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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया सफेदपोशों के काले खजाने में छुपी है देश की सम्पत्ति

    देश में काले धन और घोटालों को लेकर ईडी की छापा मारी तेजी से चल रही है। शिवसेना के कद्दावर नेता और सामना के संपादक संजय राउत के घर पर ईडी ने दविश दी। संजय राउत पर 1000 करोड से ज्यादा के पात्रा चाल जमीन घोटाला मामले की जांच में सहयोग न करने का आरोप लगाया गया है। इस संदर्भ में संस्था ने उन्हें विगत 27 जुलाई को तलब किया था परन्तु वे उपस्थित नहीं हुए थे। इस दविश के दौरान उनके खास  लोगों ने भीड की शक्ल में इकट्ठा होकर खासा हंगामा किया। यह मामला मुम्बई के गोरेगांव की पात्रा चाल से जुडा है जो कि महाराष्ट्र हाउसिंग एण्ड एरिया डेवेलपमेन्ट अथारिटी के अधिपत्य का भूखण्ड है। जब सन् 2020 में महाराष्ट्र के पीएमसी बैंक घोटाले की जांच चल रही थी तब प्रवीण राउत की कंस्ट्रक्शन कम्पनी का नाम उजागर हुआ था जिसमें बिल्डर की पत्नी के बैंक खाते से संजय राउत की पत्नी वर्षा राउत को 55 लाख रुपये का कर्ज देने के दस्तावेज मिले थे। आरोप है कि संजय राउत ने इसी पैसे से दादर में एक फ्लैट खरीदा था। ईडी के छापों में कभी बंगाल रुपये उलगने लगता है तो कभी महाराष्ट्र। कभी कानपुर में नोटों के बंडलों की भरमार मिलती है तो कभी कन्नौज में। कभी राजनेताओं के निकटवर्तियों से संपत्तियों का अंबार बरामद हुआ तो कभी संस्थाओं के नाम पर धोखाधडी तथा मनी लान्ड्रिग के मामले उजागर हुए। धर्मान्तरण से लेकर आतंकवाद तक के मामलों में अवैध ढंग से धन की आवक पर भी अनेक खुलासे हुए। अभी तक मूकबधिर बच्चों, गरीब तथा अपाहिजों की सहायता, धार्मिक शिक्षा के विस्तार, धार्मिक जागरूकता एवं संरक्षण जैसे कारकों को आधार बनाकर जुटाये गये धन को संविधान विरोधी गतिविधियों में लगाने वालों के अनेक चेहरे बेनकाब हो चुके हैं। विदेशी कम्पनियों के गैरकानूनी कारनामों को भी इसी संस्था ने उजागर किया था। ईडी की शक्तियों को लेकर दायर 242 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी, जब्ती के ईडी के अधिकारों को सही ठहराया था। न्यायालय ने प्रिवेंशन आफ मनी लान्ड्रिंग एक्ट के प्राविधानों के विरुध्द दायर की गई आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि सिर्फ गिरफ्तारी का कारण बताना पर्याप्त है अर्थात छापेमारी, जप्ती, गिरफ्तारी, बयान दर्ज करना और जमानत की सख्त शर्तें पहले की तरह ही लागू रहेंगी। इन याचिकाओं की पैरवी करने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता तथा नामी वकील कपिल सिब्बल, मनु सिंघवी सहित मेनका गुरुस्वामी आदि को उतारा गया था। ऐसे में ईडी के बारे में विस्तार जानना भी आवश्यक है ताकि इस संस्था के स्वरूप और कार्य पध्दति उजागर हो सके। इनफोर्समेन्ट डायरेक्ट्रेट को ही शार्ट नेम में ईडी कहा जाता है जिसे हिन्दी में प्रवर्तन निदेशालय कहते हैं। इसकी स्थापना सन् 1956 में हुई थी जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) 1999 और धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत कुछ प्रावधानों को लागू करने की जिम्मेवारी भी ईडी पर है। इसी संस्था को पीएमएल के तहत मामलों की जांच और अभियोजन से संबंधित मामले भी सौंपे गये हैं जबकि फेमा के नीतिगत दायित्वों के लिए राजस्व विभाग को उत्तरदायी बनाया गया है। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि फेमा के लागू होने के पहले यानी 1 जून 2000 तक निदेशालय ने विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम १९७३ यानी फेरा के अंतर्गत दी गई व्यवस्थाओं को अंगीकार किया था। इसके स्वरूप में एक निदेशक तथा तीन विशेष निदेशकों की पदस्थापना की गई है जिनमें से दो विशेष निदेशक मुख्यालय नई दिल्ली में तथा एक को मुम्बई में तैनात किया गया है। दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकता, चंडीगढ, लखनऊ, कोचीन, अहमदाबाद, बैंगलोर तथा हैदराबाद में क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित किये गये हैं जिसका मुखिया उप निदेशक को बनाया गया है। इन क्षेत्रीय कार्यालयों के अलावा जयपुर, जालंधर, श्रीनगर, वाराणसी, गुवाहाटी, कालीकट, इंदौर, नागपुर, पटना, भुवनेश्वर तथा मदुरै में उप क्षेत्रीय कार्यालयों की स्थापना की गई है जिसके लिए सहायक निदेशक को उत्तरदायी बनाया गया है। फेमा 1999 के उल्लंघनों से संबंधित सूचनायें एकत्रित करने, विकसित करने तथा प्रसारित करने के लिए केन्द्रीय और राज्य की खुफिया एजेन्सियों, शिकायतों तथा स्वयं विकसित किये गये सूत्रों का सहयोग लेती है। संस्था के प्रावधानों के तहत संदिग्ध मामलों की जांच करना है जिसमें हवाला की विदेशी मुद्रा का संयुक्तीकरण, निर्यात आय की अवैध वसूली, विदेशी मुद्रा की गैर प्रत्यावर्तन आदि शामिल हैं। पूर्ववर्ती फेरा १९७३ तथा फेमा 1999 के उल्लंघन के मामलों का न्यायनिर्णयन करना भी ईडी के दायित्वों का अंग है। न्यायनिर्णयन कार्यवाही के समापन पर लगाए गये दण्ड की वसूली भी यही संस्था करती है। विदेशी मुद्रा संरक्षण तथा तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम के तहत निवारक निरोध के मामलों को संसाधित करने तथा अनुशंसा करना, अपराध से होने वाली आय की जप्ती के साथ-साथ पीएमएलए के तहत आरोपियों के स्थानांतरण के संबंध में अनुबंधित राज्यों को पारस्परिक कानूनी सहायता प्रदान करने जैसे कार्य भी इसी संस्था का दायित्वबोध है। इस तरह से देश में आर्थिक अपराध, भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और मनमानियों के छुपे हुए मामलों को लेकर ईडी निरंतर कार्यवाही करती है मगर विगत कुछ समय से यह विभाग खासा सक्रिय हो गया है। नेशनल हेराल्ड मामले में जहां कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा उनके परिवारजनों से पूछतांछ की गई वहीं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी तक पर शिकंजा कसा गया। संस्था के दखल को लेकर राजनैतिक गलियारों से चीखें गूंजती रहीें। बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार के मंत्री पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के आवासों से भारी संपत्ति बरामद की गई जिसे राज्य के स्कूल सेवा आयोग और प्राथमिक शिक्षा बोर्ड भर्ती घोटाले की व्यवहारिक परिणति के रूप में देखा जा रहा है। यूं तो इस मामले में परेश सी. अधिकारी, मानिक भट्टाचार्या के आवासों सहित अनेक स्थानों पर छापामारी की गई है परन्तु ममता सरकार के अनेक चर्चित चेहरे ही ज्यादातर सामने आते चले गये। ऐसे अनेक मामलों ने वर्तमान में देश के अनेक कथित ठेकेदारों के चेहरों से नकाब उतारना शुरू कर दी है। सफेदपोशों के काले खजाने में छुपी है देश की सम्पत्ति जिसका खुलासा होते ही कहीं राजनैतिक दल अपने अंध भक्तों से हंगामा करवाने लगते हैं तो कहीं भीड का तंत्र संवैधानिक व्यवस्था पर हावी होने की कोशिश करने लगाता है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों के अनेक जानेमाने चेहरों के छुपे कारनामे उजागर होते ही आम आवाम आवाक होकर रह गई है। इसी तरह के प्रयासों से ही आने वाले समय में पारदर्शिता के प्रादुर्भाव की संभावना बलवती होती है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।



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