11 फरवरी, 2023 पुण्यतिथि पर विशेष)। *।। भारत के भविष्य के दूरद्रष्टा थे पं. दीनदयाल उपाध्याय ।। *
11 फरवरी 1968, भारत के हर उस नागरिक के लिए दुखदायी दिवस है, जो अपने राष्ट्र, सनातन संस्कृति और व्यक्तिगत जीवन में शुचिता का समर्थक हो। कारण, यही वह मनहूस दिन था, जिस दिन हमने दूरदर्शी सोच,समदर्शी सिद्धांत, उत्कृष्ट चिंतन और राष्ट्रके लिए सर्वस्व समर्पण करनेवाले विराट व्यक्तित्व पंडित दीनदयाल उपाध्याय को खोया था। अपने आदर्शो एवं विचारों के कारण भारत के लोगों के दिल-दिमाग में स्थान बनानेवाले और एकात्म मानववाद की विचारधारा देनेवाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मजबूत करने वाले तथा जनसंघ के संस्थापकों में शामिल पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारत माता के सच्चे सेवक के रूप में सदैव देशवासियों के मानस पटल पर रहेंगे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब देश की राजनीति प्रारंभ हुई तो न तो अपनी कोई दिशा थी और न ही कोई सिद्धांत, वैसे समय में उन्होंने देश को एकात्म मानववाद दर्शन दिया। इस एकात्म मानववाद का मूल सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है, जो समाजवाद और व्यक्तिवाद से अलग सोचने की आजादी देता है। एकात्म मानववाद में देश के लिए एक वर्गहीन, जाति विहीन तथा संघर्ष मुक्त सामाजिक व्यवस्था की बात कही गई, जो साम्यवाद से पूरी तरह अलग है। इस विचारधारा को विशुद्ध भारतीय चिंतन पर आधारित विचार के रूप में परिभाषित किया गया है। पंडित जी का मानना था कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तरीके से भारतीय संस्कृति का एकीकरण होना चाहिए। स्वतंत्रता के बाद यह महसूस किया गया कि भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में होने के बावजूद घुटन सी महसूस कर रहा है। इसका कारण यह है कि पश्चिमी विचारधाराओं पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद और व्यक्तिवाद के कारण मौलिक भारतीय विचारधारा में कमी के साथ ही देश के विकास में बाधा आ रही है।
राष्ट्र निर्माण व जनसेवा में उनकी तल्लीनता के कारण पंडित जी का अपना कोई व्यक्तिगत जीवन नहीं रहा। यही कारण रहा कि उनके विचारों ने उन्हें अन्य लोगों से अलग साबित कर दिया। दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के राष्ट्र जीवन दर्शन के निर्माता माने जाते हैं। उनका उद्देश्य स्वतंत्रता की पुनर्रचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व-दृष्टि प्रदान करना था।उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए, भारत को एकात्म मानववाद की विचारधारा दी। उनका विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख होना चाहिए। उनका कहना था कि “भारतमें रहने वाला, इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा। ” किसी भी व्यक्ति या समाज के गुणात्मक उत्थान के लिए आर्थिक और सामाजिक पक्ष ही नहीं उसका सर्वांगीण विकास अनिवार्य है। पं. दीनदयाल उपाध्याय जी का मत था कि राष्ट्र की निर्धनता और अशिक्षा को दूर किए बिना गुणात्मक उन्नति संभव नहीं है। एकात्ममानववाद के तहत अंत्योदय के वैचारिक प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन मात्र लेखन व उनके चिंतन तक सीमित नहीं था अपितु संगठन के कार्य से वह जब भी प्रवास के लिए जाते तो वरीयता के आधार पर समाज में अंतिम पायदान पर खड़े परिवारों में ही ठहरते थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने व्यक्तिगत व सामुदायिक जीवन को गुणवत्ता प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त किया, जिसे वर्तमान समय में समाज में जीवन को भी एकात्ममानववाद से निकले मूल्यों व संस्कारों को आत्मसात करना होगा।
