ads header

Breaking News

मोदी सरकार में ऐतिहासिक फेरबदल के मायने कृष्णमोहन झा/

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में भारी फेर-बदल करके सबको आश्चर्यचकित कर दिया है। यह कयास तो 

कई  दिनों से लगाए जा रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी कभी भी अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर सकते हैं परंतु राजनीतिक पंडितों ने भी  शायद यह कल्पना नहीं की होगी कि  प्रधानमंत्री इस बहुप्रतीक्षित फेरबदल में  अपने मंत्रिमंडल के अनेक वरिष्ठ सदस्यों की छुट्टी करने का फैसला कर चुके हैं। प्रधानमंत्री ने खुद भी किसी को कानों-कान यह खबर नहीं लगने दी कि मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर उनके मन में क्या चल रहा है।हो सकता है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा हर्षवर्धन सहित कुछ मंत्रियों के मन में यह आशंका रही हो कि  कोरोना काल में उनके काम काज से असंतुष्ट होकर प्रधानमंत्री उनके विभागों में बदलाव कर सकते हैं परंतु  प्रधानमंत्री के मन  में जो कुछ चल रहा था वह तब सामने आया जब उन्होंने मंत्रिमंडल विस्तार के पूर्व   14 वरिष्ठ मंत्रियों से ‌ इस्तीफा देकर केवल  उन्हें ही नहीं बल्कि राजनीतिक पंडितों को भी अचरज में डाल दिया। प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल ही नहीं किया है बल्कि उसका अप्रत्याशित विस्तार  करके जम्बो मंत्रिमंडल का रूप भी दे दिया है।ऐसा संभवतः पहली बार हुआ है कि केंद्रीय  मंत्रिमंडल में 11 महिलाओं को शामिल किया गया है। मोदी मंत्रिमंडल की औसत आयु 58 वर्ष है। नए मंत्रियों के चयन में प्रधानमंत्री मोदी ने उन राज्यों का विशेष ध्यान रखा है जहां अगले साल विधानसभा चुनाव कराए जाना है।  प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल का विस्तार करने के पूर्व  14 मंत्रियों के इस्तीफे लेकर नए मंत्रियों को परोक्ष रूप में सचेत भी कर दिया है कि अगर उनका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा तो उनका मंत्रिपद भी खतरे में पड़ सकता है। मंत्रिमंडल में किए गए इस बड़े फेरबदल में  केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह , वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर, नितिन गडकरी आदि वरिष्ठ मंत्री अप्रभावित रहे हैं  जिससे यह संदेश मिलता है कि प्रधानमंत्री मोदी उनके कामकाज से पूरी तरह संतुष्ट हैं। इन मंत्रियों का विभागीय प्रदर्शन   संतोषजनक होने के अलावा उनके जिस  विशिष्ट गुण ने उन्हें प्रधानमंत्री की गुड बुक्स में प्रमुख स्थान पाने का अधिकारी बना दिया है वह  उनका मितभाषी स्वभाव है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि उक्त वरिष्ठ मंत्रियों ने कभी भी अपने बयानों से सरकार को असहज स्थिति का सामना करने के लिए विवश नहीं किया। अब यह उत्सुकता का विषय है कि प्रधानमंत्री ने जिन मंत्रियों के  इस्तीफे लिए हैं उनको संगठन में कौन सी महत्वपूर्ण  जिम्मेदारी सौंपी जाती है। प्रधानमंत्री ने नवगठित मंत्रिमंडल की प्रथम बैठक को संबोधित करते हुए नए मंत्रियों से  पूर्व मंत्रियों के अनुभव का लाभ उठाने और उनसे मार्ग दर्शन प्राप्त करने  के लिए कहा है। प्रधानमंत्री ने यद्यपि यह कहा है कि कुछ मंत्रियों के  इस्तीफों से उनकी कार्य क्षमता का कोई संबंध नहीं है और मंत्रिमंडल में यह फेरबदल व्यवस्था के चलते किया गया है परन्तु आम धारणा तो यही बन रही  है कि इतनी बड़ी संख्या में मंत्रियों के इस्तीफे लिए जाने की असली वजह तो उनके प्रदर्शन अथवा बड़बोले पन में ही छुपी हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि स्वास्थ्य मंत्री डा हर्षवर्धन की कोरोना प्रबंधन में असफलता और बाबा रामदेव की औषधि के प्रवर्तन में दिखाया गया अतिउत्साह उनकी मोदी मंत्रिमंडल से विदाई का कारण बन गया जबकि एक अन्य वरिष्ठ मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ट्विटर के साथ अप्रिय विवाद  के कारण मंत्रिपद से हाथ धो बैठे। सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर कोरोना काल में अंतर्राष्ट्रीय जगत में देश की छवि पर आंच न आने देने की अपेक्षित जिम्मेदारी का भली भांति निर्वहन करने में असफल रहे। बाबुल सुप्रियो और देवाश्री चौधरी से पार्टी ने  पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में  बहुत उम्मीदें लगा रखी थी परंतु वे खुद ही चुनाव नहीं जीत पाए। इसलिए मोदी मंत्रिमंडल से उनकी विदाई बहुत अधिक आश्चर्यजनक नहीं मानी जा रही है। शिक्षा मंत्री डा रमेश पोखरियाल निशंक को संभवतः  इसलिए अपने