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शीतकालीन ओलम्पिक खेलों में भी राजनीति से बाज नहीं आया चीन कृष्णमोहन झा/

 चीन ने एक बार फिर भारत के सामने अपनी कुटिल राजनीति का उदाहरण पेश किया है और आश्चर्य की बात यह है कि इस बार उसने अपनी कुटिल  राजनीति के लिए खेलकूद का क्षेत्र चुना है  लेकिन उसे शायद यह याद नहीं रहा कि अपने पड़ोसी देशों के साथ हमेशा सामान्य संबंध रखने की नीति पर चलने वाला भारत वक्त पड़ने पर अपने किसी भी पड़ोसी देश की अवांछनीय हरकतों का माकूल जवाब देना भी जानता है। चीन में गत दिवस प्रारंभ हुए शीतकालीन ओलंपिक खेलों के उद्घाटन और समापन समारोह का राजनयिक बहिष्कार करने का फैसला करके मोदी  सरकार ने उसे  यही संदेश दिया है । मोदी सरकार के इस  सख्त फैसले की सारा देश भूरि भूरि प्रशंसा कर रहा है । सारा देश यही चाहता था कि चीन ने शीतकालीन ओलंपिक खेलों को अपनी कुटिल राजनीति  का शिकार बनाने की जो सोची समझी शरारत की है उसका मोदी सरकार को माकूल जवाब देना चाहिए। देश वासियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए  मोदी सरकार ने सराहनीय दृढ़ता दिखाई और चीन में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक खेलों के उद्घाटन और समापन समारोह का राजनयिक बहिष्कार करने का साहसिक फैसला लिया। इतना ही नहीं  केंद्र सरकार ने चीन में आयोजित शीतकालीन ओलंपिक खेलों का दूरदर्शन पर सीधा प्रसारण न करने की घोषणा की है ।भारत  ने  यह सख्त फैसला इसलिए किया क्योंकि चीन ने इस बार  शीतकालीन ओलम्पिक खेलों के उद्घाटन समारोह में मशाल वाहक का गौरव जानबूझ कर अपनी सेना के उस रेजीडेंट कमांडर क्वी फाबाओ को प्रदान किया जो लगभग दो वर्ष गलवान घाटी में हुई सैन्य झड़प में चीनी सेना का नेतृत्व कर रहा था । जाहिर सी बात है कि चीन ने जानबूझकर यह फैसला किया ।उसे यह बात अच्छी तरह मालूम थी कि गलवान घाटी की झड़प में जिस चीनी रेजीडेंट कमांडर की बड़ी भूमिका रही हो उसके हाथों में  शीतकालीन ओलंपिक खेलों की मशाल सौंपने  का फैसला भारत को पसंद नहीं आयेगा । चीन की यह एक सोची समझी शरारत थी जिसका विरोध करने के लिए भारत चीन में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक खेलों के उद्घाटन और समापन समारोह का राजनयिक बहिष्कार करने का फैसला किया। आश्चर्य की बात यह भी है कि चीन ने ओलंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह में मशाल वाहक के रूप में  जानबूझकर चीनी सेना के जिस  रेजीडेण्ट कमांडर फाबाओ को चुना उसे चीन का मीडिया हीरो के रूप में पेश कर रहा है। उधर ओलंपिक समिति के अध्यक्ष का कहना है कि उन्हें नहीं मालूम कि ऐसा कुछ हुआ है। चीन अगर चाहता तो भारत की आपत्ति के बाद शीतकालीन ओलंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह में  ओलंपिक मशाल लेकर दौड़ने के लिए फाबाओ की जगह किसी अन्य खिलाड़ी का नाम तय कर सकता था परन्तु उसने तो शीतकालीन ओलंपिक खेलों का भी अपनी कुटिल राजनीति के लिए मनचाहे अवसर के रूप में इस्तेमाल करने की योजना शायद पहले ही बना रखी थी। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक बयान में कहा कि यह दुखद है कि चीन खेलों का भी राजनीतिकरण कर रहा है । अमेरिका विदेश संबंधों की समिति के एक सदस्य जिम    रीश ने भी भारत का समर्थन करते हुए कहा है कि यह शर्मनाक है कि चीन ने शीतकालीन ओलंपिक खेलों में मशाल वाहक के रूप में चीनी सेना के उस रेजीडेण्ट कमांडर क्वी फाबाओ का चयन किया जो गलवान में भारत पर हमले में शामिल था। इसी बीच आस्ट्रेलिया  के एक अखबार ने यह खुलासा करके  चीन को असहज स्थिति का सामना करने के लिए विवश कर दिया है कि भारत के साथ गलवान घाटी में जून 2022 में  हुई हिंसक झड़प में उसके 4नहीं बल्कि 42सैनिक मारे गए थे। आस्ट्रेलिया के उक्त अखबार ने दावा किया है कि भारतीय सैनिकों के हाथों मारे जाने के डर से चीनी सेना के अनेक सैनिक गलवान नदी में कूद गए परन्तु पानी के तेज बहाव के कारण वे अपनी जान बचाने में असफल रहे। चीन में उइगर मुसलमानों पर किए जा रहे अत्याचारों की भी अमेरिकी विदेश संबंध समिति के जिम रीश ने निंदा करते हुए उनके प्रति अमेरिका का समर्थन व्यक्त किया है। गौरतलब है कि चीन में रहने वाले उइगर मुसलमानों के द्वारा तैयार किए गया काटन चीन की आमदनी का बहुत बड़ा जरिया है इसके बावजूद चीन में उइगर मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है और जब तब उन्हें क्रूर हिंसा का शिकार बनाया जाता है । चीन में उइगर मुसलमानों पर किए जा रहे अत्याचारों के विरोध स्वरूप चेक गणराज्य ने चीनी काटन का बहिष्कार करने की घोषणा की है ।

