चतुर्थ पुण्यतिथि 16 अगस्त, 2022 पर विशेष आलेख: राष्ट्रवाद के मुखर स्वर थे भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी डॉ. राकेश मिश्र
‘मैं देख पाता हूं, न मैं चुप हूं, न गाता हूं’ इन भावपूर्ण पक्तियों के रचयता, भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में शामिल, भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जमीन से जुड़े रहकर राजनीति करने वाले ‘जनता के प्रधानमंत्री’ के रूप में लोगों के दिलों में बसे हुए हैं । एक ऐसे इंसान जो बच्चे, युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों सभी के बीच में लोकप्रिय थे। देश का हर युवा, बच्चा उन्हें अपना आदर्श मानता था। वैसे अटलजी के विराट व्यक्तित्व की विवेचना कुछ शब्द, वाक्य या पुस्तक में संभव नहीं है। बहुआयामी और कालजयी महानायक अटलजी भले ही दैहिक रूप से हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनके विचार, उनकी सोच, उनका चिंतन, उनकी कृति और उनके शब्द करोड़ों भारतीयों के लिए आदर्श हैं। अटल जी राष्ट्रवाद के मुखर स्वर थे, जो स्वर उनकी पत्रकारिता, साहित्य सृजन, संसदीय जीवन, प्रधानमंत्रित्व काल एवं जनसंघ एवं भाजपा अध्यक्ष के रूप में देश को लंबे समय तक देखने को मिला।
भारत की मूल्याधारित राजनीति को स्थापित करने वाले राजनेता और प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी को उनके कार्यों की बदौलत ही उन्हें भारत के ढांचागत विकास का दूरदृष्टा कहा जाता है। बेदाग छवि और साफ सुथरे सार्वजनिक जीवन की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी जी का हर कोई सम्मान करता था। उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक थे। वाजपेयी जी के लिए राष्ट्रहित सदा सर्वोपरि रहा। तभी उन्हें राष्ट्रपुरुष कहा जाता था। अटलजी की बातें और विचार सदा तर्कपूर्ण होते थे और उनके विचारों में सदैव समीचीन सोच झलकती थी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसम्बर 1924 को हुआ। स्कूली समय से ही भाषण देने के शौकीन, स्कूल में होने वाली वाद-विवाद, काव्य पाठ और भाषण प्रतियोगिताओं में भाग लेनेवाले अटल बिहारी वाजपेयी छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और संघ की शाखाओं में हिस्सा लेते रहे।
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने जीवन में पत्रकार के रूप में भी काम किया और लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। प्रखर पत्रकार और यशस्वी संपादक के रूप में वे सदैव स्मरणीय रहेंगे।
भारतीय जनसंघ के संस्थापक अटल जी ने लंबे समय तक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं के साथ काम किया। 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सन् 1957 के लोकसभा चुनावों में पहली बार उत्तर प्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा पहुंचे अटल जी 1957 से 1977 तक लगातार जनसंघ संसदीय दल के नेता के रूप में प्रख्यात रहे। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने ओजस्वी भाषणों से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू तक को प्रभावित किया। अटल बिहारी वाजपेयी के मिलनसार व्यक्तित्व के कारण विपक्ष के साथ भी हमेशा उनके सम्बन्ध मधुर रहे। 1975 में इंदिरा गाँधी द्वारा आपातकाल लगाने का अटल बिहारी वाजपेयी ने खुलकर विरोध किया था। 1977 में देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी, तो बतौर विदेश मंत्री अटलजी ने पूरे विश्व में भारत की छवि बनायीं। विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले देश के पहले वक्ता बने। 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने सहयोगी नेताओं के साथ भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।
1996 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। अटलजी देश के प्रधानमंत्री बने। दुर्भाग्यवश 13 दिन बाद अल्पमत सरकार चली गई। 1998 में भाजपा फिर दूसरी बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। 13 महीने बाद तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार गिर गयी। इस बीच अल्पकाल में भी अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर सम्पूर्ण विश्व को भारत की शक्ति का एहसास कराया। अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए लेकिन भारत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में हर तरह की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निबटने में सफल रहा। अटल बिहारी वाजपेयी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल की, लेकिन कुछ ही समय पश्चात् पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया। एक बार फिर पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी और भारत को विजयश्री मिली। 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 दलों से गठबंधन करके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के रूप में सरकार बनायी। और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूर्ण किया। इन पांच वर्षों में अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम छुए। अटलजी के कुशल नेतृत्व में राजग सरकार ने गरीबों, किसानों और युवाओं के लिए अनेक योजनाएं लागू की। अटल सरकार ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरुआत की और दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्ग से जोड़ा गया। इसके साथ ही इस कार्यकाल में एक सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया गया। सॉफ्टवेयर विकास के लिये सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण मंव गति लाने के लिये केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन किया। नई टेलीकॉम नीति तथा कोंकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम उठाये गए, राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समितियां भी गठित कीं गईं ।
अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी थे। ‘मेरी इक्यावन कविताएँ’ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह थे। अटल जी ने किशोर वय में ही एक अद्भुत कविता लिखी थी – ‘हिन्दू तन-मन (कविता) हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय’।
राजनीति के साथ-साथ उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पायी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 27 मार्च, 2015 को अटल बिहारी वाजपेयी को उनके घर जाकर भारत रत्न से सम्मानित किया। 16 अगस्त 2018 को इस महामानव का महाप्रयाण हो गया, लेकिन उनकी स्मृतियां आज भी हर भारतीय के हृदय में जीवंत है। उनकी कविता की पंक्तियों के साथ उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
चौराहे पर लुटता चीर
प्यादे से पिट गया वजीर
चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊँ?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
सपना जन्मा और मर गया
मधु ऋतु में ही बाग झर गया
तिनके टूटे हुये बटोरूँ या नवसृष्टि सजाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं?
दो दिन मिले उधार में
घाटों के व्यापार में
क्षण-क्षण का हिसाब लूँ या निधि शेष लुटाऊँ मैं?
राह कौन सी जाऊँ मैं ?
डॉ. राकेश मिश्र
कार्यकारी सचिव, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी
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