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*प्रसंगवश : अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (08 मार्च) पर विशेष * ”भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रोत्थान में नारी की भूमिका “ महिला सशक्तिकरण के प्रति समर्पित नरेन्‍द्र मोदी जी डॉ. राकेश मिश्र (पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद )

 भारतीय संस्कृति में आदि काल से ही नारी का सर्वोच्च स्थान रहा है। राष्ट्र के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं  राजनीतिक जीवन में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत के धार्मिक-सांस्कृतिक परिवेश में देवी-देवताओं का समुच्चय दिखाई पड़ता है। सरल, सहज और सुखी जीवन के लिए आवश्यक ज्ञान, धन और शक्ति तीनों का प्रतिनिधित्व देवी सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा द्वारा किया जाता है। इसी प्रकार माँ अन्नपूर्णा अन्न और पोषण देने वाली हैं। भारतीय दार्शनिक प्रणाली में भी जीवन-ब्रह्मांड की उत्पत्ति 'पुरुष' और 'प्रकृति' का एक उत्पाद है। भगवान शिव को अर्द्धनारीश्वर कहा गया है, जो यह बताता है कि स्त्री के बिना पुरुष का अस्तित्व अधूरा है। मानव जीवन को प्रभावित करने वाली अनेक प्राकृतिक शक्तियों के नाम भी महिलाओं के नाम पर रखे गए हैं, उदाहरण के लिए जीवनदायी नदियाँ 'गंगा', 'यमुना', ‘सरस्वती’, 'कावेरी', 'नर्मदा' आदि सभी महिला नाम हैं। वैदिक शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि देवी अदिति अनंत और विशाल ब्रह्मांड की देवी हैं और देवी उषा प्रकाश की। भारतीय महाकाव्यों में भी माँ को प्रथम 'गुरु' के रूप में स्थान दिया गया है, जो बच्चे में आवश्यक नैतिक मूल्यों का सिंचन करती है, इसलिए यह कहना गलत नहीं है कि यदि महिला शिक्षित होती है तो पूरा परिवार शक्षित होता है, क्योंकि उसके माध्यम से ही बच्चा समाज को आत्मसात् करता है।  

     भारत को अपनी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता पर गर्व है, क्योंकि, महिलाओं की स्थिति के संबंध में मध्यकालीन और औपनिवेशिक काल की तुलना में प्राचीन काल में उन्हें बेहतर स्थिति और सम्मान प्रदान था। वैदिक काल में अनेक प्रसंग मिलते हैं, जहां महिलाओं ने आध्यात्मिक और बौद्धिक दोनों ही क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की। अगस्त ऋषि की पत्नी लोपामुद्रा ने ऋग्वेद के दो छंदों की रचना की। याज्ञवल्क्य ने अपनी पत्नी मैत्रेयी को दर्शनशास्त्र की शिक्षा दी थी। गार्गी एक श्रेष्ठ ऋषि थीं, जो याज्ञवल्क्य के साथ तत्वमीमांसा पर संवाद कर रहीं थीं। बौद्ध संघ में भिक्षुणियों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया। बौद्ध भिक्षुणियाँ आध्यात्मिक और बौद्धिक उपलब्धि प्राप्त करने के लिए समान रूप से पात्र थीं। मौर्य काल में महिलाओं को अंग रक्षक के रूप में भी नियुक्त किया जाता था। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में संपत्ति के संबंध में महिलाओं के लिए उदार प्रावधान किए थे। हालांकि प्राचीन काल के अंत तक बहु-विवाह, बाल-विवाह और अन्य कुरीतियों के कारण महिलाओं की स्थिति में लगातार गिरावट देखी गई।    

मध्यकाल में मीरा, अक्का महादेवी आदि जैसी अनेक विदुषी महिलाओं ने परंपरा से हटकर अपना स्थान बनाया  और लोगों का श्रद्धा और सम्मान अर्जित किया। मीरा ने भजनों की रचना की और अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध तपस्वी का जीवन व्यतीत किया। रुद्रम्मा देवी दक्षिण भारत के काकतीय साम्राज्य की रानी थीं, जिन्होंने विरोधियों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। उन्होंने न केवल अपने राज्य की प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखा, बल्कि अनेकों युद्ध भी जीते। मध्ययुगीन काल युद्धों और आक्रमणों का युग था और महिलाओं को परिवार का सम्मान माना जाता था, उनकी अत्यधिक रक्षा की जाती थी, जिस कारण उनकी स्थिति सिकुड़ती चली गयी। बहुविवाह, बालविवाह और सती-प्रथा का प्रचलन बहुतायत में हो गया, जिस कारण शिक्षा प्राप्त करने के मार्ग में अनेक बाधाएं खड़ी हो गईं।

