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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया मुफ्तखोरी और तुष्टीकरण के मुद्दों को उठाने से कतरा रहे हैं राजनैतिक दल

 ईडी की कार्यवाही के विरोध में विरोधी दलों ने मोर्चे खोलना शुरू कर दिये हैं। कांग्रेस के मुखिया गांधी परिवार से पूछतांछ होते ही पार्टी ने सडकों पर जंग छेड दी। देश-प्रदेश की राजधानी से लेकर दूर दराज के इलाकों तक में महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर प्रदर्शन, धरना और घेराव करने की रणनीति को अमली जामा पहनाया जाने लगा है। आगामी 9 से 15 अगस्त के बीच पद यात्रा निकालने की भी घोषणा की गई है जिसमें 75 किलोमीटर पैदल चलने का निर्धारण किया गया है। इसके बाद आगामी 2 अक्टूबर से भारत छोडो  पद यात्रा के नाम से पैदल मार्च का पुन: आयोजन करने की योजना है जिसके व्दारा केन्द्र सरकार को घेरना का प्रयास होगा। लोगों का मानना है कि यह सब नेशनल हेराल्ड मामले में प्रवर्तन निदेशालय की कार्यवाही के बाद गांधी परिवार सहित अनेक कद्दावर नेताओं पर लटक रही प्रवर्तन निदेशालय की तलवार के कारण ही हो रहा है। गांधी परिवार पर जांच की आंच पहुंचते ही पार्टी में आपसी वैमनुष्यता रखने वाले नेताओं में भी एकजुटता पहली बार देखने को मिल रही है। स्वाधीनता के बाद  पहली बार ही 8 वर्षों से कांग्रेस सत्ता से बाहर है। बंगाल में भी तृणमूल कांग्रेस ने पार्टी के खास सिपाहसालारों पर ईडी का शिकंजा कसते ही विरोध का स्वर मुखरित किया था। महाराष्ट्र में भी अपने नेता पर कडाई होते ही शिव सेना के एक घटक ने चीखना शुरू कर दिया था। यह सब केन्द्रीय जांच एजेंसियों की पहल होते ही क्यों शुरू हुआ। कांग्रेस सहित विपक्ष को अचानक बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महंगाई, गरीबी जैसी स्थितियां कैसे याद आने लगीं। इन सबके पीछे की मूल जड पर प्रहार करने से सभी दल बच रहे हैं। सभी अनियमितताओं के पीछे है तुष्टीकरण और मुफ्तखोरी की घातक नीतियां। वर्तमान में गांवों से लेकर महानगरों तक काम के लिए मजदूर मिलना कठिन हो गया है। लोग मेहनतकश नौकरी, मजदूरी या श्रम साध्य कार्य करने से कतरा रहे हैं। मुफ्त में मिलने वाले मकान, सरकारी जमीनों पर लम्बे समय से किये गये अतिक्रमण को वैध करने की घोषणायें, कर्जों की माफी, मुफ्त में आनाज, मुफ्त में शिक्षा, मुफ्त में चिकित्सा, मुफ्त में परिधान, मुफ्त में यात्रा, बिना काम के पेंशन, बिना काम के सुविधा भत्ता जैसी अनेक योजनायें देश को खोखला कर रहीं हैं। इन योजनाओं का लाभ लेने हेतु अनेक अपात्र व्यक्ति भी सुविधा शुल्क के आधार पर पात्रता की सूची में अंकित हो रहे हैं। देश में अनियमितताओं के मामले उजागर होते ही उनकी जांच बैठाकर मामले को शान्त कर दिया जाता है। स्थाई अधिकारी ही स्थाई कर्मचारियों की जांच करके किसी निर्दोष संविदा कर्मी पर छीकरा फोडकर उसे दण्डित कर देता है। स्थाई कर्मचारियों की सुरक्षा हेतु स्थाई अधिकारियों के व्दारा विशेष संरक्षण नियमों की बाड लगा दी गई है। इस मुफ्तखोरी के कारण वर्तमान में जहां उत्पादन प्रभावित हो रहा है वहीं मजदूर न मिलने के कारण रोजगारपरक योजनाओं को मशीनों से पूरा करके लक्ष्य प्राप्ति के आंकडे दिखा दिये जाते हैं। केवल मुफ्तखोरी ही देश के खजाने को खाली नहीं कर रही है बल्कि विकास के नाम पर कंकरीट के जंगल पैदा करने की भी बाढ आ गई है। मुख्यमंत्रियों से लेकर प्रधानमंत्री तक विकास के नाम पर अनेक परियोजनाओं की निरंतर घोषणायें कर रहे हैं। करोडों की परियोजनाओं हेतु पैसे की आपूर्ति भी तो करदाताओं के खून पसीने की कमाई से भरे सरकारी खजाने से ही होगी। इन परियोजनाओं की घोषणा से पहले कभी भी गुणवत्ता, उपयोगिता और प्रासांगिकता पर आम आवाम के साथ विचार विमर्श नहीं किया जाता। वातनुकूलित कमरों में बैठकर मोटी पगार पाने वाले अधिकारियों व्दारा नेता जी की मंशा के अनुरूप कार्ययोजना