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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया भारत के परा-विज्ञान से पराजित हो चुके चीन ने अमेरिका के विज्ञान के आगे भी टेके घुटने

 अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के विरोध में चीन ने विमान को गिरा देने की घोषणा की थी। पेलोसी के विमान को गिराने की बात तो दूर रही चीन को उसकी खबर तक नहीं लगी। यह विमान मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर से ताइवान की राजधानी ताइपे पहुंच भी गया तथा यात्रा पूरी करके सुरक्षित अपने देश में मौजूद है। ताइवान यात्रा के दौरान पेलोसी के विमान ने टेकआफ से साथ ही कुआलालंपुर से एक नया रास्ता अख्तियार किया था। वह पहले दक्षिण-पूर्व दिशा में इंडोनेशिया के बोरनेया व्दीप की तरफ गया, फिर उसने फिलीपींस की ओर मोड काटा और बाद में सीधा ताइपे पहुंच गया। चीन के अतिआधुनिक रडार, टोही विमान, जासूसी उपकरण, स्कैनिंग सिस्टम, आटो सिक्यूरिटी सिस्टम, टाइप 055 के एडवांस्ड डेस्ट्रायर भी अमेरिकी नेता के विमान की परछाई तक नहीं पकड पाये जबकि डेस्ट्रायर की क्षमता 500 किलोमीटर दूर से ही दुश्मन को ट्रैक करने की बताई जाती है। सूत्रों की माने तो चीन ने इलैक्ट्रानिक वारफेयर एयरक्राफ्ट में से चयनित जे-16डी और वारशिप्स तक को पेलोसी की स्कैनिंग में तैनात किया गया था। चीन की इस असफलता पर लम्बे समय तक कायस लगाये जाते रहे। विश्व भर में तरह- तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म रहा। इस संदर्भ में खोजपूर्ण पत्रकारिता करते हुए साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट ने सेना के सूत्रों के हवाले से चीन की असफलता को उजागर किया है। पेलोसी के विमान के लिए चीन की नौसेना और वायुसेना ने अनेक स्थानों की ट्रेकिंग सुनिश्चित कर रखी थी। सर्विलांस का काम भी निर्धारित किया गया था। चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी यानी पीएलए ने पूरा जोर लगाकर यूएस एयरफोर्स के उस विमान को घेरना की कोशिश की थी जिसमें सवार होकर पेलोसी ताइवान पहुंच रहीं थीं। पोस्ट ने पीएलए के मेजर जनरल मेंग शियांगकिंग के हवाले से बताया कि इस वारफेयर में पीएलए असफल साबित हुआ। हमारे सभी जेट्स तथा टाइप 055 डेस्ट्रायर्स फेल हो गये। हमें यह भी पता नहीं चल सका कि लक्षित विमान कहां पर उड रहा है और उसकी स्थिति क्या है। हमारे डेस्ट्रायर आधुनिक तकनीक के नवीनतम उदाहरण हैं, फिर भी सफलता हमारे हाथ नहीं लगी। वायुसेना के विशेषज्ञ ही युआन मिंग के हवाले से उजागर हुआ है कि इस असफलता को यांत्रिक खराबी के रूप में देखा जा रहा है। एक अन्य सूत्र के हवाले से स्पष्ट किया गया है कि पेलोसी के एयरक्राफ्ट के मूवमेन्ट के दौरान चीन के सैन्य संसाधन जाम हो गये थे। उनके इलैक्ट्रानिक वारफेयर उपकरण ठीक से काम नहीं कर रहे थे। चीन की पीएलए के मुंह पर तमाचे जडते हुए अमेरिका ने अपनी घोषणा को पूरा करते हुए विगत 2 अगस्त को न केवल अपनी नेता पेलोसी को ताइपे पहुंचाया बल्कि विश्व को चीन के विरुध्द एक नया संदेश दे दिया। इस यात्रा के ठीक पहले अमेरिका की सेना ने रेकी के बहुमुखी आयामों को पूरा किया था। इलैक्ट्रिनिक वारफेयर में पीएलए को उलझाकर रखा था। नित नयी छोटी-छोटी समस्यायें पैदा करता रहता था ताकि दुश्मन का ध्यान मुख्य मुद्दे से भटक जाये। पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद अमेरिकी सेना ने एयरक्राफ्ट स्ट्राइक ग्रुप को पेंटागन की तरफ से पेलोसी की सुरक्षा में लगा दिया। कहा जाता है कि इस एयरक्राफ्ट स्ट्राइक ग्रुप ने अपनी विशिष्ट तकनीक का प्रयोग करके पीएलए के सभी इलैक्ट्रिनिक डिवाइस, रडार, स्कैनर, जेट्स, डेस्ट्रायर्स, क्राफ्ट, आटो सिक्यूरिटी सिस्टम, सर्विलांस सिस्टम आदि की जैमरिंग कर दी और ड्रेगन चारों खाने चित्त हो गया। यह तो है वर्तमान के हालात जिसमें चीन को मात खाना पडी। अमेरिका की इस जैमरिंग क्षमता से चीन के दांत खट्टे हो गये। ऐसी ही जैमरिंग की एक घटना सन् 1962 में हुई थी जब चीन की सेना ने 19 अक्टूबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग के उत्तर-पश्चिम सीमा से भारी गोलाबारी के साथ आक्रमण कर दिया था। 