"संसदीय राजनीति के शिखर पुरुष भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी" डॉ. राकेश मिश्र (पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद महाकोशल)
बहुआयामी प्रतिभा के धनी और विशाल व्यक्तित्व वाले भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति में अजातशत्रु के नाम से स्मरणीय रहेंगे। उनके विराट राजनीतिक व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा स्वतंत्र भारत के इतिहास के हर मोड़ पर खूब होती है और होती ही रहेगी। भारत की संसदीय राजनीति के वे आधार स्तंभ और शिखर पुरुष थे, जिनके इर्दगिर्द संसदीय इतिहास घूम रहा है। उनका संसदीय कार्यकाल उनके व्यक्तित्व का अनुपम अध्याय था। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहां की संसदीय शासन व्यवस्था में संसद सर्वोच्च है। भारतीय संसद की जब भी चर्चा होती है, उसके इतिहास को टटोला जाता है तो इसमें यदि किसी एक व्यक्तित्व का नाम हर भारतीय और राजनीतिज्ञ के मानस पटल पर उभरता है, वह नाम है श्रद्धेय अटलजी का, जिन्हें संसदीय राजनीति का शिखर पुरुष कहा जाता है। लोकसभा हो या राज्यसभा, सत्ता में रहे हों या विपक्ष में, उनका संसदीय कार्यकाल सदैव स्मरणीय रहेगा। एक सांसद के रूप में संसद के दोनों सदनों में इनके वक्तव्य को गंभीरता से सुना जाता था। संसदीय मर्यादा का पाठ लोग उनसे सीखते थे। विपक्ष के नेता के रूप में सरकार को सचेत करते हुए लोकतंत्र में विपक्ष की अहमियत और उसकी सीमा का पाठ पढ़ाया। विचारों, नीतियों और सिद्धांतों के आधार पर मुखर विरोध करने में आगे रहे तो आवश्यकता पड़ने पर देशहित में सरकार को सकारात्मक सहयोग करने में भी पीछे नहीं रहे। 1967 से 1970 एवं 1991 से 1993 तक संसद की सबसे महत्वपूर्ण समिति लोकलेखा समिति के अध्यक्ष रहे। 1991-92 में देश की अर्थव्यवस्था जब लड़खड़ा गई थी, उस समय लोकलेखा समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में सरकार को समुचित सुझाव दिया। 1993 से 1996 तक लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर देश का प्रतिनिधित्व करते हुए सरकार का सहयोग किया। इसके साथ ही अटलजी अपने संसदीय कार्यकाल में संसद की प्रमुख समितियों के सदस्य या अध्यक्ष के रूप में लोकतंत्र और संसदीय परंपरा को मजबूत करने में जो महत्वपूर्ण योगदान दिया, उसे भारतीय संसद और देश कभी भूल नहीं सकता है। 1966-67 में सरकारी आश्वासनों समिति और 1990-91 में याचिका समिति के अध्यक्ष रहे। 1993-96 तथा 1997-98 में विदेशी मामलों के स्थायी के अध्यक्ष रहे। उनके संसदीय व्यवहार को सभी दलों के नेताओं ने भी स्वीकार किया। संसदीय व्यवस्था में विपक्ष की राजनीति करते हुए उन्होंने आदर्श तो स्थापित किया ही, सत्ता में आने पर भी लोकतंत्र और संसद की गरिमा की रक्षा करना उनकी प्राथमिकता रही। 1994 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद तथा पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
एक कैबिनेट मंत्री के रूप में जब वे 1977 में भारत के विदेश मंत्री बने तो अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत को प्रतिष्ठित किया। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में अपना संबोधन कर भारत की भाषाई स्वाभिमान को सुदृढ़ किया। उनकी विदेशनीति की देश-विदेश में जमकर सराहना हुई। देश में विपक्ष ने भी विदेश मंत्री के रूप में उनकी कार्यशैली को स्वीकार किया। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में तो उन्होंने नये भारत का सपना देखा और उसे बनाने के लिए कार्य आरंभ कर दिया। शासन में सुशासन का सूत्रपात किया, अंतिम व्यक्ति तक विकास को पहुंचाने के लिए कई जनकल्याणकारी योजनाओं को चलाकर समृद्ध भारत के निर्माण का शुभारंभ किया। उनके द्वारा शुरू किए गये कार्यों को मंजिल तक पहुंचाने के साथ ही इसमें कई और नये आयाम को जोड़ते हुए विकास और सुशासन को पूर्णतया मूर्त रूप देने का काम वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने किया। लोगों ने कुशलता और व्यक्तित्व को देखा।
'नेता' शब्द का जब सृष्टि में निर्माण हुआ होगा, उस समय जो कल्पना की गई होगी, उसका यदि भारत की जमीन पर शत-प्रतिशत उतारने का और अपने जीवन शैली से जिसने जीने की कोशिश की उस व्यक्ति का नाम अटल बिहारी वाजपेयी है। वो देश के जन गण मन को जीतते रहे। उन्होने भारत की राजनीति में एक एैसी लकीर खींची कि यदि आप भारत माता की सेवा करना चाहते है तो सिर्फ सत्ता में रहकर ही नहीं, बल्कि विपक्ष में रहकर भी एक राष्ट्र के प्रहरी के रूप में कर सकते हैं। विपक्ष में रहकर भारतीय मन मानस में श्रद्धा की फसल उगाना सामान्य घटना नहीं है। 1957 में पहली बार उत्तर प्रदेश के बलरामपुर से निर्वाचित होकर लोकसभा पहुंचने वाले अटल जी ने अपने पहले संसदीय कार्यकाल में ही अपनी अमिट छाप छोड़ी। संसदीय राजनीति में लगभग पांच दशक तक संसद में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने वाले अटलजी दस बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए। वाजपेयी जी जब भी संसद में अपनी बात रखते थे तो उनके राजनीतिक विरोधी भी उनकी तर्कपूर्ण वाणी के आगे कुछ नहीं बोल पाते थे। संसदीय चुनावी राजनीति में अटलजी को दो बार हार का भी स्वाद चखना पड़ा। 1962 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद अटलजी राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। 1967 में फिर लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। 1971 में ग्वालियर से लोकसभा पहुंचे तो 1977 और 1980 में नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। 1984 में हार का सामना करना पड़ा, फिर 1991 से 2004 तक हुए पांच लोकसभा चुनावों में लखनऊ से लगातार जीत हासिल करने वाले अटलजी इस अवधि में लोकसभा में विपक्ष के नेता भी रहे। इसी अवधि में तीन बार देश के प्रधानमंत्री भी बने।
25 दिसंबर 1924 को जन्में भारत के महान सपूत भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी की जयंती पर सादर नमन करते हुए उनकी कविताओं की चंद पंक्तियों के साथ ही सादर श्रद्धांजलि।
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये, मरेंगे तो इसके लिये।
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