पद से इस्तीफा देने के लिए विवश। होना पड़ा क्योंकि कोरोना संकट से उपजी परिस्थितियों में वे प्रमुख परीक्षाओं  के आयोजन के लिए वे अपना कोई विजन प्रस्तुत नहीं  कर पाए। कुछ मंत्रियों का संसदीय प्रदर्शन अपेक्षित स्तर का न होने के कारण उन्हें अपना मंत्रिपद गंवाना पड़ गया। मंत्रिमंडल में इतना बड़ा  फेरबदल  करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने यह समय क्यों चुना इसकी सबसे बड़ी वजह यही प्रतीत होती है कि निकट भविष्य में संसद का मानसून सत्र प्रारंभ होने जा रहा है और यह तय है कि इस सत्र में विपक्ष कोरोना  की दूसरी लहर की भयावहता को नियंत्रित करने में सरकार की कथित खामियों को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देगा इसलिए प्रधानमंत्री ने सत्र शुरू होने के पूर्व ही अपनी टीम बदलने का फैसला किया। लेकिन सवाल यह भी उठता है कि जिन सांसदों को  पहली बार केंद्र में  मंत्री बनने का सौभाग्य मिला है उनकी अनुभव हीनता से  क्या उनका कामकाज प्रभावित हुए बिना रह पाएगा। गौरतलब है कि जिन सांसदों को प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया है उनमें से 16 सांसदो ने तो पहली सदन में प्रवेश किया है। प्रधानमंत्री ने ऐसे सांसदों को मंत्री बना कर उनकी  क्षमताओं पर जो भरोसा जताया है उसकी कसौटी पर खरा उतरना भी भी इन नए मंत्रियों के किसी कठिन चुनौती से कम नहीं होगा। एक बात यहां विशेष उल्लेखनीय है कि अभी तक शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी प्राय इन क्षेत्रों के विशेषज्ञों को ही सौंपी जाती थी परंतु इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने नए  मंत्रियों को लीक से हटकर विभाग आवंटित किए हैं। एक ओर जहां नए स्वास्थ्य मंत्री के पास आयुर्विज्ञान की उपाधि नहीं है तो कानून मंत्री  प्रख्यात विधिवेत्ता नहीं हैं परंतु इतना तो तय है कि प्रधानमंत्री मोदी की पारखी नजर में खरे  उतरने के बाद ही उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान मिल सका है।  प्रधानमंत्री ने इस फेरबदल में  न केवल अधिक से अधिक नए चेहरों को मौका दिया है बल्कि उन्हें महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी सौंपी  है। इसकी वजह से कुछ विसंगतियां भी पैदा हुईं हैं। उदाहरण के लिए मध्यप्रदेश कोटे से राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को इस बार केबिनेट मंत्री बनाए जाने की चर्चा जोरों पर थी परंतु उन्हें पदोन्नति नहीं मिल सकी। देश के अग्रणी आदिवासी नेता के रूप में उनके राजनीतिक कद के अनुरूप वे केबिनेट मंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार थे परंतु उन्हें आगे भी राज्य मंत्री के रूप में अपने से कनिष्ठ केबिनेट मंत्री के अंतर्गत कार्य करना होगा। मध्यप्रदेश कोटे के ही एक अन्य राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल भी अपनी सारी योग्यताओं के बावजूद पदोन्नति पाने से वंचित रह गए। मोदी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर अभी  कृषि मंत्रालय के साथ ग्रामीण विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभाल रहे थे अभी भी वे  कृषि मंत्रालय और ग्रामीण विकास की जिम्मेदारी संभालेंगे। मध्य-प्रदेश में गत वर्ष मार्च में राज्य में सत्ता परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ग्वालियर अंचल के युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछले एक साल से केंद्रीय मंत्री बनने की अधीरता से प्रतीक्षा कर रहे थे। उनकी यह प्रतीक्षा मोदी मंत्रिमंडल के इस फेरबदल में पूरी हुई है। प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें केबिनेट मंत्री के रूप में शामिल कर महत्वपूर्ण नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी है । यह उनका मनपसंद मंत्रालय है इसलिए इस मंत्रालय में वे बेहतर प्रदर्शन करने में समर्थ हो सकते हैं। गौरतलब है कि अतीत में उनके पिता स्व माधवराव सिंधिया भी इस मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। मध्यप्रदेश से वीरेंद्र खटीक का नाम भी मोदी सरकार के नए मंत्रियों की सूची में पहले से ही तय माना जा रहा था। ग्वालियर अंचल से अब नरेन्द्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी सरकार में शामिल हो चुके हैं।अब   ग्वालियर अंचल में उनके बीच परस्पर तालमेल उत्सुकता का विषय होगा।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में ऐतिहासिक फेरबदल के  बाद उसे संतुलित  मंत्रिमंडल का रूप दे दिया है  जिसमें अनुभवी मंत्रियों  के  साथ ही पर्याप्त संख्या में 

