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ज्ञान को भारत की असली संपदा मानते हैं दत्ताजी कृष्णमोहन झा/

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रीय प्रतिनिधि सभा की मार्च में संपन्न त्रिवार्षिक बैठक में दत्तात्रेय होसबोले को जब सर्वसम्मति से संघ का सरकार्यवाह चुना गया था तब मैंने अपने एक लेख में उनके  व्यक्तित्व एवं कृतित्व की उन  विशेषताओं की विस्तार से चर्चा की थी जिनके कारण दत्तात्रेय होसबोले  विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण पद का गौरव अर्जित करने के अधिकारी बने। दत्तात्रेय होसबोले के व्यक्तित्व की उनकी खूबियों की आज फिर अपने इस लेख में उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं तो है परंतु पिछले दिनों भोपाल में विद्या भारती के नवनिर्मित भवन अक्षरा के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से उन्होने विद्वता पूर्ण व्याख्यान दिया उसकी विस्तार से चर्चा मैं अपने इस लेख में अवश्य करना चाहता हूं। उस समारोह में मौजूद विद्वज्जनों को   होसबोले के विचारों को सुनकर ऐसी अनुभूति हो रही थी मानों  एक महान शिक्षाविद की वाणी ने उन्हें मंत्र मुग्ध ‌कर लिया है। दत्तात्रेय होसबोले का व्याख्यान उन्हें उनके अध्ययन,मनन और चिंतन की गहराई का अहसास करा रहा था और यह अहसास स्वाभाविक भी था क्योंकि उस समारोह के मुख्य अतिथि की आसंदी  से संघ के सरकार्यवाह के रूप में एक ऐसे उद्भट विद्वान के सारगर्भित विचार सुनने का सौभाग्य उन्हें मिल रहा था जो अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओं में पारंगत हैं। सरकार्यवाह ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में वर्तमान परिवेश में  शिक्षा और संस्कार  की उपादेयता की जो व्याख्या की वह समारोह में मौजूद विद्वज्जनों के मानस पटल पर स्थायी छाप छोड़   गई। समकालीन शिक्षा और संस्कार विषय पर  दत्तात्रेय होसबोले ने यद्यपि अपनी अतिशय व्यस्तता के कारण संक्षेप में ही अपने विचार प्रस्तुत किए परंतु उनका वह संक्षिप्त उद्बोधन गागर में सागर कहावत को चरितार्थ कर रहा था। सरकार्यवाह ने विद्या भारती मध्यक्षेत्र के नवनिर्मित शैक्षिक,शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान अक्षरा के  लोकार्पण समारोह में एक स्मारिका का विमोचन भी किया। सरकार्यवाह ने कोरोना काल में  विद्या भारती विद्यालयों के भूतपूर्व छात्रों द्वारा किए गए सेवा कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने मानव सेवा का जो इतिहास रचा है उसमें उन्हें अपने विद्यालय में मिले उत्तम संस्कारों की महत्वपूर्ण भूमिका है। विद्या भारती के विद्यालयों  में  छात्रों को दिए जाने  इन‌ संस्कारों ने  शिक्षा के क्षेत्र में उन विद्यालयों की विशिष्ट पहचान बनाई है। विद्या भारती बच्चों को केवल शिक्षित नहीं करती अपितु उन्हें सुसंस्कृत बनाकर अच्छा मनुष्य बनाती है।

      सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने जीवन में शिक्षा को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि भारत की संपदा ज्ञान है । हमारे देश में शिक्षा की उज्ज्वल परंपरा रही है। अतीत में हमने विश्वगुरु होने का जो गौरव अर्जित किया था उसमें हमारी  शिक्षा  और संस्कारों की  महत्वपूर्ण भूमिका थी ।भारत को  पुनः वही गौरव दिलाने की जिम्मेदारी वर्तमान और आगे आने वाली पीढ़ी के कंधों पर है। यह काम शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता के माध्यम से ‌‌‌‌‌‌ही‌ संभव है। सरकार्यवाह ने कहा कि व्यक्तित्व को गढ़ने में शिक्षा की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अनेक देशों की यात्रा कर वहां की शिक्षा पद्धति और शिक्षा के स्तर का अध्ययन कर चुके सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने फिनलैंड की शिक्षा पद्धति की चर्चा करते हुए कहा कि फिनलैंड जैसे छोटे से देश की शिक्षा पद्धति को आज विश्व में शिक्षा के माडल के रूप में देखा जाता है। लेकिन यह गौरव हमें मिलना चाहिए क्योंकि हमारे देश में प्राचीन काल से शिक्षा की उज्ज्वल परंपरा रही है।इस मौके पर केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए हुए सरकार्यवाह ने विश्वास व्यक्त किया कि यह  शिक्षा नीति  विश्व में हमें वही पुराना गौरव दिलाने में समर्थ सिद्ध होगी। इस काम में सरकार के साथ समाज को‌ हाथ बंटाना होगा। सरकार्यवाह ने कोरोना संकट के दौरान समाज विरोधी तत्वों की अवांछनीय गतिविधियों की चर्चा करते हुए कहा कि विद्यार्थियों को  शिक्षा के साथ उत्तम संस्कार देकर ही ऐसी प्रवृत्तियों की रोकथाम की जा सकती है। 

                गौरतलब है कि कर्नाटक में जन्मे दत्तात्रेय होसबोले ने 13 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक  के रूप में राष्ट्रसेवा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने का व्रत लिया था ।  छात्र जीवन से ही उनकी कुशल नेतृत्व क्षमता और सांगठनिक कौशल  के गुण उजागर होने लगे थे। उच्च शिक्षा अर्जित करने की लालसा उनके अंदर बचपन से ही कूट कूट कर भरी हुई थी । इसी लालसा ने उन्हें न केवल  अंग्रेजी में स्नातकोत्तर उपाधि अर्जित करने के  लिए प्रेरित किया बल्कि अपनी मातृभाषा कन्नड़ सही अनेक भारतीय  और विदेशी भाषाओं का  अध्ययन कर उनमें प्रवीणता भी हासिल की। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी उन्होंने  जिस तरह कुशलतापूर्वक निर्वहन किया उसनेे प्रभावित होकर संघ के नेतृत्व ने उन्हें अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी । शानदार एकेडमिक कैरियर के धनी दत्तात्रेय होसबोले के लिए यह मानों उनकी रुचि का कार्यक्षेत्र था। इसके बाद संघ में उनका कद हमेशा ऊंचा होता चला गया। उन्होंने अनेक देशों की यात्राएं कर वहां संघ के विचारों के प्रचार-प्रसार में सफलता अर्जित की। दत्तात्रेय होसबोले कन्नड़ पत्रिका असीमा के संस्थापक संपादक हैं। स्पष्टवादी होते भी उनकी वाणी में मधुरता है जो संक्षिप्त मुलाकात में भी सामने वाले को हमेशा के लिए अपनत्व के मोहपाश में बांध लेती है। संघ परिवार में सभी उन्हें आदरपूर्वक दत्ताजी कहकर संबोधित करते हैं। हमेशा ही अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने दत्ता जी जब मंच से अपने विचार व्यक्त करते हैं तो उनके भाषणों में उनके अथाह ज्ञान की झलक स्पष्ट महसूस की जा सकती है। गंभीर से गंभीर विषय का सहज सरल भाषा में सटीक विश्लेषण उनकी संवाद अदायगी की कला को विशिष्ट पहचान कर देता है।

         दत्तात्रेय होसबोले ने गत मार्च माह में संघ के सरकार्यवाह ‌‌‌‌‌पद पर अपने‌ सर्वसम्मत निर्वाचन के बाद आयोजित अपनी प्रथम पत्रकार वार्ता में कहा था कि संघ के प्रति युवाओं का आकर्षण बढ़ रहा है और नवभारत के निर्माण में युवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है । इसलिए उनके  वैचारिक प्रबोधन पर विशेष जोर देने की आवश्यकता है । सरकार्यवाह ने भोपाल में विद्या भारती के शैक्षिक, शोध और अनुसंधान संस्थान के नवनिर्मित भवन अक्षरा के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से जो व्याख्यान दिया  उसमें भी उन्होंने युवाओं को विद्यार्थी जीवन से ‌

उत्कृष्ट शिक्षा के साथ उत्तम संस्कार प्रदान करने की आवश्यकता पर विशेष जोर दिया।

(लेखक IFWJ के राष्टीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)


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