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पत्रकारों को नोबेल सम्मान से गौरवान्वित पत्रकार बिरादरी कृष्णमोहन झा/

 नोबेल पुरस्कारों  से वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, साहित्यकारों और समाज सेवा आदि के क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान करने वाली विभूतियों को सम्मानित किए जाने की खबरें तो हर वर्ष सुनाई देती हैं परंतु पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान बनाने वाले कलम के सिपाहियों को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की खबर ने सारी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। फिलीपींस और रूस के इन दोनों निर्भीक और  निष्पक्ष पत्रकारों ने सत्ता के आगे नतमस्तक होने से इंकार करते हुए ईमानदार पत्रकारिता की जो मिसाल कायम की है वह मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी की इन पंक्तियों में छिपे सच को चरितार्थ करती हैं- "खींचो न कमानों को,न तलवार निकालो ।जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो।" इसमें दो  राय नहीं हो सकती कि  रूस और फिलीपींस के दो  पत्रकारों ने इस वर्ष  नोबेल शांति पुरस्कार हासिल कर समूची दुनिया के पत्रकारिता जगत को गौरवान्वित किया है लेकिन खेद की बात यह है कि इस वर्ष  दो पत्रकारों को नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की खबर मीडिया मेंं वैसी  सुर्खियां बटोरने में सफल नहीं हो सकी जिसकी वह हकदार थीं। मैं व्यक्तिगत रूप से यह मानता हूं कि फिलीपींस की पत्रकार मारिया रेसाा और रूस के पत्रकार दिमित्री मुराटोव  को दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की खबर को भारतीय मीडिया में जितना कवरेज मिला वह इस पुरस्कार की गरिमा और प्रतिष्ठा को देखते हुए पर्याप्त नहीं था। इन दो पत्रकारों को मिला यह सम्मान पूरी दुनिया के उन  पत्रकारों का सम्मान है जिन्होंने अपनी  लेखनी के साथ समझौता नहीं किया भले ही उन्हें इसके लिए कितनी भी बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़ी हो। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित इन दोनों पत्रकारों ने अपने अपने देश में  विषम  परिस्थितियों में भी ‌‌‌‌‌‌‌ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा के लिए अपने देश की सरकार से लोहा लिया। नोबेल पुरस्कार चयन समिति ने मारिया रेसा और दिमित्री मुराटोव को उनकी ईमानदार पत्रकारिता के लिए  इस वर्ष का नोबल शांति पुरस्कार दिए जाने के अपने फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि  लिए दुनिया भर से 329 नामांकन दाखिल किए गए थे जिनमें से फिलीपींस की पत्रकार मारिया रेसा और रूस के पत्रकार दिमित्री मुराटोव  इस वर्ष के नोबेल शांति पुरस्कार अर्जित करने के अधिकारी बने।

दिमित्री मुराटोव ने अपने अखबार नोवाया गजेटा के माध्यम से रूस के राष्ट्रपति की तानाशाहीपूर्ण नीतियों तथा चेचन्या में नरसंहार के विरुद्ध निडर होकर आवाज उठाई। उनके अखबार की शुरुआत 1993में हुई और मारिया रेसा की डिजिटल मीडिया वेबसाइट 2012 में अस्तित्व में आई। फिलीपींस में सरकार ने जब जानलेवा ड्रग्स विरोधी अभियान प्रारंभ किया तो उसमें हजारों निर्दोष लोग मारे गए और हजारों निर्दोष लोगों को जेल में ठूंस दिया गया। तब मारिया  रेसा ने तय कर लिया कि वे  बेगुनाहों पर कहर ढाने वाले इस अभियान की खामियों को अपनी वेबसाइट के माध्यम से उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। इस दौरान  सोशल मीडिया पर उन्हें दुष्कर्म तथा जान से मार दिए जाने की धमकियां भी मिलती रहीं परंतु उन्होंने निडर होकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए  अपनी लड़ाई जारी रखी और एक समय ऐसा आया जब फिलीपींस सरकार को भी उनकी हिम्मत का लोहा मानने के लिए विवश होना पड़ा। यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि अपनी निर्भीक पत्रकारिता की वजह से  मारिया रेसा को अनेक बार  सत्ता का कोप भाजन  भी बनना पड़ा। उनकी आवाज़ को दबाने के लिए फिलीपींस सरकार ने  2019 में उन्हें दो बार  गिरफ्तार किया ।परंतु उन्होंने सारे जोखिमों का डटकर सामना करते हुए अपनी लड़ाई जारी रखी । विगत दिनों जब उन्हें इस साल का नोबेल  शांति पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई तब  मारिया रेसा ने कहा कि उन्होंने यह कभी नहीं सोचा था किअपनी ईमानदार पत्रकारिता के लिए उन्हें एक दिन नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। मारिया ने यह सम्मान दुनिया की उस पत्रकार बिरादरी को समर्पित किया है  जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए निरंतर  संघर्ष रत है। इस वर्ष नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चयनित दूसरे पत्रकार रूस के  दिमित्री मुराटोव ने तमाम दबावों के बावजूद अपने अखबार की स्वतंत्र नीति से कभी समझौता नहीं किया यद्यपि उनके अखबार से जुड़े अनेक पत्रकारों को ईमानदार पत्रकारिता करने के लिए प्रताड़ित भी किया गया । यहां तक कि उनके अखबार के कुछ पत्रकारों को ईमानदार पत्रकारिता की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। इस सबके बावजूद दिमित्री मुराटोव और उनके अखबार ने देश में सत्ता के दुरुपयोग, भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों को उजागर करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। नोबेल पुरस्कार चयन समिति इस वर्ष नोबेल शांति पुरस्कार के लिए मारिया रेसा और दिमित्री मुराटोव का चयन किए जाने की घोषणा करते हुए कहा है कि लोकतंत्र की रक्षा और दुनिया की खुशहाली के लिए ईमानदार पत्रकारिता को पुरस्कृत किए जाने से दुनिया के उन पत्रकारों की हौसला अफजाई होगी जिन्होंने ईमानदार पत्रकारिता के लिए खुद को समर्पित कर दिया है।


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