अमेरिका के पलायन- इतिहास का नया अध्याय कृष्णमोहन झा/
9/11के भयावह आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान को नेस्तनाबूद करने के प्रण के साथ वहां अपने सैनिक उतारे थे और बीस साल बाद आज जब उसने अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुला लिया है तब तालिबान 2001 से भी अधिक ताकतवर बन चुका है और उसने जो ताकत बटोरी है वह उसे अमेरिका से ही मिली है। अमेरिकी हथियारों का जखीरा और विपुल मात्रा में अमेरिकी युद्धक सामग्री पर अब तालिबान का कब्जा है ऐसे में और उसके लड़ाके सड़कों पर हवाई फायर करते हुए अट्टहास कर रहे हैं तो इसके लिए अमेरिका अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकता है । दरअसल उसे तो केवल एक ही चिंता सता रही थी कि अफगानिस्तान से उसके सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया हर हालत में 31 तारीख के पहले पूरी हो जाए इसलिए उसने एक पल के लिए यह सोचने की जहमत नहीं उठाई कि उसकी युद्धक सामग्री तालिबान के साथ लग गई तो वे उसका कोई भी दुरुपयोग करने से नहीं चूकेंगे। नतीजा सामने है। तालिबान शासक अब फूले नहीं समा रहे हैं । अकूत सैन्य सामग्री पाकर वे खुद को अजेय मानने लगे हैं और उधर अमेरिका पर 'जान बची और लाखों पाए 'कहावत चरितार्थ हो रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भले ही अफगानिस्तान से अपने देश के सैनिकों की वापसी को सुनियोजित रणनीति का हिस्सा बता रहे हों परंतु यह समझना कठिन है कि अमेरिका 31 अगस्त के पहले ही अफगानिस्तान से बोरिया बिस्तर बांध कर पलायन करने के लिए क्यों मजबूर हो गया। दरअसल खुद को दुनिया का दरोगा समझने वाले महाशक्तिवाली देश तालिबान की इस धमकी से धमकी से घबरा गया था कि वह 31 अगस्त की अंतिम सीमा तक अपने सारे सैनिकों को अफगानिस्तान से बाहर निकाल ले अन्पय परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे। अमेरिका ने तालिबान की इस धमकी के आगे आत्म समर्पण कर दिया । जो अमेरिका बीस साल तक अपनी सैन्य ताकत के बल पर अफगानिस्तान में डटा रहा वह अगर निश्चित समय सीमा के बाद एक दिन भी वहां रुकने का साहस नहीं जुटा पाया तो निश्चित रूप से उसके लिए वह बेहद अपमान जनक स्थिति है। आश्चर्य की बात तो यह है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन अफगानिस्तान से अपने देश के सैनिकों की बेआबरू होकर वापसी को भी अपनी रणनीति की सफलता बता रहे हैं लेकिन इसमें दो राय नहीं हो तालिबान सकती कि अफगानिस्तान में तालिबान शासकों की अपमान जनक शर्तों को स्वीकार कर अमेरिका ने वहां से पलायन का जो रास्ता चुना वह दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति होने का दावा करने वाले महादेश को शोभा नहीं देता । काबुल विमान तल हुए आतंकी हमले में अमेरिका के 13 सैनिकों की मौत पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जब यह चेतावनी दी कि काबुल में आतंकी हमले की साज़िश रचने वाले संगठनों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी तब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अमेरिका अफगानिस्तान में कोई बड़ी सैन्य कार्रवाई करने जा रहा है लेकिन उसने जो एयर स्ट्राइक की निर्दोष परिवार के दस सदस्यों की दर्दनाक मौत हो गई जिसमें 7 बच्चे शामिल थे। यह भी पता चला है कि अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे गए दस निर्दोष व्यक्तियों में एक व्यक्ति ने तो पहले अमेरिकी सेना की मदद भी की थी । गौरतलब है कि अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने उक्त ड्रोन हमले के बाद दावा किया था कि उसने इस हमले में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट खुरासान के विस्फोटक से लदे वाहन को उडा दिया है। अफगानिस्तान में तैनात नाटो सेना के मेजर जनरल ने भी माना है कि जिस परिवार केे दस सदस्यों की अमेरिकी एयर स्ट्राइक में मौत हो गई उसका किसी आतंकी गतिविधियों में संलग्न होने के