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हर घर घर चरखा छाएगा इंडिया भारत कहलाएगा : मुनि श्री निरंजन सागर

 कुण्डलपुर । सुप्रसिद्ध जैन सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर में संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के प्रभावक शिष्य मुनि श्री निरंजन सागर जी महाराज ने महात्मा गांधीजी की पुण्यतिथि पर प्रवचन देते हुए कहा कि भारत आज तक अपने अस्तित्व को नहीं पा पाया है , किसी भी देश की पहचान का प्रमुख अंग उसका नाम है ,उसकी स्वयं की भाषा है, उसकी स्वयं की आहार शैली, उसकी अपनी वेशभूषा है ,उसकी अपनी शिक्षा पद्धति है ,उसकी अपनी औषध विद्या है , परंतु आज हम सभी आवश्यकताओं पर विदेशों पर निर्भर होते जा रहे,  विदेशी वस्तु की गुणवत्ता उसके गुण धर्म आदि का विचार ना करते हुए एक आकर्षण वश उस ओर ध्यान न देकर एक अंधी दौड़ में दौड़े जा रहे हैं । गांधी जी ने जो स्वप्न देखा था वह भारत प्रति भारत का स्वप्न है ।घर हाथ हथकरघा और भारतीय पद्धति का रोजगार । उस के माध्यम से सत्य और अहिंसा की ऐसी नींव रखी जानी है जिसे कोई भी हिला ना सके। आज का नवयुवक विदेशी जीवन शैली को अपनाने की होड़ में दौड़ रहा है ।यह अंत हीन दौड हमें हमारे संस्कारों से, हमारे देश से, हमारे धर्म से ,कोसों दूर करती जा रही है। आज का नवयुवक जो देश का भविष्य कहलाता है, स्वयं अपने भविष्य के बारे में चिंतन से रहित होकर मात्र वर्तमान की चकाचौंध भरी ऐसी जीवनशैली जी रहा है जिसका कोई ओर छोर नहीं है। उद्देश्य से भटका हुआ नवयुवक वर्ग ही भारत की वर्तमान की सबसे बड़ी समस्या है ।जिससे मात्र गांधी जी के विचारों को अपनाकर ही हम इस विकट समस्या से मुक्ति पा सकते हैं। गांधीजी जैसा व्यक्तित्व कभी मरण को प्राप्त नहीं हो सकता है। गांधी जी आज भी भारत की आत्मा में बसे हुए हैं। वर्तमान में राष्ट्रहित चिंतक आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महामुनिराज ने इंडिया नहीं भारत बोलो ,स्वदेशी रोजगार ,भारतीय भाषा, भारतीय वस्त्र शैली, भारतीय औषध विज्ञान ,भारतीय शिक्षा पद्धति, भारतीय कृषि का पुनरुत्थान आदि विषयों को अपने उपदेश का विषय बनाया और उनके प्रभावक राष्ट्र चिंतन से प्रभावित होकर एक बड़ा नवयुवक वर्ग उनके उपदेश को पूर्ण करने तत्पर हुआ ।जिसका परिणाम है पूर्णायु औषधालय ,प्रतिभास्थली विद्यापीठ, भाग्योदय चिकित्सालय, दयोदय गौशाला, श्रमदान हथकरघा केंद्र, शांति धारा दुग्ध योजना आदि प्रकल्प आज भारतीयता को जीवंत कर हमें पूर्ण स्वदेशीयता के साथ साथ सत्य और अहिंसा को पुनर्स्थापना करने में लगे हुए हैं। आज ऐसा लगता है वह दिन दूर नहीं जब गांधी जी का भारत अपनी खोई हुई पहचान पुनः पा जाएगा।  (राजेश रागी/रत्नेश जैन बकस्वाहा)


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