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महावीर जी में हुआ परिषद का अधिवेशन,संगोष्ठी व पुरस्कार अलंकरण समारोह जिनवाणी को जनवाणी न बनाएं : आचार्य वर्द्धमान सागर आचार्य श्री के जन्म दिवस पर आयोजित हुआ समारोह

 महावीर जी /  श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र महावीर जी में प्रभावना जनकल्याण परिषद (रजि.) के तत्वावधान में संगोष्ठी, अधिवेशन व पुरस्कार अलंकरण समारोह वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में अतिशय क्षेत्र महावीर जी की प्रबंधकारिणी समिति के आयोजकत्व में  आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी के 73वे जन्म दिवस पर समारोह पूर्वक आयोजित किया गया। परिषद द्वारा आयोजित पुरस्कार समर्पण कार्यक्रम में प्रमुख पत्रकार, विद्वान एवं श्रेष्ठीजन को सम्मानित किया गया। 


संगोष्ठी में प्रस्तुत किए शोध-पत्र

प्रातःकाल बेला में अभिषेक, पूजन के बाद संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश के ख्याति प्राप्त विद्वान प्रतिष्ठाचार्य ब्र. जयकुमार जी निशांत भैया टीकमगढ़, प्रतिष्ठाचार्य हंसमुख धरियावाद, विजय कुमार झां शोधाधिकारी, डॉ. सुनील संचय ललितपुर ने अपने शोधालेख प्रस्तुत किए। संचालन परिषद के महामंत्री प्रद्युम्न शास्त्री जयपुर ने किया। आभार कार्यक्रम संयोजक मनीष विद्यार्थी शाहगढ़ ने व्यक्त किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में विद्वानों और अतिथियों द्वारा चित्र अनावरण और दीप प्रज्ज्वलन किया गया इसके बाद विद्वानों द्वारा आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन किया गया।

दोपहर सत्र 1.30 बजे श्रीमती अलका-डॉ. मणीन्द्र जैन दिल्ली व पंडित शुभम शास्त्री बड़ामलहरा के मंगलाचरण से शुरू हुआ। इस सत्र में राजेंद्र महावीर सनावद, डॉ महेन्द्र मनुज इंदौर, राजकुमार कोठारी ने अपने आलेख प्रस्तुत किए।


छह विशिष्ट विभूति हुई पुरस्कृत

    चयनित छह विशिष्ट महानुभावों को परिषद द्वारा विभिन्न वार्षिक पुरस्कारों से अलंकित किया गया। जिसमें चिकित्सा के क्षेत्र में एवं साधु  वैयावृत्ति (चिकित्सा) के क्षेत्र में विशेष उल्लेखनीय अवदान के लिए "आचार्य वर्धमान सागर पुरस्कार -2022" से डॉ. पदम राज पाटिल बेलगांव कर्नाटक

को 51000/- इंक्यावन हजार रुपये पुरस्कार राशि, प्रशस्ति पत्र, पगड़ी, शाल, श्रीफल, माला आदि के साथ अलंकित किया गया। इस पुरस्कार के पुण्यार्जक महावीर प्रसाद, कैलाशचंद्र विनोद कुमार पाटनी मदनगंज किशनगढ ने पुरस्कार राशि भेंट की। "पंडित इंद्रमणी रविंद्र जैन स्मृति पुरस्कार" - डॉ. सुशील जैन मैनपुरी को 31000/-इक्कतीस हजार राशि के साथ पुरस्कार के पुण्यार्जक विश्व प्रसिद्ध संगीतकार गीतकार के भाई डॉ. मणीन्द्र जैन-अलका जैन (राष्ट्रीय अध्यक्ष दिगम्बर जैन महासमिति एवं गौरव संरक्षक प्रभावना जनकल्याण परिषद) ने समर्पित किया।  "धर्म सागर शिरोमणि पुरस्कार" - डॉ.चिरंजीलाल जी बगड़ा, कोलकाता को 21000/- इक्कीस हजार रुपये की राशि के साथ समर्पित किया गया है। इस पुरस्कार के पुण्यार्जक पदमचंद महेंद्र जैन धाकड़ा परिवार चेन्नई हैं। "श्रुत सेवी यंग अवार्ड" - पं.अनिल शास्त्री सागर को 11000/- ग्यारह हजार राशि के चेक के साथ समर्पित किया गया। इस पुरस्कार के पुण्यार्जक  सनत कुमार आरती जैन, निखिल, विशाल परिवार इंदौर हैं।

"आ. सुपार्श्व मती जी पुरस्कार" - पं.मुकेश मधुर महावीर जी को 21000/-इक्कीस हजार रुपये राशि के साथ प्रदान किया गया। यह पुरस्कार श्रेष्ठि भागचंद चूड़ीवाल परिवार गोहाटी की ओर से प्रदान किया गया।

"चारित्र चक्रवर्ती शांति सागर पुरस्कार" - प्रतिष्ठाचार्य पं.कुमुद सोनी अजमेर को 21000/- इक्कीस हजार राशि के साथ प्रदान किया गया। पुरस्कार पुण्यार्जक तारादेवी, राकेश सेठी, राजेश सेठी परिवार कोलकाता ने पुरस्कार राशि भेंट की।

