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सृजन और शक्ति का श्रोत हैं नारी श्रीमती प्रमिला मिश्रा

 आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। इस मौके पर सभी माताओं, बहनों और बेटियों को हार्दिक शुभकामनाएं। आज हर ओर महिला दिवस मनाने की होड़ है, नारी सम्मान के लिए शोर है और नारी सशक्तिकरण पर जोर है। लेकिन, नारी, स्त्री या महिला महज एक समान्य शब्द नहीं है, बल्कि एक ऐसा सम्मान है, एक आधार है, एक श्रृष्टि का श्रोत है, जिसे देवत्व प्राप्त हैं। नारी का मतलब है, वह शक्ति जिसमें सृजन, श्रृष्टि, सहनशीलता, संघर्ष और शक्ति का संगम हो। भारतीय संस्कृति में नारियों का स्थान वैदिक काल से ही देव तुल्य है। इसलिए नारियों की तुलना देवी देवताओं और भगवान से की जाती रही है। जब भी घर में बेटी का जन्म होता हैं, तब यही कहा जाता हैं कि घर में लक्ष्मी आई हैं। जब घर में नवविवाहिता बहुएं आती हैं, तो उसकी तुलना लक्ष्मी के आगमन से की जाती हैं। क्या कभी आपने कभी सुना है कि बेटे के जन्म कर ऐसी तुलना की गई हो? कि घर में कुबेर आए हैं या विष्णु का जन्म हुआ हैं, नहीं। यह अलग बात है कि कतिपय बाहरी प्रभाव के कारण इस सम्मान और सोच में बदलाव हुआ। हमेशा ही महिलाओं को कमजोर माना जाता रहा और उन्हें एक सीमा और बंधन में बांधने की कोशिश की गई। उसे घर में खाना बनाकर पालन पोषण करने वाली और बच्चों को जन्म देने वाली एक अबला नारी के रूप में देखा जाता रहा। रूढ़िवादिता के कारण समाज में यह भी कहा जाता रहा है कि महिलाओं को शिक्षा की आवश्यकता ही नहीं है, जबकि शिक्षा, विद्या और बुद्धि के लिए समाज जिसको पूजता है, वहां नारी का स्थान भिन्न है। मां सरस्वती जो विद्या की देवी हैं वो भी एक नारी हैं और यह समाज नारी को ही शिक्षा के योग्य नहीं समझता। नारी को अबला समझने वाले यह भूल जाते हैं राक्षसों का वध करने के लिए मां दुर्गा को ही अवतार लेना पड़ा। फिर आश्चर्य है कि कहां से यह समाज नारी के लिए अबला, बेचारी जैसे शब्द ले आया? ऐसे में जरुरत है महिलाओं को अपनी शक्ति समझने की और एक होकर एक दूसरे के साथ खड़े होकर स्वयं को वह सम्मान दिलाने की, जो वास्तव में नारी के लिए है। कहा गया है कि अगर एक आदमी को शिक्षित किया जाता हैं तब एक आदमी ही शिक्षित होता है, लेकिन जब एक औरत को शिक्षित किया जाता हैं, तब एक पीढ़ी शिक्षित होती है। औरत ही समाज की वास्तविक शिल्पकार है।


