर जी महाराज ने बताया।इतिहास को देखने पर कई बार हम इतिहास के सही पहलू की ओर दृष्टिपात नहीं कर पाते और इस कारण हम स्वयं को ऐसी धारणाओं से ग्रसित कर लेते हैं जिसका कोई आधार नहीं होता। गुरु शिष्य परंपरा में आज हम सबसे प्रसिद्ध युगल की चर्चा करने वाले हैं। वह ऐतिहासिक जोड़ी है एकलव्य और द्रोणाचार्य की। गुरु द्रोणाचार्य ने जब देखा कि मेरा एक ऐसा भी शिष्य है जो मेरी परोक्ष में इतने समर्पण भाव के साथ विनय करता है। प्रत्यक्ष विनय से भी महत्वपूर्ण परोक्ष विनय कही जाती है ।  मुझे भगवान की तरह पूजता है। ऐसे शिष्य को पाकर मैं धन्य धन्य हो गया हूं। ऐसा शिष्य ना भूतो ना भविष्यति  । इसके समर्पण को इसकी विनय को इतिहास बनाना है। इतिहास जब भी लिखा जाता है राजपुत्रों का ही लिखा जाता है। एक सामान्य व्यक्ति का इतिहास देखने को नहीं मिलता है।पूरी दुनिया सिर्फ एक ही पहलू को लेकर चर्चा करती है कि द्रोणाचार्य ने अर्जुन को दिए वचन की पूर्ति के लिए एकलव्य से अंगूठा मांगा ।परंतु थोड़ा सा चिंतन करने पर आप भी उस महान रहस्य तक पहुंच सकते हैं। एकलव्य जब इतना समर्पित व्यक्तित्व था द्रोणाचार्य चाहते तो मुख से इतना कह देते कि एकलव्य तुम एक काम करना आज अभी से धनुर्विद्या का अभ्यास और प्रयोग मत करना । पांडव पुराण जब पढ़ा तो उसमें आचार्य स्पष्ट लिखते हैं ।उस मार्मिक प्रसंग को जब द्रोणाचार्य ने एकलव्य से दाहिने हाथ का अंगूठा मांगा तब एकलव्य ने बड़े भक्ति भाव से कहा जिन चरणों में शीश समर्पित होना था वहां आपने मात्र अंगूठा ही मांगा। तुरंत निकाल कर काट दिया ।द्रोणाचार्य  ने एकलव्य से दक्षिणा के रूप में मांगकर उस सामान्य व्यक्ति को भी राजकुमारों के सामने शिष्यत्व दे दिया ।कौरव और पांडवों को समर्पण की जीवंत शिक्षा दे दी। समर्पण किसे कहते हैं यह संदेश पूरे इतिहास में अगर है तो वह एकलव्य और द्रोणाचार्य की वजह से है ।आज अर्जुन पुरस्कार है तो एकलव्य पुरस्कार भी है आपके दमोह में प्रसिद्ध एकलव्य विश्वविद्यालय जिसका सफल संचालन  सुधा जी मलैया करती हैं ।आज इतिहास एकलव्य को जान रहा है मान रहा है ।परंतु क्या कोई द्रोणाचार्य की समझ को  समझ पा रहा है। द्रोणाचार्य जानते थे यह भील है यूं ही वन में इसका जीवन निकल जाएगा कोई भी इसके विनय पूर्वक समर्पण के इतिहास को नहीं जान पाएगा। गुरु द्रोणाचार्य स्वयं को तो बदनाम कर गए एकलव्य का इतिहास में अमिट नाम कर गए। गुरु ही एकलव्य का नाम इतिहास में कर गए ।गुरू को सभी मानते हैं पर विरले ही गुरु की आज्ञा को मान पाते हैं। जो गुरु की आज्ञा को जान जाते हैं वे एकलव्य की तरह जग में पूजे जाते हैं ।गुरु को समझ पाना खेल नहीं होता। गुरु जैसा दुनिया में कोई नहीं होता।


🙏जयकुमार जलज हटा/राजेश रागी बकस्वाहा


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