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(डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती पर विशेष: 6 जुलाई) “धारा 370 की समाप्ति से बदल रही कश्मीर की तस्वीर और तकदीर” डॉ. राकेश मिश्र (पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद महाकौशल)

 स्वतंत्रता प्राप्ति के सात दशक से अधिक समय तक जम्मू-कश्मीर भारत में होते हुए भी अलग ही दिख रहा था। लेकिन, 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति और गृहमंत्री श्री अमित शाह की कुशल रणनीति ने धारा 370 को समाप्त कर एक देश में दो विधान, दो संविधान, दो प्रधान की व्यवस्था को खत्म किया। विशेषाधिकार मिलने के बाद से ही लगातार विरोध करते हुए अपना बलिदान करने वाले प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक श्यामाप्रसाद मुखर्जी का सपना साकार हुआ। इस धारा के समाप्त होते ही जम्मू-कश्मीर में विकास की किरणें आनी शुरू हुई और आतंकवाद का अस्त हो गया। जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद वहां के नागरिकों को अपने मताधिकार का उपयोग करने का अधिकार मिला।

जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद राज्य में व्यापार और उद्योग के लिए निवेश बढ़ा है। जो अब तक वहां के माहौल की वजह से नहीं आ रहा था। व्यापार और उद्योग आने से उत्पादन बढ़ेगा और जिससे राज्य की जीडीपी दर सकारात्मक रूप से बढ़ने लगी है। जिसका फायदा कश्मीर के नागरिकों को सीधे तौर पर होगा। उद्योग और व्यापार के आने से स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलने शुरू हो गए हैं। उन्हें दूसरे राज्यों में नौकरी के लिए नहीं जाना होगा। इसके कारण प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है और लोगों की जीवनशैली में भी सुधार आया है । पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में टूरिज्म सेक्टर बढ़ा है, जिससे प्रदेश और वहां के लोगों को लाभ मिलना शुरू हुआ है। इस प्रकार धारा 370 हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर में पर्यटन का क्षेत्र फिर से गुलजार होने लगा है और स्थानीय लोग लाभान्वित हो रहे हैं। धारा 370 हटने के बाद कई प्राइवेट हॉस्पिटल जम्मू-कश्मीर में खुलने के आसार बढ़े हैं । पिछले दिनों स्थानीय निकाय के चुनाव के बाद लोकतंत्र को भी मजबूती मिली है। गत दिनों प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी के साथ राजनीतिक दलों के बैठक में एक सकारात्मक संदेश निकला है। लेकिन, कश्मीर में नई सुबह लाने में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का चिन्तन और बलिदान की अहम भूमिका रही है। 

6 जुलाई 1901 को कोलकाता के अत्यन्त संभ्रांत परिवार में डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी का जन्म हुआ था। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। श्यामाप्रसाद मुखर्जी मेधावी थे। डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बीए की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि लेने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश भारत लौटे। अपने पिता का अनुकरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएं अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कोलकाता विश्वविद्यालय  के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरन्तर आगे बढ़ती गयी।

डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया। डॉ॰ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। उन्होने बहुत से गैर कांग्रेसी हिन्दुओं की मदद से कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया। विचारों के प्रवाह में बढ़ते-बढ़ते वो सावरकर जी के संपर्क में आए तो हिंदू महासभा के साथ अपने आपको जोडा और हिंदू महासभा के अध्यक्ष भी रहे। हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी स्वागत करते हुए कहा था कि महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के बाद हिंदू विषय को लेकर कोई दृष्टि दे सकता है तो वह श्यामा प्रसाद मुखर्जी । इसलिए उनका हिंदू महासभा में आना भारत के लिए अच्छी घटना है । 1943 में अकाल आया तो जिस तरीके से श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी ने अपना सर्वस्व लगाकर अकाल की लड़ाई लड़ी। उससे एक अमिट छाप बंगाल पर छोड़ दी। उनकी विचारयात्रा जब आगे बढी  हिंदू महासभा से और जब वे प्रखर हो करके आगे बढ़े तो गांधीजी के निमंत्रण पर नेहरू की कैबिनेट में वो पहले मंत्री बने। वे नेहरू सरकार के पहले गैरकांग्रेसी मंत्री बने, उनको उद्योग और उद्योग के साथ-साथ सप्लाई, दो मंत्रालय उनको दिए गए । वहां भी उन्होंने एक अमिट छाप छोड़ी। चितरंजन लोकोमोटिव की फैक्ट्री उन्होंने स्थापित की। सिंदुरी में उन्होंने फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन को स्थापित किया । बेंगलुरु में उन्होंने एयरक्राफ्ट के प्रोग्राम को स्थापित किया और भारत के उद्योग जगत से जुड़े हुए और भारत को स्वावलंबी बनाने की नीव को उन्होंने रखा। लेकिन, उन्होंने अधिक समय तक मंत्रिपरिषद में रहना स्वीकार नहीं किया। जब विचार नहीं मिले तो उन्होंने अलग हटने में कोई देरी नहीं की। और, उन्होंने अपने आप को नेहरू कैबिनेट से अलग कर लिया। जवाहरलाल नेहरू और लियाकत अली के पैक्ट के खिलाफ उन्होंने यह कदम उठाया।