सच है कि अनेक नारियों ने विपरीत और कठिन परिस्थितियों का डटकर सामना करते हुए उन पर विजय प्राप्त की और इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। आज की बदली हुई अनुकूल परिस्थितियों में नारियां स्वयं को बदलने और पुरुष-प्रधान समाज द्वारा रचित बेड़ियों से स्वयं को आजाद करवाने हेतु कृतसंकल्प हैं। वैदिक काल की महिलाएं शिक्षित होती थीं। उनका विवाह परिपक्वता की वयस  में ही होता था तथा उन्हें अपने वर को चुनने की आजादी होती थी। मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आई। बाल विवाह, पुनर्विवाह पर रोक, बहुविवाह, सती प्रथा, देवदासी प्रथा जैसी कुरीतियों के माध्यम से नारी जाति का शोषण आरंभ हो हुआ। नारियों को पर्दे के पीछे कैद कर दिया गया। इसके बावजूद अनेक नारियों ने संघर्ष करते हुए राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियां अर्जित की। हालांकि इस कार्य में कई महापुरुषों ने भी अपना योगदान दिया। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के उन्मूलन तो ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह के पक्ष में बड़ा योगदान दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़कर उनके छक्के छुड़ा दिए। आजादी की लड़ाई में अनेक महिलाओं जैसे डॉ. एनी बेसेंट, विजयलक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। आजादी के बाद सन् 1950 में जब देश को संविधान मिला तो उसमें स्त्रियों को सुरक्षा, सम्मान और पुरुषों के समान अवसर व अधिकार तो मिले, लेकिन अशिक्षा, पुरातनवादी सोच तथा रुढ़िवादी सामाजिक व्यवस्था के कारण महिलाएं उन अवसरों और अधिकारों का लाभ नहीं उठा पाई। 


स्वतंत्र भारत के इतिहास को नारियों की गौरव गाथा से रीता नहीं रहना था। स्वतंत्रता की रजत जयंती के बाद का समय विकास का स्वर्ग साबित हुआ। देश में कम्प्यूटर तथा अन्य टेक्नोलॉजी के विकास, टीवी युग का प्रादुर्भाव, आधारभूत संरचना के साथ बड़े उद्योगों की स्थापना ने देश में विकास के कीर्तिमानों की नई इबारत लिख दी। बॉलीवुड, फैशन और मनोरंजन की दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। नारियों तक इस नवविकास की बयार पहुंची और उनकी स्थिति में काफी महत्वपूर्ण बदलाव आया।


आज नारियां पुरुषों से किसी मायने में न तो कम रही और न ही सिर्फ घर की चहारदीवारी में कैद रही। आज डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक व अंतरिक्ष यात्री तक में आसीन हैं। वे अपने वस्त्रों व जीवनशैली के साथ अपने जीवनसाथी का चुनाव करने के लिए स्वतंत्र हैं। उनकी सुरक्षा एवं हित रक्षा के लिए संविधान में लगभग 34 एक्ट प्रभावी हैं। कई मोर्चों पर तो नारियों ने साबित कर दिया है कि वे पुरुषों के समकक्ष नहीं, बल्कि उनसे बेहतर हैं। अब सोचना ये कि आने वाले समय में नारी कितना बदले और क्यों? समाज की कुछ उच्च शिक्षित नारियां और उनके संगठन शायद यह समझते हैं कि मनचाहे कम वस्त्र पहनना, रोक-टोकरहित मुक्त जीवन जीना, मुक्त सेक्स की राह पर चलना ही वांछित बदलाव है। इस बदलाव का उनके पास कोई तर्कयुक्त जबाब नहीं है, सिवाय इसके कि सदियों से चले आ रहे रहन-सहन व आचार-व्यवहार के हर नियम को उन्हें बस चुनौती देना है। इस बात में कोई संशय नहीं है कि नारी अपने जीवन में घर के सीमित दायरे के लिए नहीं बनी है। फिर भी नारी को यह भूलना नहीं चाहिए कि घर ही उनका किला और सबसे बड़ा कार्यक्षेत्र है, जिसकी कि वे अकेली ऑर्किटेक्ट हैं। घर की हर जिम्मेदारी को निभाकर वह अपने पति की धुरी और खुशहाल घर की नींव बनकर दिखाती है। ऐसे खुशहाल घरों से ही देश ताकतवर बनता है। हां, यह जरूरी नहीं कि घर संभालने में नारी अपने आपको इतना झोंक दे कि उसे अपने स्वास्थ्य, पोषण, खुशियों व अन्य सामान्य जरूरतों का ध्यान ही नहीं रहे। उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उसे घर में उतना ही सम्मान मिले जितना कि घर का पुरुष घर के बाहर काम करके अर्जित करता है। जरूरत पड़ने पर उसे इसके लिए कठोर बनकर भी दिखाना होगा। सुखद पहलू यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब बदलाव की बयार पहुंचने लगी है। वैसे समाज की जो भी रूढ़ियां, नियम या परंपराएं होती हैं, वह सारी की सारी न तो गलत हैं और न हीं सभी आंख मूंदकर मानने की बाध्यता। इसलिए यह भी याद रखना चाहिए कि जो भी बदलाव हों, वे तर्कसंगत होने चाहिए और उसमें दूसरों के हितों का भी ध्यान रखना चाहिये। आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरूष से कंधा मिलाकर चल रहीं हैं वो किसी भी काम में पुरूष से पीछे नहीं हैं। लेकिन नारी स्वतंत्रता का मतलब मनमानी, स्वतंत्र व अमर्यादित होना कतई नहीं है। यह भी सत्य है कि महिलाओं के साथ बीते समय में बहुत अत्याचार हुआ, उन्हें बहुत दबाकर रखा गया। अपनी मर्जी से कभी कुछ कर नहीं पाई। अपनी भावनाओं को दबाकर रखा। अपनी मां, दादी और नानी को प्रताड़ित होते हुए देखा। इसी सबका परिणाम है कि महिलाएं अपने को आर्थिक रूप से सबल बनाकर मनचाहे ढंग से रहना चाहती है।


