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श्रीमती शांति मिश्रा की पंचम पुण्य तिथि 15 अप्रैल पर विशेष) परोपकार की पराकाष्ठा है सामूहिक परिणय यज्ञ डॉ. राकेश मिश्र

 कहा जाता है कि “कीर्तिर्यस्यसह जीवति” अर्थात जिनकी कीर्ति हो वह सदैव जीवित रहते हैं। लेकिन, यह कीर्ति जब दूसरों के लिए हो, समाज के लिए हो, जरूरतमंदों के लिए हो तो यह पुण्य की पराकाष्ठा होती है। बुंदेलखंड क्षेत्र में महान कर्मयोगी पं.गणेश प्रसाद मिश्र के संदेश से प्रेरणा लेकर समाज को सशक्त बनाने के लिए “सर्वे भवन्तु सुखिनः” के उद्देश्य के साथ वर्ष 2017 में स्थापित पं.गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास “नर सेवा ही नारायण सेवा” को सार्थक बनाने के लिए सतत क्रियाशील है। ममता की प्रतिमूर्ति माता शांति देवी की प्रेरणा से पं. गणेश प्रसाद मिश्र दद्दाजी के नाम पर गठित यह सेवा न्यास हर क्षेत्र में निरंतर कार्यरत है और एक प्रेरणा का स्रोत है। वर्तमान समय में सामाजिक जटिलताओं एवं अन्य कारणों से पुत्री का विवाह कई परिवारों के लिए समस्या बनकर खड़ी हो जाती है। ऐसे में पं. गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास आगे आया और उसने इस पुनीत कार्य अपने हाथों में लिया। यह कार्य अनुपम और अनुकरणीय सिद्ध हुआ।  न्यास ने “द्वारचार व परिणय संस्कार” के अंतर्गत सामूहिक विवाह कार्यक्रम का आयोजन आरंभ किया तो उन परिवारों के लिए ख़ुशी की सौगात जैसा मिला, जो अपने संतान का विवाह कराने में असमर्थ थे। न्यास की ओर से चार जुलाई 2021 को दद्दा बाई स्मृति में सामूहिक विवाह कार्यक्रम का आयोजन किया गया।इसमें 19 जोड़ों को द्वारे-द्वारे जाकर सामूहिक विवाह कराया गया। यह कार्यक्रम  “द्वारे-द्वारे परिणययज्ञ” के नाम से संपन्न हुआ। इसमें सिर्फ विवाह की ही रस्म अदायगी नहीं की गई, बल्कि उन जोड़ियों को संपूर्ण गृहस्थ जीवन की सीख दी गई। जब यह कार्यक्रम चल रहा था तो दोनों के परिजनों के चेहरे पर जो ख़ुशी और संतोष के भाव थे, वे बता रहे थे की न्यास ने जो पुनीत कार्य किया है, वह अविस्मरणीय है। इस बार भी 15 अप्रैल 2022 को सामूहिक परिणय यज्ञ का आयोजन किया गया है। न्यास के अध्यक्ष डॉ. राकेश मिश्र के मन में एक परिकल्पना थी कि अपने विवाह की 25 वीं वर्षगांठ पर 25 कन्याओं का विवाह कराएं। उन्होंने अपने संकल्प को पूरा करने के लिए सतत क्रियाशील हुए। परिणामस्वरूप  इस बार 26 कन्याओं का सामूहिक विवाह होने जा रहा है। इसमें समाज के विभिन्न वर्गों की वर और कन्या शामिल हैं। न्यास की व्यवस्था ऐसी है कि किसी भी वर या कन्या को यह महसूस तक नहीं हो कि उसका विवाह घर घर में नहीं हो रहा है। डॉ. राकेश मिश्र के पैतृक गांव धवर्रा (नौगाँव ) जिला महोबा, उत्तर प्रदेश में इसका आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन को लेकर क्षेत्र में भी लोगों में उत्साह का माहौल है। इसमें युगल जोड़ियों को न्यास की ओर से विदाई की भी विधिवत प्रक्रिया पूरी की जाती है। 