ब्रिटिश या औपनिवेशिक काल में हालांकि महिलाओं की सामाजिक स्थिति में कुछ सुधार देखे गए। राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फुले आदि जैसे समाज सुधारकों के कहने पर नारी सशक्तिकरण के लिए कानून बनाए गए, लेकिन इनका कुछ खास असर नहीं हुआ। राष्ट्रीय आंदोलन के शीर्ष नेताओं की प्राथमिकता सामाजिक सुधारों के साथ आगे बढ़ने से पहले ब्रिटिश औपनिवेशिक बेड़ियों से आजादी हासिल करना था। सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख, रमाबाई रानाडे और भगिनी निवेदिता कुछ ऐसे नाम हैं, जिन्होंने महिला शिक्षा और उत्थान के लिए अथक प्रयास किया। आजादी के बाद इस दिशा में कई आवश्यक कदम उठाए गए और संविधान में महिला उत्थान व सशक्तिकरण के प्रावधान किए गए। 

दुर्भाग्यवश, अतीत से लेकर वर्तमान तक समाज में व्याप्त कुप्रथाओं और कुरीतियों का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव महिलाओं पर ही पड़ा है। घरेलू और सार्वजनिक स्थान/कार्यस्थल दोनों स्थानों पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा देखी गई है। इन सबका मूल कारण महिलाओं में शिक्षा की कमी है, जिसे परिवार द्वारा पुरुष सदस्य की तुलना में कम प्राथमिकता दिया जाना है। कोई महिला मां के रूप में किसी बच्चे के लिए पहली शिक्षक होती है। यदि वह शिक्षित है तो परिवार के समग्र विकास को समृद्ध करने में मदद करती है। दहेज प्रथा और परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ी उसकी मिथ अवधारणा के कारण भारत के कई समुदायों में महिलाओं को परिवार के लिए बोझ माना जाता है। इसलिए, महिलाओं को न केवल शिक्षा के अवसरों से वंचित किया जाता है, बल्कि कई रूढ़िवादी समाजों में उनके साथ भेदभाव किया जाता है और कभी कभी तो जन्म से पहले ही मार दिया जाता है।

महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए विशेष योजनाओं के माध्यम से उन्हें सशक्त बनाकर, उनकी स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। ये योजनाएं और अधिक सार्थक हो सकती हैं, यदि इन योजनाओं को बनाने में महिलाओं की सहभागिता हो। इस दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि 17वीं लोकसभा चुनाव में हासिल हुई, जब चुनाव लड़ने वाली 716 महिला उम्मीदवारों में से 78 महिला संसद सदस्य (सांसद) चुनी गईं, जो आजादी के बाद सर्वाधिक संख्या है। भाजपा सरकार ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में अनुसूचित जनजाति (एसटी) की महिला श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को चुनकर इस उपलब्धि को और आगे बढ़ाया। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने 25 जुलाई, 2022 को भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। 2014 में श्री नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्ववाली सरकार में पहली महिला विदेश मंत्री के रूप में सुषमा स्वराज ने विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ी। दूसरी महिला वित्तमंत्री के रूप में श्रीमती निर्मला सीतारमण को चुनकर महिला सशक्तिकरण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को स्थापित किया। 

