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ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिली मुंह मांगी'मुराद' कृष्णमोहन झा/

 लगभग सवा साल पहले  कांग्रेस  छोड़कर भाजपा में शामिल हुए मध्यप्रदेश के वरिष्ठ राजनेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अब केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री बन चुके हैं हालांकि उनका केंद्र में मंत्री बनना तो उसी दिन तय हो गया था जिस दिन उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड कर भाजपा में शामिल होने की घोषणा की थी।  वे अपने सम्मान की रक्षा के लिए भाजपा में आए थे और उनके अंदर छिपी असीम संभावनाओं ने उन्हें मोदी सरकार में मंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया। भाजपा के तीक्ष्ण बुद्धि नेतृत्व ने पार्टी के लिए कांग्रेस के इस कद्दावर नेता की उपयोगिता का अनुमान पहले ही लगा लिया था इसलिए भाजपा में सिंधिया के  शामिल होने के बाद जल्द ही उन्हें राज्यसभा में भेजकर यह भरोसा भी दिला दिया गया कि यह पार्टी उन्हें सर आंखों पर बिठाकर रखेगी। सिंधिया इसी सम्मान की चाहत के साथ भाजपा में आए थे। भाजपा में उनकी आवभगत कांग्रेस से आए नेता के रूप में नहीं बल्कि ग्वालियर के सिंधिया राजघराने की तीसरी पीढ़ी के सदस्य के रूप में की गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया को जल्द ही यह भरोसा हो गया कि   प्रधानमंत्री मोदी जब भी अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करेंगे तब उन्हें उनका जायज हक अवश्य मिल जाएगा इसलिए वे लगभग सवा साल तक धैर्य पूर्वक केंद्रीय मंत्रिमंडल के  विस्तार की प्रतीक्षा करते रहे। जुलाई के पूर्वार्द्ध में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  अपने  मंत्रिमंडल के विस्तार पर मंथन कर रहे थे तब ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम उनके जेहन में संभवतः सबसे ऊपर था। दरअसल उत्सुकता तो केवल इस बात को लेकर थी कि उन्हें कौन से मंत्रालय का प्रभार सौंपा जाता है। सिंधिया को  नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपते समय प्रधानमंत्री ने निःसंदेह  उनकी रुचि का भी ध्यान रखा है ।  नागरिक उड्डयन उनकी रुचि का कार्यक्षेत्र है इसलिए इस मंत्रालय में उनकी सूझ-बूझ और  विजन का सरकार को  निश्चित रूप से लाभ होगा। इसे भी एक संयोग ही कहा जा सकता है कि अपने स्वर्गीय पिता माधवराव सिंधिया के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत को समर्पित भाव से सहेज कर राजनीति में उनका नाम रोशन करने  वाले मध्यप्रदेश के इस ऊर्जा वान लोकप्रिय राजनेता को अब केंद्र सरकार में उसी महत्वपूर्ण मंत्रालय का प्रभार सौंपा गया है  जिसकी जिम्मेदारी कभी  नरसिंह राव सरकार में उनके स्वर्गीय पिता ने पूरी दक्षता के साथ संभाली थी । उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व राजीव गांधी सरकार में उन्होंने रेलमंत्री के रूप में देश में भारतीय रेल के आधुनिकीकरण और उसे जन आकांक्षाओं के अनुरूप व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शताब्दी ट्रेन प्रारंभ करने का श्रेय भी उन्हीं के नाम दर्ज है।  स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की गणना आज भी उन गिने-चुने रेलमंत्रियों में प्रमुखता से की जाती है जिन्होंने अपनी कार्य कुशलता और कल्पनाशीलता से भारतीय रेल का कायाकल्प करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।  जब ज्योतिरादित्य सिंधिया को नागरिक उड्डयन मंत्रालय के रूप में अपनी मौलिक सूझ-बूझ और दूरदर्शिता साबित करने का सौभाग्य मिला है तब उनके मन में निश्चित रूप से यह ललक होगी कि  वे  नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शित करें । इसमें दो राय नहीं हो सकती  कि मध्यप्रदेश में लगभग सवा साल पहले  भाजपा के लिए सत्ता के द्वार खोल कर वे केंद्रीय मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे है परन्तु यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र में पहली बार मंत्री नहीं बने हैं । अतीत में  जब कांग्रेस नीत गठबंधन के पास केंद्र सरकार की बागडोर थी तब भी केंद्रीय मंत्री के रूप में उन्होंने अपनी कार्यक्षमता और मौलिक सूझ-बूझ से तत्कालीन तत्कालीन को प्रभावित किया था । इसलिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा केंद्रीय मंत्री पद के लिए उनके चयन को केवल  मध्यप्रदेश में सवा साल पहले हुए सत्ता परिवर्तन से जोड़ कर देखना उचित नहीं होगा।  सिंधिया के मंत्री बनने से केंद्र में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व ही नहीं कद भी बल्कि बढ़ा है । इसका लाभ भी मध्यप्रदेश को निश्चित रूप से मिलेगा।  सिंधिया के अंदर वे सभी गुण मौजूद हैं जो एक केंद्रीय मंत्री के रिपोर्ट कार्ड में विशेष ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌योग्यता के अंकों के रूप में दर्ज किए जा सकते हैं । अतीत में वे केंद्रीय मंत्री के रूप में  वे अनूठी कार्य शैली, मौलिक सूझबूझ और दूरदर्शिता  का लोहा मनवा चुके हैं। उनके व्यक्तित्व में सम्मोहन है, मन में कुछ कर दिखाने की ललक है, वाणी में ओज है, आवाज में दम है, ऊर्जा और उत्साह से लबरेज हैं  । ये सारे गुण उन्हें अपने स्वर्गीय पिता माधवराव सिंधिया से विरासत में मिले हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीतिक सफर  एक विमान दुर्घटना में उनके पिता के आकस्मिक निधन होने के पश्चात प्रारंभ हुआ था परंतु इस सफर की शुरुआत में ही  यह संकेत मिलने लगे थे कि उनमें एक तेजस्वी और लोकप्रिय राजनेता बनने की सारी संभावनाएं मौजूद हैं। चूंकि उनके पास केंद्रीय मंत्री के अनुभव की पूंजी भी है इसलिए नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में  उनके मोदी सरकार के सफल मंत्री साबित होने में संशय की कोई गुंजाइश नहीं है।  भाजपा में शामिल होने से निश्चित रूप से 