2021 में कोरोना महामारी के कारण 19 जोड़ियों का विवाह 19 अलग-अलग स्थानों पर किया गया था। लेकिन, इस बार सामूहिक रूप से धवर्रा में संपन्न किया जा रहा है। एक संयोग है कि पं. गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास की स्थापना की प्रेरणास्रोत माता शांति जी की पुण्यतिथि अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक 15 अप्रैल को ही है। ममता की मूर्ति, करुणामयी, सौम्य, मृदुभाषी एवं शांत, यथानाम तथा गुण मां  'शांति देवी' ने हमेशा कर्तव्यों के प्रति सचेत रहते हुए अपने नाम को चरितार्थ किया। उनका यह सपना था कि सेवा और परोपकार को ही धर्म और कर्म माना जाए। इसे चरितार्थ करते हुए न्यास इस तरह का कार्य करके समाज के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रहा है। महान साधक और तपस्वी पति स्व. गणेश प्रसाद मिश्र (दद्दाजी) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में रचे-बसे, घर-बार छोड़कर देशसेवा हेतु चले जाने के पश्चात् पति पारायण होकर दोनों कुलों की मर्यादाओं का निर्वहन बड़ी दृढ़ता के साथ किया, वह अविस्मरणीय है । सन् 1948 में पति झांसी में पोस्टमास्टर की सेवा से त्यागपत्र देकर संघ कार्य में प्रचारक हो गए। गांधीजी की हत्या के समय पति के छह माह जेल में रहने पर उन्होंने बड़े साहस के साथ अपने वृद्ध सास-ससुर एवं ननद का सहयोग किया। वे बड़ी धर्मपरायण, कर्तव्यनिष्ठ, मृदुभाषी एवं स्पष्ट बोलने वाली थीं। संपूर्ण परिवार को एक सूत्र में बाँधने की कला में निपुण थीं, जिससे हर व्यक्ति अपने आपको उनसे जुड़ा हुआ पाता था और इसे अपना सौभाग्यमानता था।धर्म में उनकी गहन रुचि रखते हुए प्रत्येक तीज-त्यौहार को व्यवस्थित एवं पूरे मनोयोग से मनाती थीं। सोते समय 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' का पाठ जरूर करती थीं। उनके पास लोक-कथाओं का अथाह भंडार था, जिसका वे समय व परिस्थितियों को देखते हुए उपयोग करके बच्चों का मनोरंजन एवं उत्साहवर्धन कर उनका ज्ञानवर्धन भी करती थीं।शिक्षा के प्रति गहन रुचि होने के कारण उन्होंने पति (दद्दाजी) के सहयोग से अपने आपको पढ़ने-लिखने में पूर्णरूपेण दक्ष कर लिया। पुस्तकें व दैनिक समाचार-पत्र उनकी नियमित दिनचर्या के हिस्सा हो गए थे।भारत-भ्रमण एवं संस्कृति-परिचय में भी उनकी गहन रुचि रही। दद्दाजी के साथ चारों धाम की तीर्थयात्रा, लेह-लद्दाख में सिंधुदर्शन, अमरनाथ एवं गौमुख जैसी दुर्गम यात्राओं में भी सहभागी रहीं । गौसेवा के प्रति उनका विशेष रुझान था। जब भी समय मिलता, वे गौसेवा में लग जाती थीं। स्वयं के स्वास्थ्य के प्रति सदैव सतर्क रहतीं एवं अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित रखती थीं। 90 वर्ष की आयु में 15 अप्रैल, 2017 को दिल्ली में हृदयाघात के कारण उनका महाप्रयाण हो गया।पं.गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास का मुख्य उद्देश्य 'नर सेवा ही नारायण सेवा है' को सार्थक बनाना है। यह सेवा न्यास लोगों को सभी प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, भौतिक व धार्मिक सेवाओं के लिए समर्पित है।ऐसी ममतामयी माता जी के चरणों में विनम्र श्रद्धांजलि। 

शत् शत् नमन।





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