भारत की राजनीति में जब महज वंश एवं परिवार के आधार पर राजनीतिक दलों ने राजनीति की तो उसमें जनहित या जनकल्याण को कोई स्थान नहीं मिला। वहीं एकात्ममानववाद को मूल केंद्र में रखते हुए वर्तमान में नरेंद्र मोदी सरकार ने गरीब से गरीब व्यक्ति के उत्थान एवं विकास के संकल्प के साथ समाज के कमजोर और गरीब वर्ग के उत्थान के लिए कार्य कर रही है, तो देश की तस्वीर और तकदीर बदलने लगी है ।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार ने गरीब-कल्याण के अपने लक्ष्य से पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के दर्शन और अंत्योदय की विचारधारा को साकार करके दिखाया है। “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास” के लिए केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है। नरेंद्र मोदी सरकार का सीधा असर है कि अंत्योदय योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ गरीब, वंचित, शोषित को मिल रहा हैं। महामारी हो या युद्ध, वैश्विक तनाव हो या संसार पर आया कोरोना संकट हो तो पूरा विश्व भारत से उम्मीद कर रहा है। इसके पीछे निश्चित रूप से मोदी सरकार की एकात्म मानववाद पर आधारित नीतियां ही हैं।
पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन के प्रत्येक पक्ष फिर चाहे वह विचारक, संपादक, दार्शनिक अथवा अर्थशास्त्री का रहा हो, हर क्षेत्र में उन्होंने सहयोग,समन्वय व सह-अस्तित्व को प्रमुख स्थान दिया है । अंत्योदय के जनक पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने वंचित वर्ग के हित संवर्धन के लिए साझा सामाजिक दायित्वों को प्राथमिकता देने के लिए सम्यक दृष्टि भी प्रदान की।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म 25 सितम्बर 1916 उत्तरप्रदेश के मथुरा जिला के नगला चंद्रभान में हुआ था। एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लेने वाले दीनदयाल उपाध्याय जी ने विपत्तियों को करीब से देखा था । ढ़ाई साल की उम्र में पिता को और आठ साल की उम्र में माता को खोने के बाद उनका पालन-पोषण करने वाले नाना भी 10 वर्ष की आयु में ही छोड़कर चले गए। अल्पायु में ही छोटे भाई को सम्भालने की भी जिम्मेदारी आ गयी। कोई भी आदमी इन विपत्तियों के सामने हार मान लेता,लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आगे बढ़ते रहे।
अद्वितीय प्रतिभा संपन्न पंडित जी कानपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डॉ.हेडगेवार एवं भाऊराव देवरस से संपर्क में आने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचार धारा से प्रभावित होकर संघ से जुड़ गए। अविवाहित रहते हुए जीविकोपार्जन की चिंता न करते हुए अपने जीवन को देश और समाज के लिए समर्पित कर दिया। राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और स्वदेश के यशस्वी संपादक के रूप में उन्होंने राष्ट्रवादी स्वर को मुखर किया। इस प्रकार वे पत्रकार दीनदयाल, अर्थशास्त्री दीनदयाल व दीनहीनों के दीनदयाल बन गये।
उनकी राजनीतिक समझ और अद्भुत संगठन क्षमता के कारण 1951 में डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ के वे पहले महामंत्री बनाए गए। 1967 में जनसंघ के अध्यक्ष बने, लेकिन महज 44 दिनों तक ही कार्य कर पाए। उनकी प्रतिभा और कार्यक्षमता को देखकर डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कहना पड़ा कि यदि मुझे ऐसे दो दीनदयाल मिल जाएं तो मैं देश का राजनीतिक मानचित्र बदल दूंगा। देश को दिशा देने वाले ऐसे महामानव की निर्मम हत्या 11 फरवरी 1968 को कर दी गई थी तो पूरा देश सन्न हो गया था। नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने उनकी याद में मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के नाम पर करके उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी । अंतिम पंक्ति पर खड़े लोगों के लिए रेलवे में सर्वसुविधायुक्त दीनदयालु कोच लगाकर गरीबों की यात्रा सुगम बना दी। उनकी पुण्यतिथि पर ऐसे महामानव को नमन।
(डॉ. राकेश मिश्र)
कार्यकारीसचिव, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी
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