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चंद घंटों में सामने आ गया तालिबान का असली चेहरा कृष्णमोहन झा/

 अफगानिस्तान में तालिबान ने अपनी अंतरिम  सरकार का गठन कर लिया है और जैसा कि पहले से ही तय माना जा रहा था ,इस 33 सदस्यीय अंतरिम सरकार में एक भी पद किसी महिला अथवा अल्पसंख्यक समुदाय को नहीं दिया गया है जबकि अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने यह घोषणा की थी कि देश में तालिबान सरकार का गठन होने पर उसमें महिलाओं को भी उचित प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाएगा।अब तालिबान  सरकार के द्वारा यह कहा जा रहा है कि अंतरिम सरकार के स्थान पर जब स्थायी सरकार का गठन किया जाएगा तब उसमें महिलाओं सहित समाज के वर्गों की हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाएगी। लेकिन इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है कि  तालिबान की सोच में किंचित परिवर्तन भी नहीं आया है। एक महीने के अंदर ही उसका असली चेहरा सामने आ गया है । नवगठित तालिबान सरकार ने जिस तरह के आदेश जारी किए हैं उनसे सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि तालिबान सरकार के काम करने का तरीका कैसा होगा।  इस सरकार के गठन में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की जो भूमिका रही है उससे यह संदेश भी मिलता है कि तालिबान सरकार आई एस आई के इशारों पर चलने से कोई गुरेज नहीं होगा लेकिन अफगानिस्तान की जनता को अपने देश में पाकिस्तान की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं हो रही है इसीलिए विगत दिनों काबुल की सड़कों पर  लोगों ने बड़ी संख्या में जुलूस निकाल कर अपने गुस्से का इजहार किया । तालिबान द्वारा जिस तरह महिलाओं  के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है उसका भी अफगान महिलाएं अब  निडर होकर विरोध कर रही हैं। अफगान महिलाओं ने अपने देश के कई  शहरों में जुलूस निकालकर अपने लिए सत्ता सहित अन्य  क्षेत्रों में महिलाओं  को प्रतिनिधित्व दिए जाने की मांग की। गौरतलब है कि अफगानिस्तान में सत्ता पर तालिबान का कब्जा होते ही  शरिया कानून के तहत  महिलाओं के लिए ढेर  सारी पाबंदियों का पालन करना अनिवार्य कर दिया गया है और इसका उल्लंघन करने वाली महिलाओं के लिए कठोर  सजाएं भी तय कर दी गई हैं इसके बावजूद अफगानिस्तान की महिलाओं ने अपने लिए अधिकारों की मांग बुलंद करते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में  सड़कों पर उतरकर  जो विरोध प्रदर्शन किए उसे तालिबान सरकार के लिए महिलाओं की नई चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। अफगानिस्तान महिलाओं के इस अभूतपूर्व साहस ने तालिबानी सत्ताधारियों को आश्चर्य चकित कर दिया है और अब उन्हें यह सवाल सताने लगा है कि क्या इस बार उन्हें महिलाओं के प्रति  क्रूरता का वह पुराना  इतिहास दोहराना आसान नहीं होगा जिसके लिए वे जाने जाते हैं। फिर भी तालिबान तो तालिबान है।उसकी सरकार ने महिला प्रदर्शनकारियों की निर्ममता पूर्वक करने में कोई शर्म महसूस नहीं की और इसके बाद उन्हें बेसमेंट में बंद कर दिया। तालिबानी बल-प्रयोग में अनेक महिलाओं को गहरी चोटें भी आईं। इतना ही  तालिबान सरकार ने उन पत्रकारों को नहीं बख्शा जो  महिलाओ के उग्र प्रदर्शन की जानकारी जुटाने के लिए घटना स्थल पर पहुंचे थे । तालिबान ने अनेक पत्रकारों को पीट पीट कर लहूलुहान करने के बाद छोड़ दिया। नवगठित अंतरिम सरकार के गृहमंत्रालय ने एक आदेश जारी कर बिना पूर्व अनुमति के विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगा दी   है। इस आदेश के अनुसार प्रदर्शन की  अनुमति पाने के लिए संबंधित संगठनों को प्रदर्शन के उद्देश्यों की जानकारी देने के साथ ही सरकार को यह भी बताना अनिवार्य होगा कि प्रदर्शन कारी कौन से नारे लगाएंगे और  उनके  बैनर पोस्टर  में क्या लिखा होगा।जाहिर सी बात है कि तालिबान सरकार में अपना जरा सी विरोध सहननहीं करेगी   और अगर कोई व्यक्ति अथवा संगठन उसके खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत करेगा तो उसका नृशंसता पूर्वक दमन कर दिया जाएगा। इसके बावजूद अफगानिस्तान में तालिबान सरकार का विरोध जारी है और देश  के विभिन्न हिस्सों में लोग अब करो या मरो की भावना से प्रेरित होकर अपनी अपने अधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखने का मन बना चुके हैं। 

