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प्रसंगवश: अन्तर्राष्ट्रीय वर्चुअल रामलीला (6 से 15 अक्टूबर, 2021) के अवसर परः “पौराणिक एवं ऐतिहासिक स्थान ओरछा” डॉ. राकेश मिश्र

 (अध्यक्ष, पं. गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास)

(पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद महाकौशल)


भारत के हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में (झांसी के निकट) स्थित प्रकृति, अध्यात्म, इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम का समेकित स्थल ओरछा भारत के साथ ही विश्व पटल पर प्राकृतिक सौन्दर्य एवं ऐतिहासिक महत्व के लिए चर्चित है। 


बुन्देलखंड का प्रवेश द्वार झांसी : भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण क्षेत्र बुन्देलखण्ड का प्रवेश द्वार झांसी है। पहुंज और बेतवा नदियों के बीच स्थित झांसी शहर बहादुरी, साहस और स्वाभिमान का प्रतीक है। ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व वाले क्षेत्र बुन्देलखंड का यह प्रवेश द्वार है, ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में झांसी छेदी राष्ट्र, जेजाक भुक्ति, झझोटी और बुंदेलखंड का एक हिस्सा था। झांसी को ओरछा का प्रतापी वीर सिंह जू देव बुन्देला ने बसाया था। सन् 1857 का जो स्वतंत्रता संग्राम हुआ था, वह  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिये नींव का पत्थर साबित हुआ। 


ओरछा का भूगोल:  बेतवा नदी के किनारे बसे इस नगर की स्थापना श्री रुद्र प्रताप सिंह जू बुन्देला ने की थी। बुंदेलखंड की दो खूबसूरत और दिलचस्प जगहें हैं ओरछा और दातिया। ओरछा झांसी से लगभग आधे घंटे की दूरी 16 कि.मी.  पर स्थित है। ओरछा, म. प्र. के निवाड़ी जिला का मुख्य स्थान है। 


*राजा राम का आगमन : * भगवान श्रीराम का ओरछा में चार सौ वर्ष पूर्व राज्याभिषेक हुआ था और उसके बाद से आज तक यहां भगवान श्रीराम को राजा के रुप में पूजा जाता है। यह पूरी दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है। ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी कुंवर गणेश जी से कृष्ण उपासना के लिए वृंदावन चलने को कहा। रानी राम भक्त थीं, उन्होंने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की। इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे। संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना दृढ से दृढतर होती गई। लेकिन, रानी को कई महीनों तक रामराजा के दर्शन नहीं हुए। वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू में कूद पडी। यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए। रानी ने उन्हें अपना मंतव्य बताया। रामराजा ने ओरछा चलना स्वीकार किया, किन्तु तीन शर्तें रखीं- पहली, यह यात्रा पैदल होगी, दूसरी-यात्रा केवल पुष्य नक्षत्र में होगी, तीसरी-रामराजा की मूर्ति जिस जगह रखी जाएगी, वहां से पुन: नहीं उठेगी। रानी तीनों शर्तों को स्वीकार कर नौ माह तक पैदल चलते हुए 1574 की रामनवमी को ओरछा पहुंची। राजा मधुकरशाह ने राम राजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए करोडों की लागत से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया। जब रानी ओरछा पहुंचीं तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुहूर्त में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। लेकिन, राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया। राम आज भी इसी महल में विराजमान हैं और उनके लिए बना करोडों का चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान पडा है। यह भी एक संयोग है कि जिस संवत को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ, उसी दिन रामचरितमानस का लेखन भी पूर्ण हुआ। 

राजा राम को सलामी गारद :  यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें मंदिर के खुलने एवं बंद होने पर दिन में चार बार सलामी दी जाती है। यहां राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं। रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। छडदारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं। 


ओरछा में पुष्य नक्षत्र :

श्रीराम राजा के दर्शन करने के लिए पूरे बुंदेलखण्ड में पुष्य नक्षत्र का विशेष महत्व माना जाता है। बताया जाता है कि श्रीराम राजा सरकार पुष्य नक्षत्र में ही चलकर ओरछा पहुंचे थे। ऐेसे में पुष्य नक्षत्र में यहां के दर्शनों के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु तीर्थस्थल ओरछा पहुंचते है। जब भी पुष्य नक्षत्र होता है। यहाँ बहुत बड़ा मेला लगाया जाता है।

