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दीक्षांत समारोह बुन्देली संस्कृति, संस्कार के बीच संपन्न दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर हर्ष एवं आनंद मिला: राज्यपाल शोध, स्वर्ण पदक और स्नातकोत्तरधारी 86 छात्रों का हुआ सम्मान

 महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय छतरपुर का प्रथम दीक्षांत समारोह स्वर्ण अक्षरों में रच-बसकर इतिहास में अमिट हुआ। बुधवार 16 मार्च को म.प्र. के राज्यपाल और कुलाधिपति श्री मंगुभाई पटेल की अध्यक्षता में बुन्देली संस्कृति, संस्कार और शौर्य गाथा की धरा पर मध्य पं. बाबूराम चतुर्वेदी स्टेडियम छतरपुर में संपन्न प्रथम दीक्षांत समारोह में 2017 से 2021 तक के विभिन्न शैक्षणिक विधाओं के प्रवीण छात्रों सहित शोधकर्ता, स्वर्ण पदक और स्नातकोत्तर डिग्रीधारी सहित कुल 86 छात्रों का सम्मान किया गया।

यह समारोह उस वक्त आत्मीय रूप से और अधिक सार्थक हुआ जब दृष्टि से दिव्यांग शा. ज्ञानचंद्र स्मृति स्नातकोत्तर महाविद्यालय दमोह की छात्रा श्रृष्टि तिवारी जिन्होंने एमए पॉलिटिकल में पीजी (स्नातकोत्तर) शिक्षा में अव्वल स्थान पाया। उन्हें राज्यपाल एवं कुलाधिपति तथा अतिथियों द्वारा गोल्ड मेडल सहित उपाधि प्रदाय की गई।

दीक्षांत समारोह का मंच नोबल पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी, उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव, विधायक एवं नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष श्री प्रद्युम्न सिंह लोधी, कुलगुरू प्रो. टी.आर. थापक और कुलसचिव श्री जे.पी. मिश्र की उपस्थिति में पल्लवित हुआ। समारोह में संभागायुक्त श्री मुकेश शुक्ला, आईजी श्री अनुराग, डीआईजी श्री विवकेराज सिंह, कलेक्टर संदीप जी आर, पुलिस अधीक्षक श्री सचिन शर्मा सहित समाज के गणमान्य एवं प्रबुद्ध नागरिक, जनप्रतिनिधि एवं विश्वविद्यालय परिवार के गुरूजन और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। 

 

उपाधि कागज का टुकड़ा नहीं, माता-पिता की तपस्या और गुरूओं की साधना का श्रीफल है


दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि एवं नोबल पुरस्कार श्री विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि भारत को सोने की चिड़िया यूं ही नहीं कहा जाता है, यह बात दीक्षांत समारोह में सम्मान प्राप्त करने वाली बेटियों को देखकर लगा। 86 सम्मानित होने वालो में से लड़कियां लड़कों से कई गुना अधिक रही। शौर्य गाथा एवं बलिदान के साथ-साथ शिक्षा एवं ज्ञान सृजन के क्षेत्र में बुन्देलखण्ड माटी की बेटियों ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है। उन्होंने कहा कि सम्मान स्वरूप भेंट की गई उपाधि कागज का टुकड़ा नहीं, माता-पिता की साधना और गुरूओं की तपस्या का श्रीफल है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी जब कॉलेज में आये थे तब और आज जब कॉलेज से सम्मानित होकर जा रहे है, दोनों की स्थितियों का सामने रखकर विचार करें, उनके जीवन में गुरूओं के ज्ञान सृजन से क्या और कौन-कौन सुखद बदलाव आये है।

विद्यार्थी पाषाण के टुकड़े और सूखी मिट्टी के रूप में आये थे। गुरू के ज्ञान एवं सीचे गये जल से वे ज्ञान के घड़े के रूप में दक्ष बने है और ज्ञान सृजन की मूर्ति बनकर यहां से प्रस्थान कर रहे है। आपने विद्यार्थियों से अपील की कि समाज और राष्ट्र को अर्जित किया गया ज्ञान किसी न किसी रूप में लौटाये। उन्होंने कहा कि ऊंचे स्वप्न देखे, ज्ञान एवं कर्म के सम्भावनाओं को तलाशे और कर्म करते रहने की दृढ़ इच्छाशक्ति करते रहे। इतिहास उन्हीं व्यक्तित्व का बनता है जो दूसरों के लिये कठिन तपस्या करते है।