             अफगानिस्तान में तालिबान की अंतरिम सरकार में 33 मंत्री बनाए गए हैं और उनमें से अधिकांश का ट्रैक रिकार्ड अतीत की आतंकी घटनाओं में उनकी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से संलिप्तता की गवाही देता है। तालिबान सरकार में प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री जैसेे महत्वपूर्ण पदों के लिए शायद यही योग्यता अनिवार्य थी । अगर ऐसा नहीं होता तो इस सरकार में वे चेहरे दिखाई नहीं देते जिन्हें संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद ने आतंकवादी घोषित कर रखा है। और तो और जिन्हें अमेरिका ने आतंकवादी करार देकर उन  इनाम भी घोषित कर दिया था वे  अब तालिबान सरकार की शोभा बढ़ा रहे हैं । अफगानिस्तान की इस तालिबान सरकार के अनेक मंत्री अतीत में अमेरिका और पाकिस्तान की जेल में बंद भी रह चुके हैं । कौन नहीं जानता कि वर्तमान तालिबान सरकार के प्रधानमंत्री मुद्रा हसन अखुंद की निगरानी में ही अतीत में अफगानिस्तान में विशालकाय बुद्ध प्रतिमाओं को ध्वस्त कर दिया गया था।इसी सरकार के गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी ने 2008 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर आतंकी हमले की साज़िश रची थी। इस सरकार में उन तालिबानी चेहरों को विशेष अहमियत दी गई है जिन्हें पाकिस्तान के इशारों पर चलने से गुरेज नहीं होगा। किंचित उदारपंथी माने जाने तालिबान नेताओं को भी इस सरकार में शामिल तो किया गया है परन्तु उन्हें महत्वपूर्ण विभाग हासिल करने में सफलता नहीं मिली। तालिबान सरकार का गठन पूरी तरह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मर्जी से किया गया है इसलिए उसके सारे फैसले भी आईएसआई की मर्जी से ही होने में संशय की कोई गुंजाइश नहीं है। भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यही है। तालिबान सरकार ने यद्यपि भारत से अच्छे संबंध बनाए रखने की बात कही है परंतु यदि वह वास्तव में ऐसा  तब कर पाएगा जब पाकिस्तान ऐसा चाहेगा और पाकिस्तान से ऐसी नेकनीयती की उम्मीद करना बेमानी होगा। लेकिन अगर तालिबान सरकार अफगानिस्तान की प्रगति चाहती है तो केवल पाकिस्तान और चीन ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों से भी संबंध बनाकर रखना होंगे। इसके लिए सबसे पहले उसे अंतरराष्ट्रीय जगत का विश्वास जीतना होगा । दुर्भाग्य से नई तालिबान सरकार ने ऐसे कोई संकेत अब तक नहीं दिए हैं बीस साल पहले की ‌‌तालिबान सरकार से यह सरकार थोड़ी अलग है|

(लेखक डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)


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