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24 जुलाई 2021 को गुरु पूर्णिमा है। इस अवसर पर वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी का जीवन परिचय

 श्री शांति वीर शिव धर्माजीत वर्द्धमान सुर्रिभ्यो नमः


श्री शांति सिंधु सी निर्भयता


हो वीर सिंधु सी निर्मलता


श्री शिव सागर जी सा अनुशासन


हो धर्म सिंधु सी निस्पहता


संयत वाणी चिंतन शक्ति


हो अजित सुरिवर सी दृढ़ता


इन गुणों का संचय हो


वर्द्धित हो मन की मृदुता


हो मार्ग आपका निष्कंटक यशवती बने


श्री शांति वीर शिव धर्माजीत वर्द्धमान सुर्रिभ्यो नमः


श्री शांति सिंधु सी निर्भयताहो वीर सिंधु सी निर्मलता


श्री शिव सागर जी सा अनुशासनहो धर्म सिंधु सी निस्पहतासंयत वाणी चिंतन शक्तिहो


अजित सुरिवर सी दृढ़ताइन गुणों का संचय होवर्द्धित हो


मन की मृदुता हो मार्ग आपका निष्कंटक यशवती बने


यह परम्परा बालक यशवंत से आचार्य वर्द्धमान सागर जी दिव्य महामना का परिचय सन 1950 से सन 2021संयम वर्ष 1969 से सन 2021 आचार्य पद सन  1990 से सन 2021.आज हम चर्चा कर रहे है दिव्य अलौकिक महामना कीजो अदभुत गुणों के धारी होकर भी सामान्य   दिखते हैमध्यप्रदेश सनावद के  श्रीमती मनोरमा जी श्री कमल चंद जी जैन पंचोलिया  के 8  पुत्र 4 पुत्रियों के निधन के बाद पुनः एक दिव्य शक्ति माता की कुक्षी में अवतरित हुई


श्री अतिशय क्षेत्र महावीर जी में 108 परिक्रमा और मन्नत


लंबे जीवन के लिए आशंकित माता पिता ने परिजनों की सलाह  पर अतिशय क्षेत्र  श्री महावीर जी राजस्थान मे मंदिर जी की  108 परिक्रमा श्रीमती मनोरमा जी एवम श्री कमल चंद जी ने लगाई शिशु के बाल उतारने की मन्नत ली मंदिर में उल्टे स्वस्तिक बनाये जिस शिशु ने माता के गर्भ में रहकर मंदिर की 108 परिक्रमा की हो उनके अतिशय पुण्य का क्या कहना  जैसे गर्भ कल्याणक की क्रिया हो रही होपर्युषण पर्व के तृतीय पावन दिवस आर्जव दिवस पर दिव्य शक्ति का अवतरणदिगम्बर समाज के सबसे पवित्रपर्युषण पर्व के तृतीय आर्जव दिवस पर अलौकिक शक्ति  का आर्जव आगमन हुआ जैसे जन्म कंल्याणक हुआ हो


बालक का नामकरण


जब शिशु  बड़े हुए  तब उनका नाम श्री  यशवंत रखा गयालंबे जीवन के लिए श्री यशवंत को 1 वर्ष से 5 वर्ष  की उम्र तक खंडवा ननिहाल नानाजी के यहाँ पालन हेतु बगैर माता के रखा गया. यह एक चिंतन है कि ईश्वर ने जैसे परिजनों को वैरागी होने का संकेत दिया जिस माता पिता को अपने बच्चे को दुलार वात्सल्य ममता स्नेह प्रेम फटकार की जरूरत होती है उन प्रारंभिक 5 वर्षों में शिशु  माता पिता से दूर रहा क्या यह संयोग है कि माता पिता को बालक से  तथा बालक को माता पिता से  वैरागी रहने का संकेत  है


यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि 


5 वर्षों में माता पिता जब भी खंडवा शिशु से मिलने जाते है तो बालक यशवंत अपने भाई चिंतामण जी की भांति अपनी माता जी को बुआ जी ही पुकारता 5 वर्ष  की उम्र के बाद बाद सनावद वापस माता पिता श्री यशवंत जी को सनावद लेकर पाठशाला में भर्ती करते है


इस के पूर्व माता  अपनी 14 वी संतान के रूप में पुत्र को जन्म देती है  शिशु का नाम जयवन्त रखा जाता है श्री यशवंत जब 6 वीं कक्षा में अध्ययन कर रहे थे तब आपकी माताजी का निधन हो जाता है तब आपकी उम्र मात्र 11 वर्ष की थी


संत समागम.


बचपन से साधु संतों का समागम मिलता रहा सन 1964 में श्री बावनगजा जी  बडवानी में आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी एवम आचार्य श्री विमल सागर जी के श्री यशवंत जी 14  वर्ष की उम्र में दर्शन करते है आचार्य श्री विमल सागर जी  श्री यशवंत जी को धर्म मार्ग में आगे बढ़ने का तथा आचार्य श्री महावीर  कीर्ति जी  वैराग्य मार्ग ही हितकर है इस पर चलकर जीवन को सफल बनाने का आशीर्वाद दिया बड़वानी से दोनों आचार्य द्रय सनावद पधारे1964 में आचार्य धर्म सागर जी भी मुनि अवस्था मे सनावद पधारे 1965 में आर्यिका श्री इंदुमती जी  आर्यिका श्री सुपार्श्व मति जी का सनावद चातुर्मास हुआ1967 को आर्यिका श्री ज्ञानमती जी का सनावद चातुर्मास हुआ!