              चीन में चूंकि 14 सालों के बाद शीतकालीन ओलंपिक खेलों का आयोजन किया जा रहा है अतएव उससे यह उम्मीद की जा रही थी कि वह इतनी लंबी अवधि के बाद होने वाली खेल स्पर्धाओं में राजनीति का प्रवेश नहीं होने देगा परंतु उसने अंतरराष्ट्रीय जगत की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए इन खेलों का राजनीतिकरण करने में कोई संकोच नहीं किया।चीन के इस रवैए की अनेक देश कड़ी आलोचना कर रहे हैं जिनमें कुछ यूरोपीय देश प्रमुख हैं। बताया जाता है कि बीजिंग ओलंपिक कमेटी ने शीतकालीन ओलम्पिक खेलों में भाग लेने वाले सभी देशों के खिलाडिय़ों के लिए यह फरमान जारी कर दिया है कि वे उन्हें ओलंपिक खेलों के नियमों के साथ ही चीन में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा तय आचार संहिता का पालन करना होगा। यदि दूसरे देशों के खिलाडिय़ों ने ऐसे बयान दिए जिन्हें चीन अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है तो उन खिलाड़ियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। चीन सरकार ने  बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेलों की शुरुआत होने के पहले ही अपने देश की उन बड़ी हस्तियों को गिरफ्तार कर लिया है जिनके बारे में सरकार को यह आशंका थी कि वे मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए चीन सरकार की आलोचना कर सकते हैं। बीजिंग ओलंपिक समिति द्वारा तय किए गए नियमों के विरोध स्वरूप अमेरिका ब्रिटेन सहित कई पश्चिमी देशों ने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया यद्यपि चीन का साथ देने के लिए रूस आगे आ गया है ।रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने बीजिंग रवाना होने के पूर्व चीन को रूस का भरोसे मंद दोस्त बताया। गौरतलब है कि यूक्रेन के मुद्दे पर चीन खुलकर रूस का समर्थन कर रहा है ।


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