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भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ (BSPS)के राष्ट्रीय संयोजक बने कृष्ण मोहन झा

 झारखण्ड के गढ़वा जिला के बंशीधर नगर में भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ की प्रथम कार्यकारणी की बैठक का आयोजन किया गया।इस अवसर पर बीएसपीएस की झारखण्ड इकाई  झारखंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन की गढ़वा जिला इकाई  के तत्वावधान में "कोरोनाकाल में पत्रकारों की भूमिका और योगदान "विषय पर एक  सेमिनार का भी आयोजन किया गया । सेमिनार में  मुख्य अतिथि के रूप में झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो उपस्थित थे । इस मौके पर देश के राजस्थान , छतीसगढ़ , बिहार , उत्तरप्रदेश , तमिलनाडु ,मध्यप्रदेश, उत्तराखंड ,गुजरात,उड़ीसा,हिमाचलप्रदेश ,हरियाणा ,पंजाब,असम, पश्चिम बंगाल,महाराष्ट्र,गोवा,के अलावा झारखंड राज्य के विभिन्न जिलों के पत्रकार प्रतिनिधि मौजूद थे । इस बैठक में सर्वसम्मति से देश के ख्याति लब्ध पत्रकार कृष्णमोहन झा को संगठन का राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त कर उन्हें  देश के अन्य राज्यों में संगठन के विस्तार का दायित्व सौपा गया| श्री झा की नियुक्ति पर संगठन के  राष्ट्रीय अध्यक्ष दिल्ली प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष संजय सिंह और राष्ट्रीय महासचिव शहनवाज हुसैन कहा  है कि श्री झा विलक्षण सांगठनिक के धनी हैं और उन्हें 

संगठन चलाने का दीर्घअनुभव है जिससे हमारे संगठन को‌ निश्चित रूप से लाभ मिलेगा| राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त होने के बाद कृष्णमोहन झा ने  कहा कि आज मुझे अकबर इलाहाबादी का शेर याद आ रहा है जो  आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस दौर में था जब अकबर इलाहाबादी को इस एक शेर ने सारे देश में मशहूर कर दिया था। उन्होंने निर्भीक, निष्पक्ष और सजग पत्रकार की लेखनी की ताकत को इस शेर के माध्यम से व्यक्त किया था-

