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ड्रीप मल्चिंग पद्धति से टमाटर की खेती में मिला अधिक उत्पादन राजनगर के विपिन बनें कृषकों के मॉडल

 छतरपुर जिले के राजनगर के किसान विपिन कुशवाहा ने ड्रीप मल्चिंग से टमाटर की उन्नत खेती करते हुए न सिर्फ अधिक उत्पादन प्राप्त किया बल्कि अधिक आय भी अर्जित करते हुए किसानों के सामने उदाहरण पेश किया है और वे उन्नत तकनीक का उपयोग करने के मॉडल भी बनें हैं। उन्होने बताया कि 2018 से इस पद्धति से खेती करके प्रतिवर्ष लागत निकाल कर  2 से 3 लाख तक का मुनाफा कमा रहें है। इस वर्ष उन्हें टमाटर का अधिक उत्पादन मिल रहा है। वर्ष में उन्हें दो बार रौपे गए पौधों से टमाटर प्राप्त हो रहे हैं। टमाटर की पौध की नर्सरी 25 दिन में तैयार होती है और नर्सरी से खेत में ट्रांसप्लांट प्रक्रिया के करीब 80 दिन बाद टमाटर की फसल मिलने लगती है। जो दो से तीन महीने तक मिलते है। इसके बाद इसी पौधे में एक बार और फलाव आता है। जिसे दोबारा फसल मिलती है। एक बार टमाटर की पौध लगाने के बाद 8 से 9 महीने तक यह पौध चलती है।  जिससे टमाटर मिलते रहते हैं। राजनगर के कई उद्यानिकी कृषक इस योजना से आर्थिक रूप से संबल बन रहे हैं।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत उन्हें ड्रीप मल्चिंग के लिए अनुदान प्राप्त हुआ तथा उद्यानिकी विभाग द्वारा तकनीकि मार्गदर्शन मिला। उन्होंने बताया कि पहले परम्परागत तरीके से खेती करते थे मगर अब ड्रीप मल्चिंग पद्धती से जबरजस्त लाभ हुआ है। शासन की मदद से ड्रीप का सेटअप मिला है। उन्हांेने कहा कि पहले इस तरह से खेती करने पर उद्यानिकी फसल लेने वाले कृषकों में एक संशय बना रहा। परंतु जब मेरे खेत में उत्पादित टमाटर की फसल को उन्होंने स्वयं देखा तो स्वच्छा से इस पद्धति को अपनाया। अब वहीं किसान इस पद्धति को अपनाकर अच्छा लाभ ले रहे हैं। यहां उत्पादित टमाटर न सिर्फ जिले में अपितु उत्तर प्रदेश और प्रदेश के अन्य जिलों में जाता है। उन्होंने किसानों को ड्रीप मल्चिंग से खेती करने की सलाह दी है। इस पद्धति में पानी की बचत होती है। ड्रीप सिस्टम से पानी सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचता है और खरपतवार भी नहीं होते हैं।





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