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समय में पानी और नदी को बचाने विशेषज्ञों ने साझा की राय जल संवाद कार्यशाला का हुआ आयोजन

 छतरपुर।  भारत रत्न नानाजी देशमुख जी की कर्म भूमि चित्रकूट में मंगल भूमि फाउंडेशन के तत्वाधान में रामायणी कुटी आश्रम चित्रकूट के प्रांगण में मंदाकिनी नदी पाठशाला जल संवाद आयोजित किया गया ,कार्यक्रम में आने वाले  समय में पानी और नदी को बचाने पर चर्चा की गई जिसमें जल जागरूकता पर आधारित तमाम विषय विशेषज्ञों,विद्वानों ने अपने ज्ञान और अनुभवों को सभी छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किए । कार्यक्रम में देश की प्रमुख नदियों की वर्तमान स्थिति पर चर्चा हुई,मंदाकिनी नदी के पानी एवं उसकी स्वच्छता जल जागरुकता, जल संवाद कार्यशाला का भी आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के पहले चरण में मुख्य अतिथि गंगा समग्र के राष्ट्रीय संगठन मंत्री  रामशीष  ने पानी प्रदूषण के तीन कारणों पर चर्चा की जिसमें उन्होंने भोगवादी प्रवृत्ति , अनियोजित विकास और विकृत आस्था के फैलाव जैसे कारणों पर चर्चा की। कार्यक्रम के संरक्षक स्वामी मदन गोपाल दास महाराज  के द्वारा पर्यावरण संरक्षण संवर्धन पर होनें वाले प्रयासों को अपनें सहयोग के लिए तैयार रहने को कहा। मुख्य वक्ता गंगा विचार मंच के राष्ट्रीय संयोजक डा० भरत पाठक जी द्वारा मंदाकिनी नदी पर किए गए कार्यों को भी छात्रों के समक्ष रखा गया और अपने अनुभवों को साझा किया सभी साथियों को सहयोग के लिए आश्वस्त किया, साथ ही उन्होंने गंगा विचार मंच नमामि गंगे अभियान राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की प्रगति से सभी प्रतिनिधियों को अवगत कराया ।अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद 
कानपुर प्रान्त के संगठन मंत्री अंशुल विद्यार्थी  ने युवाओं को नदियों पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। कर्यक्रम में सभी युवाओं एवं कार्यशाला में आये यात्रियों को सभी प्रकार के सहयोग के लिए रामायणी कुटी के महंत श्री राम हृदय दास जी महाराज ने अपना आशीर्वाद प्रदान किया। 
पर्यावरण कार्यकर्ता रामबाबू तिवारी ने अपने सभी साथियों के साथ मंदाकिनी की स्वच्छता के लिए श्रम साधना अभियान भी चलाया उन्होंने नदी को बचाने के लिए युवाओं को आगे आने के लिए कहा। 
वहीं कार्यक्रम के दूसरे चरण में  तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया जिसमें बरकतउल्ला विश्वविद्यालय से आये डॉ विपिन व्यास जी ने नदी को बचाने के लिए तकनीकी शिक्षा के जरिये सभी का मार्गदर्शन किया। वाटर वीमेन के नाम से प्रसिद्ध शिप्रा पाठक ने भी अपने नदी यात्राओं के अनुभवों को बताया उन्होंने कहा की अब संवाद के तरीकों को बदलने की जरूरत है तभी नदिया बचेंगी।

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