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गुजरात के अभिनव प्रयोग से सतर्क हुए भाजपाई मुख्यमंत्री कृष्णमोहन झा/

 देश के जिन राज्यों में  सत्ता  की बागडोर भारतीय जनता पार्टी के पास है उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को इस समय यह आशंका सता रही होगी कि अगले विधानसभा चुनावों के पहले पार्टी हाईकमान  कहीं उन्हें अपने  पद से इस्तीफा देने का फरमान तो नहीं भेज देगी । हाल में ही उत्तराखंड  और गुजरात में ऐसा हुआ है। इन दोनों राज्यों में ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌अगले साल विधानसभा चुनाव होना हैं। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को यह आशंका सता रही थी कि ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌अगर इन राज्यों में मुख्यमंत्री नहीं बदले गए तो वहां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की पुनः सत्ता में वापसी की संभावनाएं धूमिल पड़ सकती हैं। इसीलिए गुजरात में सत्ता की बागडोर विजय रूपाणी से लेकर भूपेंद्र पटेल को सौंप दी गई और उत्तराखंड में  दो माह के अंदर ही दो मुख्यमंत्री बदल दिए  गए। उधर ‌ कर्नाटक में पार्टी को दो कारणों से मुख्यमंत्री बदलने के लिए ‌विवश होना पड़ा।‌‌‌‌एक तो यह कि वीएस येदियुरप्पा 75 वर्ष की आयु सीमा पार चुके थे और दूसरे , उनके सरकार के कामकाज में उनके परिवारजनों की दखलंदाजी के आरोपों को नकारना पार्टी के लिए मुश्किल साबित हो रहा था। इसीलिए वीएस येदियुरप्पा की जगह  बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया। यहां यह भी याद रखना होगा  कि इसी ‌साल के पूर्वार्द्ध में संपन्न असम विधानसभा के चुनावों में भाजपा नीत गठबंधन को बहुमत मिलने के बाद वहां भी पार्टी को पूर्व मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल की जगह हेमंत विस्वसरमा को मुख्यमंत्री पद सौंपने के लिए विवश होना पड़ा था जो कि पांच साल पहले संपन्न विधानसभा चुनावों के पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। दरअसल हेमंत विस्वसरमा  तो पांच साल पहले ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे परंतु उस समय पार्टी ने उन्हें सर्वानंद सोनोवाल का समर्थन करने के लिए मना लिया था  जिसके ऐवज में हेमंत विस्वसरमा राज्य सरकार में शामिल होकर महत्वपूर्ण विभाग हासिल करने में सफल हो गए थे परंतु इस बार राज्य विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत में अपने महत्वपूर्ण योगदान के बल पर वे मुख्यमंत्री हासिल करने में सफल हो गए। इस तरह देखा जाए तो भाजपा ने इस साल अब तक चार राज्यों में पांच नए मुख्यमंत्री मनोनीत किए हैं क्योंकि उत्तराखंड में पार्टी को थोड़े ही अंतराल में दो मुख्यमंत्री बदलने के लिए विवश होना  पड़ा। जिस तरह भाजपा शासित राज्यों में मुख्यमंत्री बदले जा रहे हैं उसे देखकर तो राजनीतिक  ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌पंडित भी यह अनुमान लगाने में असमर्थ हैं कि भाजपा अपने  मुख्यमंत्रियों को बदलने  का यह सिलसिला आखिर कब तक जारी रखेगी। ऐसा भी नहीं है कि भाजपा ने अपनी सभी राज्य सरकारों के मुख्यमंत्री बदलने की कोई नई रणनीति तैयार की‌ है। उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पूरा भरोसा है कि   उनके राज्य में गुजरात, कर्नाटक और उत्तराखंड की कहानी   दोहराने की नौबत कभी नहीं आएगी। गौरतलब है कि  उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली से असंतुष्ट पार्टी विधायकों के एक गुट को हाल में ही अपनी मुहिम में असफलता ही  हाथ लगी थी और मध्यप्रदेश में कुछ दिनों पूर्व पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं की अचानक प्रारंभ हुई मेल मुलाकातों ने  भी राजनीतिक अटकलों को जन्म दिया था परन्तु जब ‌उन नेताओं ने स्वयं ही मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त किया तो इन अटकलों पर विराम लगा दिया था।