  पिछले नौ वर्षों में श्री नरेन्‍द्र मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। इसका उद्देश्य महिलाओं को उचित सामाजिक गरिमा प्रदान करना और रोजगार के अवसर सुनिश्चित करना है। सरकार प्रत्येक स्तर पर समानता लाने, महिलाओं को सशक्त बनाने और बाल शिक्षा के उत्थान के लिए प्रयासरत है। इस संबंध में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ योजना’ एक स्वागत योग्य कदम है, क्योंकि यह लिंग आधारित कुंठित प्रवृत्ति को रोकती है और बालिकाओं की शिक्षा और भागीदारी सुनिश्चित करती है। ‘कामकाजी महिला छात्रावास योजना’ उन महिलाओं के लिए छात्रावास सुविधाओं के रूप में सुरक्षित आवास और पर्यावरण को बढ़ावा देती है, जो अपने घर से बाहर काम करने के लिए जाती हैं। 18 वर्ष से कम आयु की बालिकाओं और 5 वर्ष की आयु तक के बालकों के लिए आवास के अलावा उनके बच्चों की देखरेख की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। ‘महिला ई-हाट योजना’ भारत में महिला सशक्तिकरण योजनाओं में से एक है जो महिला उद्यमियों को प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का अवसर प्रदान करती है और उनके उत्पादों को एक ऑनलाइन मंच प्रस्तुत करती है। ‘STEP’ (महिलाओं के लिए प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम का समर्थन) भारत में कौशल विकास में प्रशिक्षण प्रदान करने और महिलाओं को रोजगार सुनिश्चित करने के लिए शुरू की गई सबसे प्रभावी महिला सशक्तिकरण योजनाओं में से एक है। ‘महिला शक्ति केंद्र’ (MKS) एक लोकप्रिय महिला सशक्तिकरण योजना है, जिसका उद्देश्य महिलाओं में कौशल विकसित करने, रोजगार के अवसर पैदा करने और डिजिटल साक्षरता बढ़ाने के लिए वन-स्टॉप संमिलित सहायता सेवाएं प्रदान करना है। इसके अलावा महिलाओं को प्रोत्साहित करने और उनकी उपलब्धियों को राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने के लिए भारत सरकार ने ‘नारी शक्ति पुरस्कार’, ‘स्त्री शक्ति पुरस्कार’, ‘राज्य महिला सम्मान’ और ‘जिला महिला सम्मान’ आदि जैसे विभिन्न पुरस्कारों का प्रावधान क्या है। 

उज्ज्वला योजना के माध्यम से गैस सिलेंडर उपलब्ध कराकर चूल्हे पर खाना बनाते हुए फेफड़े की बीमारी का शिकार होने से महिलाओं को बचाया गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना में घर का आवंटन गृहिणी के नाम पर करके सरकार ने महिलाओं का सशक्तिकरण किया है।

मध्‍य प्रदेश में भाजपा सरकार ने “लाडली बहना योजना” चला कर प्रदेश में महिलाओं का सशक्तिकरण का कार्य आरम्‍भ किया है। लाड़ली बहना योजना की शुरुआत मध्य प्रदेश सरकार द्वारा की गई। इस योजना की घोषणा मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा जयंती के अवसर पर 28 जनवरी 2023 को बुधनी में नर्मदा तट के पावन स्थल पर की थी। इस योजना के तहत प्रदेश में रहने वाले सभी बेटियों को 1000 प्रति माह दिया जाएगा। हमारे देश में कई लोग आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण अपनी बहन को उच्च शिक्षा नहीं दे पाते  है। प्रदेश में रहने वाले कई लोग ऐसे भी हैं जो अभी भी लड़के और लड़कियों में भेद-भाव करते है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस योजना की शुरुआत की है। देश में अन्‍य भाजपा शासित राज्‍यों में भी महिला सशक्तिकरण के लिए  कई कार्यक्रम चलाये गये हैं। भारत सरकार महिलाओं के खिलाफ होने वाले विभिन्न प्रकार के अपराधों विशेषकर यौन उत्पीड़न के प्रति विशेष रूप से जागरूक और सतर्क है। इसलिए, ऐसी समस्याओं को दूर करने के लिए और महिलाओं के खिलाफ अपराध की रोकथाम के लिए विभिन्न योजनाओं और उपायों को अपनाया गया है। निर्भया, वन स्टॉप सेंटर योजना, महिला हेल्पलाइन योजना आदि योजनाएं, जिन्हें मुख्य रूप से संकट काल में विशेष रूप से बलात्कार, तस्करी और विभिन्न अन्य घृणित अपराधों की शिकार महिलाओं को आवश्यक और तत्काल सहायता प्रदान करने के लिए शुरू किया गया है। सरकार का प्राथमिक उद्देश्य व्यक्ति की पहचान का खुलासा किए बिना एक ही स्थान पर अपराध के शिकार लोगों को भोजन, आश्रय, पुलिस डेस्क, चिकित्सा-सुविधा, परामर्श और कानूनी सहायता जैसी सभी आवश्यक सहायता प्रदान करना है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए सभी अपराध संभावित क्षेत्रों, गलियों, संस्थानों और भवनों आदि में सीसीटीवी कैमरे भी लगाए जा रहे हैं। 


माननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी के कुशल निर्देशन में महिलाओं के खिलाफ अपराध में जबरदस्त कमी आई है। सरकार के इन अनवरत प्रयासों से महिलाओं को सशक्त बनाने का लक्ष्य निश्चित रूप से हासिल किया जा सकेगा। यह देश की महिला नागरिकों के प्रति हमारी दृढ़ प्रतिबद्धता है।




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