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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया बायोवेपंस की होड से जीवन के अस्तित्व पर लगता ग्रहण

   नये साल के आगमन पर देश के विभिन्न पर्यटन तथा धार्मिक स्थलों पर लोगों ने दिल खोलकर जश्न मनाया। होटल, रेस्टोरेन्ट, फार्म हाउस, क्रूज, ऐतिहासिक इमारतों के परिसर, प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर स्थान, आस्था के केन्द्रों पर पुराने साल की आखिरी शाम से ही लोगों की भीड जमा होने लगी थी। हर ओर उत्साह का माहौल रहा। कोरोना का डर ढिढुरती ठंड में जम गया था और लोगों के दिलों की गर्मजोशी परवान चढ रही थी। बीते साल की खट्टी-मीठी यादों का कारवां कहने-सुनने की राह पर निकल चुका था। भीड का अंग बने ज्यादातर लोग कोरोना के लिए चीन को उत्तरदायी मानते, विश्व स्वास्थ्य संगठन के पक्षपातपूर्ण रवैये की आलोचना करते और आने वाले समय में जैविक युध्द की संभावनायें व्यक्त करते रहे। वहीं दूसरी ओर दवा माफियों, चिकित्सा के ठेकेदारों और चन्द उत्तरदायी अधिकारियों की तिकडी के व्यक्तिगत लाभ की स्थिति को रेखांकित करते हुये उन्हें षडयंत्रकारी तक निरूपित करने वालों की कमी नहीं थी। चर्चाओं का बाजार गर्म होता रहा। लोगों को देशवासियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पूरा भरोसा है। उनके विश्वास की मानें तो दुनिया भर में कोहराम मचाने वाला चीनी वायरस भारत में आकर दम तोड देगा। आमजन की सोच के सकारात्मक स्वरूप से आत्मविश्वास का ग्राफ निरंतर बढता चला गया। वहीं भारत की राह पर चलते हुए अमेरिका, ताइवान, साउथ कोरिया, जापान, इजराइल, स्पेन, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस ने भी चीन से आने वालों पर प्रतिबन्धात्मक कार्यवाही की घोषणा कर दी। अपने आंकडों से लेकर वास्तविक स्थिति को छुपाने वाले षडयंत्रकारी चीन का पक्षधर रहे विश्व स्वास्थ्य संगठन को मजबूरन कठोरता का संकेत देना पडा। आगामी 3 जनवरी को आयोजित बैठक में चीन को अपने जीनोम सीक्वेंसिंग के डेटा प्रस्तुत करने के आदेश जारी हुए। ड्रैगन के लाल आंकडों में कितनी सच्चाई होगी, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। क्रास मानीटरिंग के बिना चीन की धरातली स्थिति की वास्तविकता कभी सामने नहीं आ सकती और चीन क्रास मानीटरिंग के लिये कभी तैयार नहीं होगा। चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान स्थित वुहान इंस्टीट्यूट आफ वायरोलाजी लैब हमेशा से ही कोरोना की जन्म स्थली के रूप चर्चित रहा है। इस लैब में काम कम चुके अमेरिका के वैज्ञानिक एड्रंयू हफ ने अपनी पुस्तक द ट्रुथ आबाउट वुहान में स्पष्ट किया है कि कोरोना तथा उससे विकसित अन्य वायरस वुहान लैब में मानव निर्मित हैं। वायरस की सुरक्षा के पर्याप्त उपाय न होने से इसका रिसाव हो गया और फिर इसे रोका नहीं जा सका। यह लैब वुहान शहर से १०.४ किलोमीटर दूर है जहां पहुचने के लिए लगभग 21 मिनिट का समय लगता है। पहाडों की तलहटी पर सन् 1956 में स्थापित किये गये इस इंस्टीट्यूट का विस्तार काफी बडे क्षेत्र में है जहां पर अनेक भवनों में विभिन्न विभाग काम करते हैं। सन् 2003 में इस इंस्टीट्यूट को बायोसेफ लैब में परिवर्तित करने का प्रस्ताव रखा गया। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लक्ष्यों को साधने के लिए 44 मिलियन डालर के भारी भरकम बजट से सन् 2018 से यहां रिसर्च आपरेशंस शुरू हो गये। यह स्थान भूकम्प, बाढ तथा प्राकृतिक आपदाओं की संभावनाओं से परे है। पूरा इलाका अत्याधिक संवेदनशील होने के कारण अत्याधुनिक घातक हथियारों से लैस सेना के सुरक्षा कवच में रहता है। कहा जा रहा है कि यहां चमगादडों में पाये जाने वाले वायरसों पर लैब का गेन आफ फंक्शन खतरों से भरा पडा है। सन् 2020 में अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया सहित अनेक देशों ने कोरोना वायरस को फैलाने के लिए चीन को उत्तरदायी ठहराया था। इस लैब को ४ कैटेगरी में बांटा गया है। पहली कैटेगरी में काम करने वालों को फेस शील्ड रखना पडता है। दूसरी कैटेगरी को बीएसएल २ कहा जाता है जो पहली की तुलना में ज्यादा खतरनाक होता है। यहां फेस के साथ साथ बाडी शील्ड करना पडती है। तीसरी कैटेगरी में  फेस, बाडी और शू कवर भी पहना अनिवार्य होता है और चौथी कैटेगरी सबसे घातक है जहां डेल्टा सूट पहना पडता है। इस सूट के कारण शरीर जल्दी ही डिहाइड्रेड हो जाता है। यहां पर काम करने वालों को कैमिकल वाथ लेना अनिवार्य है। माइक्रो-केम-प्लस डिटर्जेंट का पूरे शरीर पर छिडकाव भी करना पडता है। इस पूरी प्रक्रिया में 6 मिनिट लगते हैं। तब तक स्पेशल बाथरूम का दरवाजा शील्ड रहता है। इस लैब पर हमेशा ही आरोपों के बादल मडराते रहे परन्तु चीन पर कोई प्रभाव नहीं पडा। अतीत गवाह है कि दुनिया के चिल्लाने के बाद भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने न तो अपनी रीति ही बदली और न ही संगठन प्रमुख। ऐसे में एक बार फिर कोरोना के नये वेरिएंट का भयावह रूप सामने आ गया। वर्तमान में वायरस के नये वेरिएंट बीएफ.७ की तीव्रता का अंदाजा इसी से लगया जा सकता है कि चीन में मात्र 20 दिनों के अंदर ही 25 करोड से ज्यादा लोग संक्रमित हो गये। प्रतिबंधों के कारण चीन से आने वाले लोग अब सीधे भारत न आकर श्रीलंका, नेपाल, थाइलैण्ड, सिंगापुर जैसे देशों से होते हुए आ रहे हैं ताकि उन्हें शक की नजर से न देखा जाये। चीन से श्रीलंका होते हुए आने वाले दो व्यक्तियों के संक्रमण होने की स्थिति सामने आ चुकी है। वास्तविकता तो यह है कि देशवासियों को कोरोना के टीके की सौगात देकर सरकार ने एक सुरक्षा कवच दे दिया है परन्तु नये वेरिएंट की तीव्रता को देखते हुए सावधानियां बरतना अतिआवश्यक है परन्तु डरने की आवश्यकता कदापि नहीं है। इस दिशा में गहराई तक उतरने पर स्पष्ट हो जाता है कि समूची दुनिया में आज बायोवेपंस की होड लगी है। रूस में तो 4 लाख साल पुराने वायरस को जिन्दा करने के प्रयास चल रहे हैं। इस हेतु साइबेरिया शहर की नोवोसिबिस्र्क में एक बायोवेपंस लैब काम कर रही है जिसे वेक्टर स्टेट रिसर्च सेन्टर आफ वायरोलाजी कहा जाता है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक इस पुराने वायरस की वजह से ही हिमयुग के मैमथ और प्राचीुन गैडों की प्रजातियां समाप्त हुईं थीं। लंदन के किंग्स कालेज के बायो सिक्योरिटी एक्सपर्ट फिलिपा लेंट्जोस ने तो चेतावनी देते हुए कहा है कि ये वायरस जिंदा होकर यदि किसी तरह लैब से बाहर आता है, तो दुनिया को और खतरनाक महामारी झेलना पडेगी। यह आग से खेलने जैसा ही है। ऐसी ही संभावनायें फ्रांस की ऐक्स-मार्सिले यूनीवर्सिटी के नेशनल सेन्टर आफ साइंटिफिक रिसर्च के प्रोफेसर जीन मिशेल क्लेवेरी ने भी व्यक्त की है। विगत 1 दिसम्बर 2022 को रूस के याकुटिया क्षेत्र की एक झील के नीचे ४८५०० साल पुराने जोंबी वायरस मिले थे। फ्रांसीसी रिसर्चर ने इस वायरस को खोजने का दावा भी किया था। आज दुनिया भर में चल रही बायोवेपंस की होड से जीवन के अस्तित्व पर लग चुके ग्रहण को किसी भी स्थिति में सुखद तो कदापि नहीं कहा जा सकता। हमें दुनिया के वर्चस्व की हवस के लिए तैयार हो रहे जैविक हथियारों से खुद ही सुरक्षा करना होगी, तभी सांसों का क्रम निरंतर रह सकेगा। इस बार बस इतनी ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।


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