डॉ॰ मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक हैं। इसलिए धर्म के आधार पर वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे। वे मानते थे कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हुई परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से थी। वे मानते थे कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं। हममें कोई अन्तर नहीं है। हम सब एक ही रक्त के हैं। एक ही भाषा, एक ही संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। परन्तु उनके इन विचारों को अन्य राजनैतिक दल के तत्कालीन नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। बावजूद इसके लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया। ब्रिटिश सरकार की भारत विभाजन की गुप्त योजना और षड्यन्त्र को एक कांग्रेस के नेताओं ने अखण्ड भारत सम्बन्धी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया। उस समय डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की मांग को  उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खण्डित भारत के लिए बचा लिया। हिन्दू महासभा से भी बढ़ते-बढ़ते यात्रा करते-करते 1951 में जनसंघ की स्थापना की। वे जनसंघ के प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। आज हम लोग गौरवान्वित महसूस करते हैं कि जिस जनसंघ की यात्रा से बढ़ते बढ़ते आज भारतीय जनता पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनी है । उस विचारधारा की नींव रखने का काम भारतरत्न श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने किया था । विचार की जीत होती ही है और उस विचार को समर्पित होकर के डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की । 1952 में  पहली बार पहली लोकसभा में, जनसंघ के नाम पर वह पहली बार जीतकर आए थे । तीन सीटें जीती थीं। उनकी क्षमता और लोकप्रियता ऐसी थी कि विपक्ष के लोकतांत्रिक मोर्चा के वे प्रवक्ता भी बने और उसके नेता भी बने । प्रवक्ता के रूप में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने आप को स्थापित किया । 1952 में बने और बनने के साथ ही उनकी छवि इतनी बड़ी थी, उनकी सोच इतनी बड़ी थी कि सब लोगों ने उनके साथ अपने आप को शामिल कर लिया । जनसंघ के 1952 में कानपुर के अधिवेशन में उन्होंने यह विषय रख दिया कि जम्मू-कश्मीर का विलय पूर्ण रूप से होना चाहिए और संपूर्ण होना चाहिए. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 के माध्यम से जम्मू कश्मीर को विशेष अधिकार देने का विरोध किया। लोगों ने नारा लगाया,एक देश में दो निशान, दो विधान, दो प्रधान नहीं चलेगा। 1953 में उन्होंने पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि  अगर 35 करोड़ के देश में चार करोड़ मुसलमान अगर शांति से रह सकते हैं तो जम्मू कश्मीर के क्या 25 लाख मुसलमान शांति से नहीं रह सकते? जम्मू-कश्मीर में परमिट और लाइसेंस राज के खिलाफ उन्होंने आंदोलन शुरू किया । उन्होंने कहा कि मैं जम्मू कश्मीर की धरती पर जाऊंगा और मैं वहां पर तिरंगा भी फहराऊंगा और साथ ही साथ वहां पर बिना परमिट के जाएंगे। उन्होंने जालंधर से बलराज मधोक को वापस दिल्ली भेज दिया और कहा कि मेरी लड़ाई जो जम्मू कश्मीर की है। जिसे मैं लड़ूंगा, लेकिन देश को तुमको संभालना है और मेरी आवाज को देश के कोने कोने तक पहुंचाओ। लखनपुर जो जम्मू कश्मीर का जम्मू कश्मीर और पंजाब का बॉर्डर है, वहां वो पहुंचे । जब वो बॉर्डर प्रवेश कर रहे थे तो उन्होंने हमारे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी से कहा कि अब तुम यहां से वापस हो जाओ, और दुनिया को बताओ । ये आवाज चलाए रखना । ये लड़ाई लड़ते रहना । ये थी उनकी राष्ट्रभक्ति । उनको गिरफ्तार कर लिया गया और श्रीनगर के जेल में रखा गया, 44 दिन तक जेल में रहे । वहां उनकी तबीयत बिगड़ी । 23 जून 1953 को डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी  रहस्यमय तरीके से हम सब को अलविदा कह गए, लेकिन उनके बताए हुए रास्ते पर चलना हमारा कर्तव्य है। जयंती पर ऐसे महामानव को नमन । 


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