ads header

Breaking News

17 जुलाई: दसवीं पुण्यतिथि * जीवन मूल्यों के आधार स्तंभ प्रो. बाल आपटे जी

 अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन में रीढ़ की भूमिका निभाने वाले बलवंत परशुराम (बाल) आपटे का जन्म 18 जनवरी, 1939 को पुणे के पास क्रांतिवीर राजगुरु के जन्म से धन्य होने वाले राजगुरुनगर में हुआ था।

उनके पिता श्री परशुराम आपटे एक स्वाधीनता सेनानी तथा समाजसेवी थे। वहां पर ग्राम पंचायत, सहकारी बैंक आदि उनके प्रयास से ही प्रारम्भ हुए। यह गुण उनके पुत्र बलवंत (बाल)आपटे में भी आये। बालपन से ही संघ के स्वयंसेवक रहे बलवंत आपटे प्रारम्भिक शिक्षा गांव में पूरी कर उच्च शिक्षा के लिए मुंबई आये और एल.एल.एम कर मुंबई के विधि महाविद्यालय में ही प्राध्यापक हो गये। मराठी, संस्कृत, हिन्दी व अंग्रेज़ी के प्रकांड विद्वान, लेखक व वक्तृत्व कला के धनी आपटे जी ने भारत व विश्व के अनेक मंचों पर व्याख्यान दिये। उनके मौलिक चिंतन पर लिखी गई  कई पुस्तकें आज उपलब्ध हैं। नेशन फ़र्स्ट व सुप्रीम कोर्ट जजमेंट आन हिंदुत्व बहुत ही ज्ञानवर्धक व शोधपरक पुस्तकें नई पीढ़ी के लिए संदर्भ ग्रंथ हैं।


1960 के दशक में विद्यार्थी परिषद से जुड़ने के बाद लगभग 40 वर्ष तक उन्होंने यशवंतराव केलकर के साथ परिषद को दृढ़ संगठनात्मक और वैचारिक आधार दिया। विद्यार्थी परिषद ने न केवल अपने, अपितु संघ परिवार की कई बड़ी संस्थाओं तथा संगठनों के लिए भी कार्यकर्ता तैयार किये हैं। इसमें आपटे जी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।आज मेरे जैसे लाखों कार्यकर्ताओं की व्यक्तिगत रूप से चिंता करते हुये उनके सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।


1974 में विद्यार्थी परिषद के रजत जयंती वर्ष में वे राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये। इस समय महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध देश में युवा शक्ति सड़कों पर उतर रही थी। इस आंदोलन को विद्यार्थी परिषद ने राष्ट्रव्यापी बनाया। जयप्रकाश नारायण द्वारा इस आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार करने से यह आंदोलन और अधिक शक्तिशाली हो गया।

इससे बौखलाकर इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया। आपटे जी भूमिगत होकर आंदोलन का संचालन करने लगे। दिसम्बर 1975 में वे पकड़े गये और मीसा नामक काले कानून के अन्तर्गत नासिक सेंट्रल जेल में ठूंस दिये गये, जहां से फिर 1977 में चुनाव की घोषणा के बाद ही वे बाहर आये। जेल जीवन के कारण उनकी नौकरी छूट गयी। अतः वे वकालत करने लगे। अगले 20 साल तक वे गृहस्थ जीवन, वकालत और विद्यार्थी परिषद के काम में संतुलन बनाकर चलते रहे। उन्होंने संगठन के बारे में केवल भाषण नहीं दिये बल्कि वे इसके जीवंत स्वरूप थे।


उनकी एक मात्र पुत्री चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई पूरी कर दो वर्ष विद्यार्थी परिषद की पूर्णकालिक रही। फिर उसका अन्तरजातीय विवाह परिषद के एक कार्यकर्ता से ही हुआ। उनकी पत्नी श्रीमती उर्मिला आपटे भारतीय स्त्री शक्ति संगठन की संस्थापक अध्यक्ष रहीं। आज महिला विषयों पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर महिलाओं के लिए कार्य कर देशव्यापी संगठन बन गया है।इस प्रकार विचार, व्यवहार और परिवार, तीनों स्तर पर वे संगठन से एक रूप हुए।


1996 से 1998 तक वे महाराष्ट्र शासन के अतिरिक्त महाधिवक्ता रहे। वेस्टर्न एडवोकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहते हुये मुंबई हाईकोर्ट में चार जजों के भ्रष्टाचार को लेकर आंदोलन कर उन्हें बर्खास्त कराया।जब उन्हें भाजपा में जिम्मेदारी देकर राज्यसभा में भेजने की चर्चा चली, तो उन्होंने पहले संघ के वरिष्ठजनों से बात करने को कहा। इसके बाद वे आठ वर्ष तक भाजपा के राष्ट्रीय 

उपाध्यक्ष, संसदीय बोर्ड के सदस्य तथा 12 वर्ष तक महाराष्ट्र से राज्यसभा के सदस्य रहे।भारतीय जनता पार्टी संसदीय बोर्ड में दस वर्षों तक रहते हुये पार्टी संगठन को सही दिशा में ले जाने का कार्य किया ।

लोग अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद वर्षों तक दिल्ली में मिले भवनों में अवैध रूप से डटे रहते हैं; पर आपटे जी ने कार्यकाल पूरा होने के दूसरे दिन ही मकान छोड़ दिया।

नियमित आसन, प्राणायाम, व्यायाम और ध्यान के बल पर आपटे जी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता था; पर जीवन के  अंतिम एक-दो वर्ष में वे अचानक कई रोगों से एक साथ घिर गये, जिसमें श्वांस रोग प्रमुख था। समुचित इलाज के बाद भी 17 जुलाई, 2012 को आज ही के दिन उनका मुंबई में ही देहांत हुआ।


 आज 10वीं पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि!!!


*डा. राकेश मिश्र *

(पूर्व प्रदेश अध्यक्ष )

*अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद *



No comments