सिंधिया का कद तो बढ़ा ही है लेकिन भाजपा के लिए भी यह फायदे का सौदा है। सिंधिया की कार्यकुशलता के अलावा  उनका सम्मोहक व्यक्तित्व, वक्तृत्व कला में

 निपुणता , संवाद अदायगी की अनूठी शैली निःसंदेह आगे आने वाले चुनावों में अधिकाधिक मतदाताओं को पार्टी से जोड़ने में सहायता सिद्ध होगी।

आज ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री की कुर्सी पर आसीन हो चुके हैं तो कांग्रेस पार्टी को वह घटना क्रम जरूर याद आ रहा होगा जब  2003 में संपन्न मध्यप्रदेश विधानसभा सभा  चुनावों में शर्म नाक हार के बाद सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस पार्टी को डेढ़   दशक के बाद 2018 में एक बार फिर सत्ता सुख नसीब हुआ था। तब पार्टी के लिए सत्ता के द्वार खोलने में जिन नेताओं ने अहम भूमिका निभाई थी उनमें दो बुजुर्ग नेताओं‌ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बाद तीसरा नंबर ज्योतिरादित्य सिंधिया का था जिन्हें चुनावों में पार्टी के प्रचार अभियान की बागडोर सौंपी गई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई । प्रदेश कांग्रेस के इन तीन दिग्गज़ों के कुशल चुनाव प्रबंधन और अथक परिश्रम से कांग्रेस ने भाजपा को अंकों के गणित में पीछे छोड़ दिया। बहुमत से थोड़ा दूर रह गई कांग्रेस ने जब निर्दलीय और बसपा विधायकों के सहयोग से सरकार का गठन कर लिया  तब कमलनाथ सरकार‌ ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा प्रारंभ कर दी जबकि दिग्विजयसिंह का मार्ग दर्शन उस सरकार के लिए अपरिहार्य हो गया । ज्योतिरादित्य सिंधिया यह चाहते थे कि सरकार के अहम फ़ैसलों और नीतियों के निर्धारण में उनकी‌ राय का भी सम्मान होना चाहिए । सही मायनों में वे सरकार में इस अहमियत के हकदार भी थे परंतु ऐसा नहीं हुआ। कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय की उपेक्षा सिंधिया को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने कमलनाथ सरकार को सड़कों पर उतरने की धमकी तक दे डाली  परंतु मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह यह मानने की महा भूल कर बैठे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की कितनी भी उपेक्षा क्यों न की जाए ,वे सरकार का बाल भी बांका नहीं कर सकते।ज्योतिरादित्य सिंधिया की ताकत को  कम आंकना कमलनाथ सरकार को भारी पड़ गया। जब सिंधिया का धैर्य जवाब दे गया तो उन्होंने अपने गुट के 22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने का फैसला कर लिया इसके साथ ही कमलनाथ सरकार के पतन का मार्ग प्रशस्त हो गया। राज्य में पंद्रह साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी 14 महीने में सत्ता से बाहर हो गई। मुख्य मंत्री कमलनाथ , पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित उन सभी कांग्रेस नेताओं के पैरों तले की जमीन खिसक गई जिन्होंने सिंधिया के इस कदम की स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी।अपनी महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित होकर सिंधिया भाजपा में अपनी शर्तों पर शामिल हुए। मध्यप्रदेश में सत्ता खोकर पछता रही भाजपा ने सत्ता में वापसी करने के लिए सिंधिया

की सारी शर्तें सहर्ष स्वीकार कर लीं। शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बन ग ए, सिंधिया राज्य सभा में पहुंच गए और कालांतर में  सिंधिया गुट के अधिकांश विधायकों को शिवराज सरकार ने महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंप दी। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि कमलनाथ सरकार के अहम फ़ैसलों में अगर  ज्योतिरादित्य सिंधिया की महत्वपूर्ण राय को तरजीह दी गई होती तो कमलनाथ सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने में समर्थ हो सकती थी।

(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)


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