खींचो ना कमानों को ,

 न तीर निकालो ।

गर तोप मुकाबिल हो 

तो अखबार निकालो ।।

आजादी के बात  पत्रकारिता की चुनौतियां बढ़ती गई । संचार का दायरा भी बढ़ा और सन 2000 के बाद भारत में संचार क्रांति आईं। शइतना ही नहीं पत्रकारिता के माध्यमों में भी जबरदस्त बदलाव आया। पहले समाचार पत्र पत्रिकाओं के रूप में केवल प्रिंट मीडिया ही पत्रकारिता का माध्यम था लेकिन बाद में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ,वेब मीडिया ,रेडियो और अब सोशल मीडिया आ चुके हैं। इतने तरह के बदलाव आने के बावजूद पत्रकारिता में सबसे बड़ा संकट विश्वसनीयता का देखने को मिल रहा है। अब ब्रेकिंग ,बिग ब्रेकिंग के चक्कर में सनसनीखेज खबरें परोसी जी रही हैं। किसी भी व्यक्ति की चरित्र हत्या अब पत्रकारिता में सामान्य सी बात हो गई है। मैंने पत्रकारिता के तथाकथित सबसे बड़े और सबसे पुराने संगठन में जिला सचिव से लेकर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तक का सफर तय किया है । श्रमजीवी  पत्रकारों के हित में कई लड़ाइयां भी लड़ी हैं परंतु आज मुझे बहुत अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि वर्तमान में ट्रेड यूनियन मूवमेंट विश्व के लगभग हर देश में दम तोड रहा है।  पत्रकारिता आज मिशन की जगह मुनाफे का उद्योग बन कर रह गई है। पत्रकारों के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि संस्थान उन्हें पत्रकार का दर्जा देने में भी संकोच कर रहा है जिसकी  मुख्य वजह यह है कि  उसे मजीठिया आयोग की सिफारिशों को अमल में लाना होगा और यही वजह है कि पत्रकार को संस्थान का एजेंट बनकर कांटेक्ट बेस पर कार्य करना पड़ रहा है । आज हम देख रहे हैं देश के बड़े-बड़े पत्रकार संगठन दो तीन गुटों में विभाजित हो गए हैं जिसके कारण पत्रकारों के हित में लड़ाई गौण हो चुकी है। जहां भी आप काम करने जाएंगे दूसरा विरोधी खेमा आपके कार्यक्रमों को और आपके प्रयासों को विफल करने में जुट  जाता है। इससे पत्रकार समाज के हित  प्रभावित होते हैं। और राजनेताओं अथवा व्यापारिक संस्थानों से किसी भी पत्रकारिता संगठन को अपेक्षित  सहयोग नहीं मिल पाता।इस संगठन के माध्यम से हमारा मकसद पत्रकारों के हितों की लड़ाई के साथ उनके वेलफेयर के लिए कार्य करना है। हम सब जानते हैं कि  इस कोविड-19 के दौर में हमारे हजारों पत्रकार साथी काल के गाल में समाहित हो गए । अफसोस की बात यह है कि सरकार ने और उन  मीडिया संस्थानों ने भी , जिनमें वे कार्य कर रहे थे , हमारे साथी की मदद करने की सहृदयता नहीं दिखाई। संबंधित  पत्रकार के परिवार के सामने रोजी रोटी का संकट उत्पन्न हो गया । यह विकट दौर तो गुजर गया लेकिन हमें यह आगाह कर गया कि अपने समाज के लिए हमें कुछ विशेष करना होगा हमें एकजुट होकर प्रयास करने होंगे ताकि हर छोटी बड़ी  समस्याओं के समाधान हेतु हम सरकार की तरफ टकटकी लगाए देखने की बजाय स्वयं के संगठन से ऐसे  पत्रकार बंधुओं की मदद कर सकें। यह तभी संभव हो पाएगा जब हमारा संगठन  निर्विवाद रूप से  समाज में पत्रकार जगत के हितों के सच्चे पैरोकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो।आज हम सब ने मिलकर श्रमजीवी पत्रकारों के जिस  नए संगठन की नींव रखी है उसे एक वट वृक्ष के रूप में विकसित करने की जिम्मेदारी का निर्वहन हम सबको मिलकर करना होगा। देश में पत्रकारिता का एक मिशन के रूप में उन्नयन,  पत्रकारिता के क्षेत्र में पदार्पण करने वाली नमी पीढ़ी को आधुनिक तकनीक में प्रवीणता हासिल करने में मदद करना , पत्रकारों के अधिकारों के संरक्षण के लिए कार्य करना और  किसी  पत्रकार के  आकस्मिक दुर्घटना का शिकार होने पर उसकी यथासंभव आर्थिक मदद  करना आदि उद्देश्यों को लेकर इस संस्था का गठन किया जा रहा है जिससे आप सभी सहमत होंगे और मुझे पूर्ण विश्वास है कि संगठन के इन पुनीत उद्देश्यों की पूर्ति में सभी सदस्य अपना सक्रिय सहयोग प्रदान करेंगे। हमें संस्था के विधिवत संचालन हेतु  आर्थिक संसाधनों के बारे में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।आचार्य चाणक्य ने  भी कहा है कि अर्थ के बगैर ना धर्म चल सकता है और ना ही कर्म ।इसलिए अर्थ की व्यवस्था कैसे हो इस बात की चिंता हर एक कार्यकर्ता को करनी होगी ।निकट भविष्य में ही हमारी अपने संस्थान के मुख पत्र का प्रकाशन प्रारंभ करने की  योजना भी  है  । जिसके  पंजीयन व अन्य औपचारिकताएं पूर्ण करने में कम से कम 6 माह का समय लगेगा तब तक हम अपने आर्थिक संसाधन जुटाने की दिशा में प्रयास जारी रख सकते है। हम अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय सिंह और महामंत्री शाहनवाज जी के मार्गदर्शन में दिल्ली में बड़ा  आयोजन करने जा रहे हैं जिसमें देश की  नामचीन हस्तियों और स्वनामधन्य पत्रकारों को आमंत्रित कर उनका सम्मान करने का निर्णय किया गया है। हमें विश्वास है कि हम उनसे संगठन के संचालन में अपेक्षित सहयोग प्राप्त करने में सफल होंगे। यद्यपि  यह कार्य बहुत सरल नहीं है लेकिन सामूहिक प्रयासों के माध्यम से हमारे इस अभियान में सफलता सुनिश्चित है।

 श्री कृष्ण मोहन झा ने अपनी नियुक्ति को चुनौती को रूप में स्वीकार करते हुए कहा है  कि पत्रकारों के व्यापक हितों के संरक्षण हेतु संस्था द्वारा जो उत्तर दायित्व उन्हें सौंपा गया है उसके निष्ठा पूर्वक  निर्वहन में वे कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे।

 कार्यक्रम में देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत पत्रकार संगठनों ने भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ में अपना विलय किया। जिन संगठनों ने भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ में विलय की घोषणा की उनमें, वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन तमिलनाडु, राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ, बिहार प्रेस मेंस यूनियन, छतीसगढ़ पत्रकार एसोसिएशन  प्रमुख हैं। शामिल हैं। बैठक में मौजूद  इन संगठनों के  पदाधिकारियों ने कहा कि भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ ही पत्रकारों की एकमात्र ऐसी संस्था है जिसे सुदूर क्षेत्रों में काम कर रहे पत्रकारों के हितों की चिंता है । हम सभी चाहते हैं कि यह संगठन देश में बिखरे पड़े पत्रकार संगठनों को एक मंच पर लाकर पत्रकारों के लिए आगे भी इसी तरह कार्य करता रहे। उल्लेखनीय है कि  आईएफडब्ल्यूजे, एनयूजे, आईरा, राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ, बिहार मेंस प्रेस यूनियन सहित अनेक  पत्रकार संगठनों के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने बड़ी संख्या में भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ का   दामन थाम लिया है।



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