नए चेहरों को भी शामिल किया गया है । इसका एक संदेश यह भी है कि प्रधानमंत्री नए चेहरों को भी भविष्य के लिए तैयार करना चाहते हैं इसीलिए उन्होंने नवगठित मंत्रिमंडल की प्रथम बैठक में नए मंत्रियों को सरकार से इस्तीफा देने वाले अनुभवी मंत्रियों से मार्ग दर्शन प्राप्त करने का परामर्श दिया है। प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल में उच्च शिक्षित सांसदों को शामिल कर उनकी एकेडेमिक योग्यताओं का  राष्ट्र की उन्नति और विकास में संपूर्ण लाभ लेने की मंशा भी उजागर की है। दलितों और पिछड़े वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने की  प्रधानमंत्री की पहल केवल उनके बीच पार्टी का जनाधार मजबूत करने का एक प्रयास भर नहीं है अपितु सत्ता में भी उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में उठाया सराहनीय कदम है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करते समय 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों का भी पूरा ध्यान रखा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल  में किया गया यह फेरबदल अगले साल होने वाले  उत्तर प्रदेश सहित कुछ अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में अपनी परीक्षा से गुजरेगा। तब तक प्रधानमंत्री सभी  नए मंत्रियों के कामकाज और कार्यक्षमता को अच्छी तरह परख चुके होंगे।


 

No comments