आज के इस महत्वपूर्ण दिवस पर देश की महान नारियों का नाम लेना कुछ समय में संभव नहीं है। मैं देश और विश्व की समस्त नारियों को नमन करती हूं, जिन्होंने युग निर्माण में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है। महिला का सफर एक मां एक बेटी से शुरू होता है जो आज माँ है वही कल सास,दादी और नानी के किरदार निभाती है और जो आज बेटी है वह कल बहन, बुआ, मौसी, पत्नी, बहू, सहेली, प्रेमिका, ननद, साली, भाभी, मामी चाची ताई आदि अनेकों किरदारों में बट जाती है।


मां की जिम्मेदारी सबसे अहम मानी गई है और मां का दायित्व  ईमानदारी से निभाती है तो फिर सारे महिला के किरदार स्वत: बहुत अच्छे हो जाते हैं। फिर परिवार और समाज के किरदार भी अच्छे हो जाते हैं। अपने बच्चों को अच्छे खान-पान की आदतें, सभी का सम्मान करने की आदत ,भोजन पानी बिजली व अन्य कुछ भी बर्बाद ना करने की आदत, सभी कुछ बांटने की आदत, सबके साथ सामंजस्य करने की आदत डालने की कोशिश करें यदि आप एक बेटी की मां है तो बेटी को आप जिस तरह से युवा होने पर देखना चाहती हैं, वैसे ही उसका पहनावा, व्यवहार रखें, क्योंकि जो आदत बचपन में पड़ जाती है वह हमेशा रहती है। यदि आप बेटे की मां है तो बेटे को भी यही सब बताइयेगा उसका भी  विवाह होगा चाहे आपकी मर्जी से या हमारी मर्जी से पर एक लड़की आपके लिए अपना सब कुछ छोड़ कर आ रही है। इस तर्क पर मत जाइए कि हमेशा यही हो रहा है और हर लड़की घर छोड़कर आती है। उसे आपको अपना बनाना है। हम सबको मिलकर उसे अपना बनाना है। हम सबके लिए कुछ नहीं बदला पर उसका पूरा जीवन बदला है। भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे 'भोग की वस्तु' समझकर आदमी 'अपने तरीके' से 'इस्तेमाल' कर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन, हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी का सम्मान कैसे किया जाये, इस पर विचार करना आवश्यक है और ये विचार नारी,पुरूष और समाज तीनों को करना होगा और ईमानदारी से करना होगा। पं. गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास की और से नारी सशक्तिकरण एवं स्त्रियों के स्वास्थ्य के लिए लगातार प्रयास किये जा रह हैं। आवश्यकता है कि हर संस्था, व्यक्ति ठोस पहल करे।   


सभी महिलाओं को  अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की  शुभकामनाएँ ।


श्रीमती प्रमिला मिश्रा,

(एकेडमिक डायरेक्टर)

कमल मॉडल ग्रुप ऑफ़ एजूकेशन, नई दिल्ली


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