भविष्य की दृष्टि से बहुआयामी कोर्स शुरू होंगे।


उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने छात्रों को कोटिशः दिल से बधाई दी। बुन्देलखण्ड में 1884 में एक मदरसे के रूप में कॉलेज की शिक्षा हुई। 1949 में स्नातक और 1957 से लेकर 2020 तक स्नातकोत्तर महाविद्यालय की सौगात मिली। 2021 में इसे यूनिवर्सिटी बनाया गया। आज बुन्देलखण्ड यूनिवर्सिटी डिग्रीयां दे रहा है। नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी को दीक्षांत समारोह में आमंत्रित कर छात्रों को शिखर तक कैसे जाते है का प्रेरणादाई संदेश दिलाया गया। देश के प्रधानमंत्री के नेतृत्व में नई शिक्षा नीति में युवाओं के लिये संभावनाओं को तलाशा गया। प्रदेश में नई शिक्षा नीति संकल्पित भाव से लागू हुई। आने वाले समय में छात्रहित में भविष्य की दृष्टि से बहुआयामी कोर्स शुरू होंगे। उन्होंने जोर देते हुये कहा कि स्वास्थ्य, पर्यटन एवं कृषि से जुड़े उपक्रमों की शिक्षा को शुरू करने की आवश्यकता है। इस दिशा में बुन्देलखण्ड यूनिवर्सिटी सार्थक कदम बढ़ाएंगी।  


दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर हर्ष एवं आनंद मिला: राज्यपाल


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री मंगुभाई पटेल ने उपस्थितों को भारत माता की जय और वंदे मातरम् का जयघोष कराया। उन्होंने कहा कि शौर्य गाथा एवं पराक्रम की माटी में रचे महाराजा बुन्देलखण्ड छत्रसाल यूनिवर्सिटी छतरपुर द्वारा उपाधि धारकों को सम्मानित करने के लिये आयोजित दीक्षांत समारोह अनूठा बना है। उन्हें यहां उपस्थित होकर हर्ष और गौरव हुआ है। उन्होंने युवाओं का आव्हान करते हुये कहा कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिये दिन-प्रतिदिन व्यायाम करें। उन्होंने इस विश्वविद्यालय द्वारा 24 नये पाठ्यक्रमों और 19 विषयों में शोध शुरू किये जाने पर खुशी जाहिर की, तो परीक्षा परिणाम घोषित करने में अव्वल रहने पर साधुवाद दिया।

उन्होंने आशा जताई की यह विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में विश्व के मानचित्र पर मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने बताया कि देश के प्रधानमंत्री ने युवाओं को जीवन की अंतर्मन की शिक्षा छूने का अवसर दिया है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों, क्षमताओं एवं आधुनिक विकास की तकनीकों का उपयोग करके आगे बढ़ना होगा। श्रृष्टि दाता ने केवल मानव को बोलने के लिये जुवान दी है। इसीलिये अंतर्मन से संवेदनशील बने, किसी दूजे के दर्द को देखकर उसकी सेवा करें। मानवीय जीवन में समाज के बेसहारा कमजोर और उम्रदराज लोगों की मदद करें। कार्यक्रम में मंचासीन अतिथियों का शॉल एवं श्रीफल तथा महाराजा छत्रसाल का प्रतीक चिन्ह भेंटकर सम्मान किया गया। दीक्षांत समारोह के प्रारंभ में फोटो सेशन के बाद वसंती परिधान और भारती संस्कृति के श्लोक उच्चारण के बीच शोभा यात्रा निकाली गई।

दीक्षांत समारोह मां सरस्वती के चित्र पर मल्यार्पण और दीप प्रज्जवलन से शुरू हुआ। राष्ट्रगान की प्रस्तुति के बाद कुलगान वंदना, सरस्वती वंदना की प्रस्तुति की गई। मंचासीन अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान कुलगुरू द्वारा किया गया। कुलगुरू ने स्वागत भाषण एवं प्रगति आख्या की प्रस्तुति दी तत्पश्चात् उपाधि धारकों को शपथ दिलाई गई। कार्यक्रम में डॉ. बहादुर सिंह परमार द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन किया गया। दीक्षांत समारोह के कार्यक्रम का संचालन डॉ. बहादुर सिंह परमार द्वारा किया गया।












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