23 अक्टूबर को चीनी सैनिकों ने भारतीय इलाकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया था। देश की असम राइफल्स के 17 जवानों को शहीद करने के बाद 13 जवानों को बंदी बना लिया था। सिख रेजीमेन्ट ने आगे बढकर दुश्मन का सामना किया था किन्तु गोला बारूद तथा रसद की निरंतर आपूर्ति न मिलने के कारण उन्हें भी पीछे हटना पडा। 24 अक्टूबर को चीनी सेना ने भारत के 15 किलोमीटर अंदर आकर अरुणाचल प्रदेश के तवांग, लद्दाख के गलवान, पैंगोग लेक तथा चुशुल जैसे इलाकों पर कब्जा कर लिया था। चीना सेना 19 नवम्बर 1962 तक तवांग से 170 किलोमीटर उत्तर में बोमडिला तक पहुंच गई थी जहां से ब्रह्मपुत्र घाटी नजदीक ही थी। लद्दाख की ओर बढते हुए कैलाश, मानसरोबर तथा अक्साईचिन के क्षेत्र पर लाल सलाम बोला जाने लगा था। तभी 19 सितम्बर 1962 को अचानक चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने भारत के राजनायिक पूर्णेन्दु कुमार बनर्जी को तलब किया और एक तरफा युध्द विराम की घोषणा कर दी। इस घोषणा के बाद 21 नवम्बर 1962 से चीनी सेना वापिस लौटने लगा। इस संदर्भ की बहुत सारे तथ्य सन् 1966 में तब उजागर हुए जब नेपाल के तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री कीर्ति निधि विष्ट बीजिंग की यात्रा पर गये। तत्कालीन चीनी नेता माओत्से तुंग ने भारत-चीन युध्द के संदर्भ में नेपाली उप-प्रधानमंत्री को अनेक रहस्य बताये, जिसे चीन की पीकिंग युनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान की नेपाली शोधकर्ता अनेका ने रेखांकित किया हैं। शोधकर्ता ने चीनी नेता के हवाले से बताया कि साल 1962 में नेहरू ने हम (चीन) पर हमला किया था और हमने कहा था कि हम भी घुस सकते हैं। इसके ठीक बाद हम घुसे और तेजपुर (असम) तक पहुंच गये थे लेकिन हम तेजी से वापिस लौट आये क्योंकि दूसरे पक्ष (भारत) से वहां कोई सैनिक नहीं था। उनके सैनिक मारे जा चुके थे और तितर-बितर हो गये थे और वहां कोई टारगेट नहीं था। माओ के इस बयान पर बिष्ट ने कहा था कि हमने इस पर रिपोर्ट देखी है। चीन का कब्जा की हुई जमीन से एकतरफा वापिस लौटना, उदारता का कदम है। इस पर कम्युनिस्ट नेता ने कहा था कि अगर हम वापिस नहीं आते, तो वे हमारा कुछ नहीं कर सकते थे। इस तरह के अनेक संदर्भ इतिहास के गर्भ में छुपे हैं। यहां पर उपजे इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट रूप से नहीं मिल सका कि इस युध्द में पूरी तरह से सफल हो रहे चीन को अचानक ऐसा क्या हो गया जो उसने एकतरफा युध्द विराम की घोषणा ही नहीं की बल्कि पुराने स्थान पर वापिस लौट आया। इस प्रश्न के संदर्भ में एक और जैमरिंग का उदाहरण बताया जाता है जो परा-विज्ञान यानी कि सुपर साइंस के अभिनव प्रयोग के तौर सम्मानित है। सूत्रों के अनुसार सन् 1962 में चीन के साथ चल रहे युध्द के दौरान देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को देश के विख्यात विचारक एवं दार्शनिक करपात्री जी महाराज ने दतिया की पीताम्बर पीठ के स्वामीजी से मिलकर समर का अध्यात्मिक समाधान खोजने की सलाह दी। नेहरू जी तथा करपात्री जी महाराज के निवेदन पर स्वामीजी ने अपने दिव्य अध्यात्मिक प्रयोग से मां ध्रूमावती महाशक्ति का आह्वान किया और चीन के उत्तरदायी लोगों की न केवल मानसिक जैमरिंग कर दी बल्कि स्वयं के लक्ष्य के अनुरूप उन्हें बिना शस्त्रबल के वापिस जाने के लिए बाध्य भी कर दिया था। अध्यात्म की अनन्त ऊंचाइयों पर स्थापित विश्वगुरु की पदवी से सम्मानित देश में आज भी परा-विज्ञान के दिव्य साधक मौजूद हैं जिनकी क्षमताओं के उपयोग की अनेक गाथायें पुरातन इतिहास में भरी पडीं हैं। चीन की प्राचीन क्षमतायें जहां भारत की पारशक्ति के सामने सन् 1962 में नगण्य साबित हो चुकी है वहीं सन् 2022 में आधुनिक तकनीक का दम भरने वाले ड्रैगन की अमेरिका के सामने फिर से मात हुई है। भारत के परा-विज्ञान से पराजित हो चुके चीन ने अमेरिका के विज्ञान के आगे भी टेके घुटने। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।


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