ओरछा के रमणीक स्थल : राज महल ओरछा के सबसे प्राचीन स्मारकों में एक है। इसका निर्माण मधुकर शाह ने 17 वीं शताब्दी में करवाया था। लक्ष्मीनारायण मंदिर 1622 ई. में वीरसिंह द्वारा बनवाया गया था। मंदिर, ओरछा गांव के पश्चिम में एक पहाड़ी पर बना है। चित्रों के चटकीले रंग इतने जीवंत लगते हैं जैसे वह हाल ही में बने हों। मंदिर में झांसी की लड़ाई के दृश्य और भगवान श्री कृष्ण की आकृतियां बनी हुईं हैं। चतुर्भुज मंदिर, राजमहल के समीप स्थित यह ओरछा का मुख्य आकर्षण है। मंदिर चार भुजाधारी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1558 से 1573 के बीच राजा मधुकर शाह ने करवाया था। अपने समय की यह उत्कृष्ट रचना यूरोपीय कैथोड्रल के समान है। ओरछा में यह स्थान भ्रमण के लिए बहुत श्रेष्ठ है। इसके अलावा फूलबाग एवं  सुन्दर महल भी दर्शनीय और रमणीक हैं । ओरछा की अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर, राजामहल, राय प्रवीण महल, हरदौल की बैठक, हरदौल की समाधि, जहांगीर महल और उसकी चित्रकारी प्रमुख है।

चन्द्रशेखर आजाद की कुटिया: इतना ही नहीं, ओरछा का भारत के स्वतंत्रता संग्राम से भी गहरा नाता है। अमर शहीद क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने भी अपने क्रांतिकारी जीवन के छह साल यहीं  बिताए थे। यहीं रहकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संग्राम का तानाबना बुना था। ओरछा स्थित सातार में वह एक कुटिया में पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से रहते थे। सातार में उनकी कुटी क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बन गई थी। अधिकांश गुप्त योजनाएं इसी कुटी में बनती थीं। ओरछा के जंगलों में उन्होंने दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण और बच्चों का अध्यापन कराया। इसके साथ ही यहां उन्होंने अपने साथियों के साथ निशानेबाजी भी की। उनकी शहादत के बाद मां जगरानी देवी ने भी जीवन के अंतिम क्षण यहां बिताए और यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली। 

पर्यटन व संस्कृति मंत्रालय का प्रयास : मध्य प्रदेश सरकार का पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय ओरछा के विकास के लिए प्रयासरत है, वहीं केंद्र सरकार भी इसके विकास के लिए कार्य कर रही है। ओरछा को राष्ट्रीय राजमार्गों से जोड़ा जा रहा है, जिससे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होकर यह विश्व पटल पर आ जाएगा। 6 अक्टूबर से 16 अक्टूबर के बीच राजा राम की लीला को विभिन्न संचार माध्यमों से देश-विदेश के करोड़ों लोगों तक पहुंचाकर ओरछा के महत्व को बताया जाएगा तब लोगों के मन में उत्सुकता बढ़ेगी, जिससे इस पूरे क्षेत्र के विकास को एक नई गति मिलेगी।

