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भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया देश में लागू होना चाहिए ‘एक घर-एक जवान का कानून’देश में लागू होना चाहिए ‘एक घर-एक जवान का कानून’

 देश की राजनीति ने दलगत लाभ तक ही केन्द्रित रहने की मानसिकता बना ली है। केवल वोट बैंक को मजबूत करने के लिये चल रहे प्रयासों ने राष्ट्र हित के चिन्तन को किस्तों में कत्ल करना शुरू कर दिया है। देश की ज्वलंत समस्याओं को दर किनारा करते हुये तात्कालिक घटनाओं पर आम आवाम को भटकाने के प्रयास किये जा रहे हैं। कहीं लखीमपुर मुद्दा गर्माया जा रहा है तो कहीं विजय यात्राओं के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन हो रहा है। कहीं किसानों के हितों की दुहाई पर आम नागरिकों के लिए समस्यायें पैदा की जा रहीं हैं तो कहीं धार्मिक उन्माद को हवा देने वाले पर्दे की ओट से अपने आकाओं को खुश करने में जुटे हैं। मगर वास्तविकता की ओर से सभी आंखें मूंदे बैठे हैं, न समझी का नाटक चल रहा है और सिंहासन हथियाने की होड में कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। किसी को भी तालिबानी दस्तक सुनने की फुर्सत नहीं है, पाकिस्तान की शह पर आतंकी तूफान के संकेत नहीं दिख रहे हैं और न ही चीन की चालाकी भरी चालें समझ में आ रहीं हैं। अनेक राजनैतिक दलों ने कश्मीर में हो रहे अल्पसंख्यकों के नरसंहार पर संवेदना के दो शब्द तक नहीं कहे। वहां जाकर देश की एकजटता का संकेत नहीं दिया। दो बूंद आंसू नहीं टपकाये। राजनैतिक दलों को यह कब समझ आयेगा कि जब देश की अस्मिता बचेगी, तभी तो राजनीति होगी और तभी सिंहासन से सत्ता चलेगी। पाकिस्तान के सहयोग से तालिबान ने जिस ढंग से अफगानस्तान पर कब्जा कर लिया और विश्व विरादरी हाथ पर हाथ धरे बैठी रही, यह स्पष्ट संकेत हैं कि आने वाले समय में जेहाद के नाम पर पाकिस्तान और तालिबान की जुगलबंदी से कश्मीर में न केवल सन् 1990 का अल्पसंख्यक नरसंहार दुहाराया जायेगा बल्कि कश्मीर को हथियाने के बाद समूचे हिन्दुस्तान पर एक बार फिर सिरियत कानून लागू करने की कोशिशें होंगी। इतिहास गवाह है कि जब भी देश पर बाह्य आक्रान्ताओं ने हमले किये, तब उनसे निपटने के लिए मुट्ठी भर सेनानी ही जूझते रहे। एक समय ऐसा भी आया कि जब देश के भितरघाती जयचन्दों ने आक्रान्ताओं के साथ मिलकर अपनों का ही सिर कलाम करवा दिया। उस समय यदि देश का आम आवाम उठ खडा होता, हथियार उठा लिए होता और एक साथ धावा बोल दिया होता, तो देश कभी गुलाम नहीं हो सकता था। आज भी हालात वैसे ही बन रहे हैं। देश के विभिन्न राजनैतिक दलों में केवल वोट बैंक बढाने की होड लगी है, नागरिकों को राष्ट्रीय समस्याओं से दूर रखने के लिए दोयम दर्जे के आंतरिक मुददें पर चिल्ला-चोट की जा रही है। कश्मीर घाटी में मृतकों के परिजनों को सांत्वना देने के लिए कोई भी आगे नहीं आया जबकि लखीमपुर पहुंचने के लिये सभी सफेदपोश जान दिये दे रहे थे। घाटी को वहां के अल्पसंख्यकों के खून से लाल करने पर तुले आतंकियों से केवल और केवल सेना के जवान ही लोहा ले रहे हैं। वे एक ओर पाकिस्तान की नापाक हरकतों को जबाब भी दे रहे हैं और दूसरी ओर चीन के साथ भी दो-दो हाथ करने लिए तैयार हैं। अब वक्त आ गया है कि जब पूरा देश एक जुट होकर कश्मीर के मुहाने पर खडे पाकिस्तानी और तालिबानियों के आतंकियों को क्रूरता भरा सबक सिखा दे बल्कि पर्दे के पीछे से चल रही चीनी चालों को भी मुहं तोड जबाब दे दे। बुंदेलखण्ड के लोगों ने जिस तरह से दीपावली के बाद श्रीनगर के लाल चौक पर एकत्रित होकर राष्ट्रभक्ति पुनर्जागरण अभियान का बिगुल फूंकने की घोषणा की है, वह एक अनुकरणीय प्रेरणा है, जिसे देश के विभिन्न भागों को व्यवहार में लाना चाहिए। सभी राज्यों के लोगों को भी एक साथ इस अभियान को चलाना चाहिए। लाल चौक पर संकल्प लेकर लौटते समय में नुक्कड सभायें, चौपाल बैठकों और संस्थागत कार्यक्रमों के माध्यम से जनजागरण करने की जो योजना बुंदेली आवाम ने बनायी है, उसे देश के कोने-कोने में लागू किया जाना नितांत आवश्यक हो गया है ताकि विश्व मंच पर भारत की एकता की मिशाल एक नये कीर्तिमान के रूप में स्थापित हो सके। यह भी सत्य है कि जयचन्द अपनी चालें चलते रहे हैं और आगे भी चलते रहेंगे किन्तु उनकी चिन्ता किये बिना आम आवाम के मध्य राष्ट्रभक्ति की भावना को ज्वाला बनकर स्थापित करना ही होगा। आम आवाम एक जुट हो जाये तो कोई ताकत नहीं है कि जो देश की ओर बुरी नजर से देख भी ले। व्यक्तिगत स्वार्थों की परिधि से बाहर आना गी होगा, परिजनों-स्वजनों के लाभ की सीमायें तोडना ही होंगी और करना ही होगा भारत माता का समर्पण के साथ अभिनन्दन। देश की सीमा पर दुर्गम परिस्थितियों में दुश्मन से जूझ रहे जवानों का मनोबल बढाने के साथ-साथ उनके परिवारों को अपना परिवार मानकर खडा होना होगा। देश में लागू होना चाहिए ‘एक घर-एक जवान का कानून’। जब हर घर से एक व्यक्ति सेना में भर्ती होगा तो फिर उसका पूरा परिवार देश के साथ खडा होगा। फिर व्यक्तिगत हितों की कीमत पर भी राष्ट्र का भाल प्रकाशित होगा, इसमें कोई दो राय नहीं है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।


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