ads header

Breaking News

(बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष : 05 मई, 2023) *शांति और उत्कर्ष का मार्ग दिखा गए बुद्ध । * *बुद्ध के संदेशों में छिपा है शांति का मार्ग ॥ *

 धरती पर कभी-कभी ऐसे विराट व्यक्तित्व का अवतरण होता है, जो संपूर्ण मानवता की रक्षा का मार्ग दिखा जाते हैं। ऐसे विराट व्यक्तित्व में महात्मा बुद्ध का नाम आता है। त्याग, तप, साधना और संयम के प्रतीक महात्मा बुद्ध की जयंती बुद्ध पूर्णिमा भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है। यूं तो यह बौद्ध धर्म के लोगों का सबसे पवित्र त्यौहार है, लेकिन यह संपूर्ण मानव के लिए एक पवित्र दिवस है। भारतीय पंचांग के अनुसार वैशाख की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इसे दुनिया के अन्‍य देशों में अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है, जैसे थाईलैंड में विशाखा, बुका, इंडोनेशिया में वैसाक और श्रीलंका और मलेशिया में वेसाक कहा जाता है। यह बड़े पैमाने पर भारत, नेपाल और बांग्लादेश में मनाया जाता है। यह त्यौहार पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में मनाया जाता है, लेकिन इसे मनाने का तरीका देश से देश और क्षेत्र से क्षेत्र में भिन्न होता है।


  भगवान बुद्ध, बौद्ध धर्म के संस्थापक थे और उन्हें भगवान विष्णु का नौवां अवतार भी माना जाता है। यह बुद्ध पूर्णिमा का ही दिन था, जिस दिन भगवान बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी थीं, अर्थात उनके जन्म, उनके ज्ञान की प्राप्ति और उनकी मृत्यु बैशाख की पूर्णिमा ही थी। ऐसा माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया और उसी दिन उनका निधन हो गया।


ईसा पूर्व में सिद्धार्थ गौतम के रूप में शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में जन्म हुआ था। वह एक वास्तविक ऐतिहासिक व्यक्ति थे, जो शाक्य के राजकुमार थे। यह राज्य आज के आधुनिक भारत और नेपाल के किनारे एक छोटा सा क्षेत्र है। सोलह वर्ष की आयु में, सिद्धार्थ का विवाह हुआ, लेकिन उन्‍होंने सांसारिक जीवन से विमुख होकर ज्ञान की प्राप्ति को ही अपने जीवन का ध्येय मान लिया था। उन्हें एक पुत्र की भी प्राप्ति हुई । उनके जीवन में एक अद्भुत मोड़ आया, वह प्रथम बार महल के मैदानों से बाहर निकले। उन्होंने दुनिया के दुखी (वृद्धावस्था, बीमारी और मृत्यु) से लड़ते लोगों को देखा। इससे वे विचलित हुए। उन्होंने ज्ञान की खोज के लिए अपनी पत्नी, बेटे और अपार धन-वैभव के साथ ही तमाम सुखों का त्याग कर दिया । वह वर्षों तक कई स्थानों पर घूमते रहे। वे बोध गया पहुंचे, जहां वे एक पीपल के पेड़ नीचे बैठ गए और अकेले ध्यान के चालीस दिनों के बाद उन्होंने निर्वाण, स्थायित्व की स्थिति प्राप्त की।

वर्तमान परिप्रेक्ष्‍य में भी देखें तो बुद्ध की शिक्षाएं मनुष्यों को दुख और जीवन की पीड़ा से मुक्त करने के लिए हैं। बौद्ध धर्म की प्राथमिक शिक्षाएं चार मुख्य सत्य, आठ पथ और अवधारणाओं पर आधारित हैं। यह चार परम सत्य बौद्ध धर्म की नींव हैं। इन चार सत्यों पर केंद्रित होकर ही उनके ज्ञान के बाद बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया। 


महात्मा बुद्ध के चार परम सत्य थे : सभी मानव परिस्थितियों में पीड़ा होती है। हर पीड़ा का कारण होता है। वह कारण लालसा या इच्छा है। पीड़ा के समापन के लिए एक ही रास्ता है। 


  महात्मा बुद्ध के ज्ञान अभ्यास के आठ क्षेत्र हैं जो जीवन के सभी पहलुओं को छूते हैं। उसके अनुसार सबसे सही विश्वास सत्य में है। सही इरादा बुराई के बजाय अच्छा करने में है। असत्य, निंदा और शपथ ग्रहण से बचना है। सही व्यवहार दोष पूर्ण व्यवहार से बचना है। सही प्रयास अच्छाई  की तरफ है। सही अनुष्ठान सत्य का होता है। सही एकाग्रता इन नियमों का पालन करने के परिणाम में है। 

उनके बताए मार्ग पर बौद्ध धर्म का मानना है कि एक व्यक्ति सही दिशा में आगे बढ़ना तब शुरू कर सकता है, जब वह बुद्ध और उनकी शिक्षाओं और उनके मठों में विश्वास रखे। साथ ही पांच मौलिक नैतिक नियमों को अपना कर भी मनुष्य सही मार्ग पर चल पाता है।


ये पांच मौलिक नियम हैं: हत्या नहीं करना, चोरी नहीं करना, दुराचार या व्यभिचार से विरत रहना, झूठ कभी नहीं बोलना और नशे की लत से दूर रहना है।


बुद्ध जयंती का मुख्य उत्सव बिहार के बोध गया में होता है। बौद्ध धर्म के लोगों के लिए, बोध गया, गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहाँ दुनिया भर से बौद्ध भक्त बड़ी संख्या में भगवान बुद्ध को उनके सम्मानित श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इकट्ठा होते हैं। सुबह की प्रार्थना के बाद, भिक्षुओं के रंगीन जुलूस, बड़े प्रसाद के साथ पूजा, मिठाई का वितरण होता है। इस दिन आप बौद्ध धर्म के लोगों के घर, पठन मठों, धार्मिक हॉलों और घरों में बौद्ध ग्रंथों की प्रार्थना, उपदेश, गूंजते सुन सकते हैं।

इस दिन बौद्ध लोग स्नान करते हैं और केवल सफेद कपड़े पहनते हैं। लोग भगवान बुद्ध की मूर्ति के समक्ष धूप, फूल, मोमबत्तियां और फल समर्पित करते हैं। महाबोधी वृक्ष जिसे “पीपल का पेड़” या पवित्र अंजीर के पेड़ के नाम से भी जाना जाता है, की पूजा की जाती है और प्रसाद भी चढ़ाया जाता है। यह वह वृक्ष माना जाता है जिसके अंतर्गत भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ।


परंपरागत रूप से, बौद्ध शुद्ध शाकाहारी होते हैं। इसलिए सभी बौद्ध धर्म के व्यक्ति इस पवित्र दिन पर अपने घरों में शुद्ध-शाकाहारी भोजन बनाते हैं। घरों पर मुख्य रूप से खीर तैयार किया जाता है। पिंजरों से पक्षियों को मुक्त करना,  ज्यादातर स्‍थानों पर इस दिन शुभ माना जाता है। 


 बौद्ध मत हिन्दू धर्म का ही रूप है। इसकी विशेषतायें हिन्दू धर्म से मेल खाती है। यही कारण था कि ईसाई और इस्‍लाम धर्म के दवाब के बावजूद डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी ने बौद्ध मत को ही अपनाया। 


बुद्धं शरणं गच्छामि।

धम्मं शरणं गच्छामि॥


*(डॉ. राकेश मिश्र) *

   पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष,

 अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, महाकौशल प्रांत 

(मध्‍य प्रदेश)



No comments