महाराजा हरदौल : बुंदेलखंड़ में पुरानी परंपराओं और लोक कथाओं का अब भी महत्व है, तमाम ऐसे रीति-रिवाज हैं जिन्हें सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं से जोड़कर बिना किसी झिझक निर्वहन भी किया जा रहा है। एक ऐसी परंपरा ओरछा के राजा ‘हरदौल' से जुड़ी है, जहां लोग शादी-विवाह हो या यज्ञ का भंड़ारा, उन्हें आमंत्रित करना नहीं भूलते। लोगों का मानना है कि राजा हरदौल को निमंत्रण देने से भंड़ारे में कोई कमी नहीं आती। ओरछा बुंदेलखंड़ में धार्मिक नगरी के रूप में चर्चित है। यहां के महाराजा वीर सिंह के सबसे छोटे बेटे ‘हरदौल' की वीरता और ब्रह्मचर्य के किस्से हर बुंदेली की जुबां पर हैं। महाराजा वीर सिंह के आठ पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़े का नाम जुझार सिंह व सबसे छोटे हरदौल थे। जुझार को आगरा दरबार और हरदौल को ओरछा से राज्य संचालन का जिम्मा विरासत में मिला हुआ था। बताया जाता है कि "सन 1688 में एक खंगार सेनापति पहाड़ सिंह, प्रतीत राय व महिला हीरादेवी के भड़कावे में आकर राजा जुझार सिंह ने अपनी पत्नी चंपावती से छोटे भाई हरदौल को ‘विष' पिला कर पतिव्रता होने की परीक्षा ली। विषपान से महज 23 साल की उम्र में हरदौल की मौत हो गई। जुझार की बहन कुंजावती, जो दतिया के राजा रणजीत सिंह को ब्याहीं थी, अपनी बेटी के ब्याह में भाई जुझार से जब भात मांगने गई तो उसने यह कह कर दुत्कार दिया क्योंबकि वह हरदौल से ज्यादा स्नेह करती थी। श्मशान मंस जाकर उसी से भात मांगे। बस, क्या था कुंजावती रोती-बिलखती हरदौल की समाधि पहुंची और मर्यादा की दुहाई देकर भात  मांगा तो समाधि से आवाज आई कि वह भात लेकर आएगा। "भांजी की शादी में राजा हरदौल की रूह भात लेकर गई, मगर दामाद (दूल्हे) की जिद पर मृतक राजा हरदौल को सदेह प्रकट होना पड़ा। बस, इस चमत्कार से उनकी समाधि में भव्य मन्दिर का निर्माण कराया गया और लोग राजा हरदौल को ‘देव' रूप में पूजने लगे।  शादी-विवाह हो या यज्ञ-अनुष्ठा्नों का भंड़ारा, लोग सबसे पहले चबूतरे में जाकर राजा हरदौल को आमंत्रित करते हैं, उन्हें निमंत्रण देने से भंड़ारे में कोई कमी नहीं आती है। 

*बेतवा नदी का कंचना घाट : * उत्तरायण होते सूर्य व ऋतुओं के संधिकाल की पावन बेला पर लोग पवित्र नदियों में स्नान कर तीर्थ क्षेत्रों में जाकर मंदिरों में पूजा अर्चना करते हैं। लेकिन, ओरछा के इस पर्व को लेकर एक अलग कहानी है। महाराजा मधुकर शाह की भक्ति की लाज रखने के लिए भगवान श्रीकृष्ण व राधारानी को प्रकट होना पड़ा था। उन्होंने बेतवा के किनारे राजा-रानी के साथ नृत्य भी किया था। उसी समय आसमान से सोने के फूलों की बारिश हुई थी। इसी आधार पर बेतवा के एक घाट का नाम कंचना घाट पड़ा। 

*ऐसे पहुंचे ओरछा: *ओरछा झांसी से लगभग 16 किलोमीटर दूर है। दिल्ली से यहां भोपाल शताब्दी-एक्सप्रेस के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है। ओरछा का नजदीकी हवाई अड्डा खजुराहो है जो 163 किलोमीटर की दूरी पर है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, वाराणसी और आगरा से नियमित फ्लाइटों से जुड़ा है। झांसी ओरछा का नजदीकी रेल मुख्यालय है। दिल्ली, आगरा, भोपाल, मुम्बई, ग्वालियर आदि प्रमुख शहरों से झांसी के लिए अनेक रेलगाड़ियां हैं। वैसे ओरछा तक भी रेलवे लाइन है जहां पैसेन्जर ट्रैन से पहुंचा जा सकता है। ओरछा झांसी-खजुराहो मार्ग पर स्थित है। नियमित बस सेवाएं ओरछा और झांसी को जोड़ती हैं। दिल्ली, आगरा, भोपाल, ग्वालियर और वाराणसी से यहां से लिए नियमित बसें चलती हैं।



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