इस अवसर पर परिषद के अध्यक्ष सुनील शास्त्री टीकमगढ़ ने परिषद का परिचय, उद्देश्य पर प्रकाश डाला। ब्र. जय कुमार निशांत जी ने निर्देशकीय वक्तव्य दिया। कार्यक्रम का संचालन परिषद के महामंत्री प्रद्युम्न शास्त्री जयपुर व पुरस्कार संयोजक डॉ. सुनील जैन संचय ललितपुर ने संयुक्त रूप से किया। आभार परिषद के उपाध्यक्ष  वरिष्ठ पत्रकार राजेश रागी बकस्वाहा ने व्यक्त किया।

आयोजन में संघस्थ मुनि श्री हितेंद्र सागर जी महाराज ने संगोष्ठी में प्रस्तुत सभी आलेखों पर समीक्षात्मक प्रवचन देकर मार्गदर्शन दिया तथा सफ़लतम आयोजन के लिए आशीर्वाद प्रदान किया ।आयोजन में प्रभावना जनकल्याण परिषद के फोल्डर एवं अहिंसा करुणा के महावीर जी विशेषांक का विमोचन अतिथियों, विद्वानों द्वारा किया गया।


तीर्थंकर के कुल की रक्षा करना परम कर्तव्य

   इस अवसर पर परम पूज्य आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के दोनों सत्रों में मंगल आशीष वचन प्राप्त हुए। आचार्यश्री ने अपने मंगल उदबोधन में कहा कि लोग आचार्य प्रणीत ग्रंथों के अध्ययन को भूल रहे हैं, जिससे अनेक विसंगतियां समाज में देखने में आ रहीं हैं। शास्त्रों की बातों को कहने वालों को शास्त्रों की बात करना चाहिए  , समाज को भ्रमित नहीं करना चाहिए। जिनवाणी से किसी भी अनुयोग को बाहर करने की बात मन में नहीं आना चाहिए। जिनवाणी हमारी माता है, अपनी विद्वत्ता का परिचय इसी में है कि जिनवाणी को जनवाणी न बनने दें। जिनवाणी के चारों अनुयोगों को ह्रदय में कंठाहार बनाएं। प्रथमानुयोग के ग्रंथ केवल कथा कहानी नहीं हैं जीवन का सार है ।उनसे जीवन को सदाचरण से जोड़ने की शिक्षा मिलती है। 

आज बच्चों के माता-पिता बच्चों में संस्कार डालने के प्रति प्रयत्नशील नहीं हैं। माताओं ने अपना दूध बच्चों को पिलाना बंद कर दिया है, बाजार का दूध पिलाने लगी हैं इसलिए बच्चे भी उनकी नहीं मानते। हमारे समाज की भेषभूषा बिगड़ रही है, खानपान और खानदान में विकृतियां आ रही हैं ,जिससे समाज का गौरव समाप्त हो रहा है।

प्रभावना जनकल्याण परिषद को आशीर्वाद प्रदान करते हुए उन्होंने कहा कि अब यह परिषद प्रौढ़ता को प्राप्त हो गयी है, इसी प्रकार प्रभावना के कार्यों में निरंतर संलग्न रहें। पुरस्कार देने से पुरस्कृत होने वाले को कार्य करने में नई ऊर्जा मिलती है। विद्वानों ने आगम सम्मत आलेख प्रस्तुत किए हैं।


"प्रबंधकारिणी समिति द्वारा सम्मान"

   कार्यक्रम में समागत विद्वानों, अतिथियों का श्री दिगम्बर जैन महावीर जी प्रबंधकारिणी समिति, चातुर्मास समिति, महामस्तकाभिषेक समिति के राजकुमार सेठी, राकेश सेठी, कैलाश पाटनी , अभिषेक छाबड़ा, ताराचन्द्र भोसा, राजकुमार सेठी ने सम्मान किया। 

आयोजन में परिषद के गौरव संरक्षक डॉ मणीन्द्र जैन दिल्ली ने भगवान महावीर स्वामी के 2550 वे निर्वाण महोत्सव पर प्रवर्तित होने वाले रथ के बारे में जानकारी दी तथा इस महोत्सव को मनाने के लिए जुट जाने का आह्वान किया।

इस मौके पर  ब्र. जय निशांत जी भैया टीकमगढ़,  प्रतिष्ठाचार्य हंसमुख जी धरियावद, अनुपचन्द्र जी एडवोकेट फिरोजाबाद संपादक जैन संदेश,पं. सुनील शास्त्री टीकमगढ़, पं. प्रद्युम्न शास्त्रि जयपुर, डॉ महेंद्र जैन,   राजेश रागी बकस्वाहा, राजेन्द्र महावीर सनावद, मनीष विद्यार्थी शाहगढ़,  डॉ. सुनील संचय ललितपुर, अनिल शास्त्री सागर, चेतन शास्त्री बंडा, गजेंद्र शास्त्री, शुभम शास्त्री बड़ामलहरा, प्रदीप जैन शिक्षक, जिनेन्द्र शास्त्री बड़ामलहरा, जयकुमार जैन बड़ागांव,अंकित शास्त्री सोजना ,डा.प्रफुल्ल जैन मथुरा आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। इस मौके पर डॉ. पदम राज पाटिल बेलगांव कर्नाटक ने परिषद के तत्वावधान में प्रतिवर्ष एक पुरस्कार देने की घोषणा की, साथ ही जिनकी पुरस्कार देने की घोषणा अवधि समाप्त हो रही थी उन्होंने आगे बढ़ाने की घोषणा की । 

(रत्नेश जैन बकस्वाहा)


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