‌‌ इसमें कोई योगी संदेह नहीं कि योगी आदित्यनाथ  और शिवराज सिंह चौहान की तुलना विजय  रूपाणी,वी एस येदियुरप्पा , त्रिवेंद्र सिंह रावत अथवा तीरथ सिंह रावत , इनमें से किसी के साथ नहीं की जा सकती। योगी आदित्यनाथ और शिवराज सिंह  चौहान की अपने अपने राज्य में सत्ता और संगठन पर जो पकड़ है वैसी पकड हाल में ही हटाए गए मुख्यमंत्रियों में से कोई अपने राज्य में नहीं बना पाया।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने भी  अनेक अवसरों  पर योगी आदित्यनाथ  और शिवराज सिंह चौहान की कार्यक्षमता और राजनीतिक सूझ-बूझ की भूरि भूरि प्रशंसा करके उनकी ताकत में इजाफा किया है। यहां यह भी गौर करने लायक बात है कि मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए अभी दो साल का समय बाकी है जबकि जिन भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री पिछले दिनों बदले गए हैं उन राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की  शानदार विजय सुनिश्चित करने की मंशा से ही नेतृत्व परिवर्तन किया गया है। गुजरात,‌कर्नाटक और उत्तराखंड में  नए‌ मुख्यमंत्री  अपने मंत्रिमंडल का गठन कर चुके हैं । इस प्रक्रिया में कर्नाटक और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों ने पूर्ववर्ती सरकार के अनेक  मंत्रियों  को अपनी सरकार में शामिल किया है परंतु गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने पूर्ववर्ती  रूपाणी सरकार के मंत्रियों को अपनी  टीम से बाहर रखकर राजनीतिक पंडितों को भी चौंका दिया है । ऐसा शायद ही पहले कभी हुआ हो कि कोई  पार्टी किसी राज्य में अपना मुख्यमंत्री बदले तो वह अपनी सरकार में पूर्ववर्ती सरकार के मंत्रियों को भी शामिल करने से परहेज़ करे। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल कहते हैं कि भाजपा ने इस राज्य में अभिनव प्रयोग किया है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि  इस अभिनव प्रयोग के लिए निश्चित रूप से उन्होंने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की सहमति  प्राप्त की होगी क्योंकि प्रधान मंत्री और गृहमंत्री की सहमति से ही उन्हें मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपी गई है।सवाल यह उठता है कि भाजपा के सामने आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि गुजरात में पूरा मंत्रिमंडल बदलने का फैसला करना पड़ा। क्या पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व  पूर्ववर्ती रूपाणी सरकार के किसी भी मंत्री के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं था। क्या पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को  यह आभास होने लगा था  था कि गुजरात विधानसभा के अगले चुनावों में भी बहुमत हासिल करने के लिए केवल मुख्यमंत्री , उपमुख्यमंत्री और कुछ मंत्रियों को हटा देने से काम नहीं चल सकता। कारण चाहे जो  भी रहा हो परंतु  राज्य में किए गए इस अभूतपूर्व प्रयोग से यही संकेत मिलता है‌ इसीलिए प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री के गृह राज्य में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के साथ ही उनके पूरे मंत्रिमंडल को सत्ता सुख से वंचित होना पड़ा। नए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने अपनी सरकार में कोई उपमुख्यमंत्री भी मनोनीत नहीं किया है जबकि पिछली सरकार में नितिन पटेल को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था।  