तैयार कर दी जाती है जिसमें सत्ताधारी दल के प्रायोजकों को सीधा लाभ मिल सके। हाल ही में बुंदेलखण्ड एक्सप्रेस वे ने अपने उद्घाटन के चन्द दिनों बाद ही दम तोड दिया। सडक पर गड्ढे हो गये। अनेक स्थानों पर सडक घंस गई। बरसात में तो देश के अनेक टोल रोड्स में वाहन चलाना दूभर हो गया है। आवारा पशुओं की भरमार तो लगभग सभी टोल रोड तथा अनेक एक्सप्रेस वे पर देखी जा सकती है। इस तरह की अनियमितताओं, मनमानियों और बिना गुणवत्ता वाले कार्यो की जांच, दोषियों को दण्डित करने की कार्यवाही और उस सब की जानकारी आम आवाम से सांझा करने  करना, सरकारी तंत्र के लिए आज अनावश्यक हो गया है। व्यक्तिगत स्वार्थ और अपनों के हितों तक ही ज्यादातर राजनीति और समाजसेवा सीमित होती जा रही है। पांच सितारा संस्कृति वाली सुविधाओं का विस्तार तो अब महानगरों से लेकर दूर दराज के गांवों तक पहुंच चुकी मुफ्तखोरी के साथ समानान्तर गति से बढ चला है। विकास परियोजनाओं से जुडी अनेक इमारतें आज भी संचालनकर्मियों के अभाव में काई, जंग और


दीमक के हवाले हो रहीं हैं। हजारों वाहन चालक और उपयोगिता के अभाव में गलते जा रहे हैं। सरकारी खरीददारी में कमीशनखोरी उसी तरह सम्बध्द हो गई है जैसे सरकारी दफ्तरों में काम करने के लिए अधिकांश कर्मी सुविधा शुल्क के साथ लिपटे हैं। पहले भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों को चिन्हित किया जाता था। आज ईमानदार अधिकारी-कर्मचारियों के नाम अंगुलियों पर गिने जाते हैं। अतीत गवाह है कि अनियमितताओं के लिए उत्तरदायी अधिकारियों को कुछ अपवाद छोडकर कभी दण्डित नहीं किया गया। गांवों के ज्यादातर लडाई-झगडे वहां के पटवारी की ही देन होते हैं। मनमानी प्रविष्ठियों से लेकर मनमानी पैमाइश तक के कारनामे बेधडक किये जा रहे हैं। यह सब कानूनगो, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, उप जिलाधिकारी, जिलाधिकारी की नाक के नीचे खुलेआम हो रहा है। सरकारी रकवे को निजी, निजी को सरकारी बनाने के साथ-साथ बटवारे, हदबंदी, पत्थरगड्डी जैसे कामों के अनगिनत मामले फाइलों में बंद है जिन को लेकर ग्रामीणों के मध्य लट्ठ चलते हैं, दुश्मनी पनपती है और फिर होने लगती है हत्यायें। मगर पटवारी साहब को कोई भी दण्ड नहीं दिया जाता। यहां यह कहावत पूरी तरह से चरितार्थ होती है कि चोर-चोर मौसेरे भाई। अन्य विश्लेषण के रूप में विदेशी मदिरा की अवैध खेपों के पकडे जाने के मामले को ही ले लें। लगभग प्रत्येक विदेशी मदिरा निर्माण फैक्ट्री में आवकारी विभाग के अधिकारी और कर्मचारी तैनात होते है जिनकी निगरानी में ही शराब का निर्माण और निकासी होती है। तो फिर अवैध खेप कैसे निकल जाती है। फैक्ट्री मालिक सहित आवकारी अधिकारी इस तरह की काला बाजारी में बेदाग कैसे बच जाते हैं। इसी तरह के अनेक मामले हैं जिन्हें रेखांकित किया सकता है। देश में महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, गरीबी जैसे मुद्दों को चुनावी रंग देने वाले केवल बीमारी से ग्रसित पत्तों को तोडने की दुहाई देकर वृक्ष के स्वस्थ की कामना कर रहे हैं। बीमारी के मूल में छुपे मुफ्तखोरी और तुष्टीकरण के मुद्दों को उठाने से कतरा रहे हैं राजनैतिक दल। इस मुद्दे के उठते ही देश के हरामखोर और चालाक लोगों का उत्पात शुरू हो जायेगा। धनबल से जनबल को उत्पाती बना दिया जायेगा। तोडफोड से लेकर आगजनी तक की घटनाओं का बाहुल्य हो जायेगा। अराजकता फैलाने वालों की जमात को सक्रिय कर दिया जायेगा। हरामखोरों ने परिस्थितिवश दी गई सहायता को अधिकार मान लिया है जिसे वे जिन्दगी के साथ भी और जिन्दगी के बाद भी पाना चाह रहे हैं। ऐसे में चुनावी जोडतोड में लगी राजनैतिक पार्टियां अपने दिखाने वाले दांतों से समाज का हित और खाने वाले दांतों से स्वार्थ पूर्ति करने में पूरी तल्लीनता से लगी हुई हैं। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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