कोई सबूत नहीं हैं। बहरहाल अब अफगानिस्तान से अमेरिका सहित सभी दूसरे देशों के सारे सैनिकों की वापसी हो चुकी है। पंजशीर के थोड़े से हिस्से को छोड़कर बाकी अफगानिस्तान तालिबानी शासकों के कब्जे में आ चुका है। आज हर तरफ बस यही चर्चा हो रही है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान से पलायन कर केवल इतिहास दोहराया है। उसने अतीत में वियतनाम, कोरिया, ईराक , सोमालिया आदि देशों में भी इसी तरह बड़ी संख्या में अपने सैनिक भेजे थे और बाद में वहां से अपने उद्देश्य की पूर्ति होने के पहले ही पलायन का रास्ता चुन लिया था। उन देशों से पलायन का जो दाग तब अमेरिका के दामन पर लगा था उसे मिटाने का एक मनचाहा अवसर उसे अफगानिस्तान में मिला था परंतु अफगानिस्तान की अमन पसंद आबादी को निर्मम तालिबानी शासकों के रहमो-करम पर छोड़ कर उसने वहां से जो पलायन किया उससे वह दाग अब और गहरा हो गया है। पिछले एक पखवाड़े से काबुल विमान तल पर हजारों की संख्या में जो भूखे प्यासे अफगान नागरिक और मासूम बच्चे इस उम्मीद में दिन गुजार रहे थे कि किसी देश का विमान उनकी हालत पर तरस खाकर उन्हें अपने देश में शरण देने के लिए ले जाएगा वे अब सूनी आंखों के साथ अपने घरों को लौटने लगे हैं। वे सब आह भरते हुए बस एक ही बात कह रहे हैं कि अमेरिका ने हमें धोखा दिया। ऐसे निरीह नागरिक और मासूम बच्चे यह नहीं जानते कि आगे उनकी किस्मत में क्या लिखा है परंतु अभी तो उनकी आंखों के आगे हर तरफ अंधेरा ही छाया हुआ है।
अफगानिस्तान में अमेरिका जिस तरह अपने सैनिकों की सुरक्षित वापसी में कामयाब रहा उससे यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या उसने इसके लिए तालिबान के साथ कोई सीक्रेट डील कर ली थी । दरअसल जब अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआईए के मुखिया ने कुछ दिन पहले अफगानिस्तान के गुप्त प्रवास पर जाकर तालिबानी सत्ताधारियों से मुलाकात की थी तभी यह संदेह व्यक्त किए गए थे कि सीआईए प्रमुख के अफगानिस्तान दौरे का असली उद्देश्य तालिबानी शासकों के साथ मिलकर अमेरिकी सैनिकों की सुरक्षित वापसी की कार्ययोजना से तालिबानी शासकों को राजी करना था। अमेरिका को अपनी योजना में सफलता भी मिली लेकिन उसे तालिबान की इस शर्त के आगे झुकना पड़ा कि उसके सैनिक किसी भी सूरत में 31 अगस्त के बाद अफगानिस्तान की धरती पर नहीं रुकेंगे। यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया के दौरान तालिबान के विरुद्ध कठोर भाषा का इस्तेमाल नहीं किया । जब आम नागरिकों के तालिबान की क्रूरता के किस्से सामने आ रहे थे तब भी उसने तालिबान की निंदा करने के बजाय अफगान सैनिकों को जिम्मेदार ठहराकर एक तरह से तालिबान के प्रति नरमी दिखाई। दरअसल अब अमेरिका परोक्ष रूप से यह साबित करना चाहता है कि आज के तालिबानी शासक अब वैसे बर्बर नहीं हैं जैसे वे 2001 के पहले थे । अगर अमेरिका अपनी जगह सही है तो फिर उसे इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि तालिबान के पास सत्ता की बागडोर आने से अफगानिस्तान के नागरिक इतने भयभीत क्यों हैं कि वे अपनी मातृभूमि छोड़कर जाने में ही उन्हें अपना भविष्य सुरक्षित दिखाई दे रहा है। अफगानिस्तान में जिस तरह महिलाओं को अपने घरों की चारदीवारी के अंदर रहने ही रहने के निर्देश तालिबानी शासकों ने दिए हैं उस पर अगर अमेरिका मौन धारण कर लिया है तो निःसंदेह यह आश्चर्य का विषय है । जिस देश में उपराष्ट्रपति पद की कुर्सी पर एक महिला आसीन हो वह देश दुनिया के किसी भी हिस्से में महिलाओं के साथ हो रहे दोयम दर्जे के व्यवहार पर चुप्पी कैसे साध सकता है। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने ऐसे बहुत से सवालों को जन्म दिया है जिनका कोई संतोष जनक जवाब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के पास नहीं है।
(लेखक डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)
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