निःसंदेह गुजरात में किए गए इस अभिनव प्रयोग का कोई दूसरा उदाहरण पूरे देश में मिलना मुश्किल है लेकिन देश के अन्य भाजपा शासित राज्यों में  कार्यरत सरकारों के मंत्रियों को अब यह चिंता होना स्वाभाविक है कि अगर गुजरात में यह अभिनव प्रयोग सफलता होता है तो पार्टी  निकट  भविष्य में उनके राज्यों में भी  तरह के अभिनव प्रयोग दोहराने पर गंभीरता से विचार कर सकती है। दरअसल इस अभिनव प्रयोग की शुरुआत तो लगभग ढाई माह पूर्व केंद्रीय मंत्रिमंडल में किए गए फेरबदल से हो गई थी जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार के तेरह वरिष्ठ मंत्रियों को पदमुक्त करने का साहसिक फैसला लिया था लेकिन उस समय राजनीतिक पंडितों ने भी यह कल्पना  नहीं की होगी कि   प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के  साहसिक फैसले की छाया उनके गृहराज्य को भी अपने दायरे में समेट लेगी। बहरहाल, अब यह उत्सुकता का विषय है कि गुजरात में यह अभिनव प्रयोग कितना सफल होता है । इतना तो तय है कि वहां इस प्रयोग की सफलता से ही राज्य विधानसभा के अगले साल होने वाले चुनावों में भाजपा की सत्ता में वापसी संभव हो पाएगी। वास्तव में  इस प्रयोग में जोखिम भी कम नहीं है‌ क्योंकि गुजरात में जितने समय तक विजय रूपाणी मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहे उससे भी कम समय में नए

मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को इस अभिनव प्रयोग के माध्यम से राज्य की जनता का भरोसा जीतना है। सबसे बड़ी बात यह है कि न तो नए मुख्यमंत्री को स्वयं और न ही उनकी सरकार के  मंत्रियों को सत्ता का अनुभव है। साफ साफ लहजे में देखा जाए तो उन्हें नए सिरे से शुरुआत करनी है। उन्हें राज्य में पाटीदार समुदाय की राजनीतिक और आर्थिक ताकत को ध्यान में मुख्यमंत्री बनाया गया है और इसीलिए उनके मंत्रिमंडल में  पाटीदार समुदाय में अच्छा खासा प्रभाव रखने वाले 6 मंत्री शामिल हैं। मंत्रिमंडल गठन में जातिगत समीकरणों का भी पूरा ध्यान रखा गया है। फिर भी यह जोखिम भरा कदम तो है ही क्योंकि अब इस आशंका से कैसे इंकार किया जा सकता है कि जिन मंत्रियों को सत्ता सुख से वंचित किया गया है वे राज्य विधानसभा के अगले साल होने वाले चुनावों में पार्टी की शानदार विजय का इतिहास दोहराने में पिछले चुनावों जैसी दिलचस्पी दिखाएंगे। इस एक दूसरा पहलू भी है कि हटाए गए मंत्री आगामी चुनावों में अपनी सक्रिय भूमिका से पुनः पार्टी नेतृत्व का विश्वास जीतने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। कुल मिलाकर , गुजरात का अभिनव प्रयोग भाजपा का अभूतपूर्व साहसिक कदम है जो पार्टी  के लिए संभावनाओं के नए द्वार भी खोल सकता है। गुजरात में जिन विधायकों को पहले कभी मंत्री बनने का सौभाग्य नहीं मिला उन्हें मंत्री पद से नवाज कर पार्टी नेतृत्व ने अपने नेताओं और  कार्यकर्ताओं को यह संदेश ‌भी देना चाहा है कि  मुख्यमंत्री के प्रति वफादारी अथवा चाटुकारिता  मंत्री पद के लिए अनिवार्य योग्यता नहीं है। विगत दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जबलपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में भी यही नसीहत देते हुए कहा कि भाजपा में महत्वपूर्ण पद पाने के लिए  निष्ठावान और सिद्धांतवादी  होना ही सबसे बड़ी योग्यता है। देश में भाजपा ही एकमात्र ऐसा राजनीतिक दल है जो चाय बेचने वाले को प्रधानमंत्री और साधारण बूथ कार्यकर्ता को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाता है। 

             बहरहाल, भाजपा शासित गुजरात में भाजपा का अभिनव प्रयोग और  सरकार का नया चेहरा केवल गुजरात ही नहीं बल्कि सारे देश का ध्यान आकर्षित कर रहा है और अन्य  भाजपा शासित राज्यों में सत्ता के गलियारों में  इस अभिनव प्रयोग ने खलबली भी मचा दी है। राजनीतिक पंडित  गुजरात को अब भाजपा की एक नई राजनीतिक प्रयोग शाला के रूप में देख रहे हैं । मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश सहित अन्य भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री पिछले कुछ महीनों से समाज विरोधी तत्वों , अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के लिए जिस  तरह  कठोर भाषा का प्रयोग कर रहे हैं उसका अब यह मतलब निकाला जा रहा है कि वे कर्नाटक, गुजरात और उत्तराखंड की कहानी अपने राज्य में दोहराए जाने की नौबत आने के पूर्व ही अपने राज्य में अपनी स्थिति मजबूत कर लेना चाहते हैं। निश्चित रूप से उनका यह नया अवतार जनता के बीच उनकी लोकप्रियता में इजाफा कर रहा है।


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