जीवन का टर्निंग पाइंट.


सन 1967 में खंडवा के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान ITI में एडमिशन लिया  वहाँ होस्टल में रहे वहाँ के अशुद्ध भोजन तथा होस्टल वार्डन ने एक दिन बाजार से नॉनवेज मांस खरीद कर लाने को कहा उस दिन वह कार्य अन्य मित्र ने कर दिया  किंतु इस धटना से दुःखी   होकर अगले दिन पढ़ाई छोड़कर होस्टल खंडवा से वापस सनावद आ गए यहाँ बड़वाह डिग्री कालेज में एडमिशन लिया


आर्यिका श्री ज्ञानमति माता जी का जीवन पर प्रभाव


श्री यशवंत ने माताजी से आजीवन शुद्ध जल का तथा 5 वर्ष का ब्रहचर्य  व्रत का नियम लिया1968 में आचार्य श्री विमल सागर जी से आजीवन ब्रहचर्य व्रत लिया


दीक्षा हेतु निवेदन


1968 में आचार्य श्री शिव सागर जी को दीक्षा हेतु श्रीफल चढ़ा कर निवेदन किया अनायास आचार्य श्री शिव सागर जी की समाधि होने से तृतीय पट्टाधिश नूतन आचार्य श्री धर्म सागर जी को दीक्षा हेतु श्रीफल भेंट कर निवेदन किया 24 फरवरी 1969 को 11 दीक्षाये हुई सबसे कम उम्र के आप ही थे श्री यशवंत जी का दीक्षा के बाद मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी नाम करण हुआ


नेत्र ज्योति जाना और अन्य उपसर्ग


नव दीक्षित 19 वर्षीय मुनि श्री वर्धमान सागर जी की कर्म परीक्षा ले रहे थे। आहार चर्या  में। काफी उपसर्ग आयेसबसे बड़ा उपसर्ग  यह हुआ कि जयपुर खानीया जी मे संघ का प्रवास के दौरानअनायास  दोपहर को नेत्रों से दिखना बंद हो गया उसी समय डॉक्टरों के दल ने परीक्षण कर  अगले दिन पुनः नेत्र परीक्षण की सलाह दी अगले दिन भी नेत्रों की यथावत कोई सुधार नही हुआ डॉक्टरों  ने परीक्षण पश्चात इंजेक्शन लगाने  तथा एलोपेथीक उपचार के बगैर  हमेशा के लिए नेत्र ज्योति चले जाने की बात सलाह रखी संघ। में गंभीरता पूर्वक चिंतन होने लगा दीक्षा छेदन कर  इलाज कराने का भी विचार सामने आया जब यह चर्चा युवा मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी को पता लगी तो नम्रता पूर्वक किंतु दृढ़ता से यही कथन कियाकि प्रसंग आने पर समाधि  ले लेंगे  किंतु इंजेक्शन नही लगवाएंगे नेत्र ज्योति जाने को 49 घंटे से अधिक समय हो गया था मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी ने तेज धूप में मंदिर जी जाने की भावना निवेदन किया 1008 श्री चंद्र प्रभु भगवान के समक्ष  श्री  शांति भक्ति का पाठ स्तुति प्रारम्भ की लगातार 3 घंटे प्रभु की भक्ति  से। नेत्रों की ज्योति बगैर डॉक्टरी इलाज के वापस  आ गई धन्य है धन्य है धन्य है  प्रभु की महिमा अपरम्पार है   श्री शांति भक्ति का पाठ अखण्ड  24 घंटे सभी साधु करते रहे यहाँ यह उल्लेखनीय है कि नेत्र ज्योति जाने पर मुनि श्री अभिनंदन सागर जी ने संकल्प किया कि जब तक मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी कि नेत्र ज्योति नही आती तब तक के लिए में सभी 6 छह रसों का त्याग करता हूं


आर्यिका श्री ज्ञानमती जी भगवान से कहती है कि है  प्रभो आप बड़े है या भगवान


मुनि श्री श्रुत सागर जी चिंतन करते है कि मुनि वर्धमान सागर जी ने अल्पायु में दृढ़ता पूर्वक त्याग किया है और उन्हें इतना जबरदस्त उपसर्ग इस घटना के समय आचार्य श्री धर्म सागर जी सहित 17 मुनिराज आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी सहित 30 आर्यिका माताजी क्षुल्लक क्षुल्लिका जी सहित 47 साधु इस चमत्कार के साक्षी है जिस प्रकार धार में राजा भोज ने आचार्य श्री मानतुंग स्वामी को 48 कोठरी  में बंद  किया था तब आचार्य श्री मानतुंग स्वामी ने श्री भक्ताम्बर स्तोत्र की रचना की थी एक एक छंद  पूर्ण होता गयावैसे वैसे  एक  एक ताले टूटते गए यह श्री भक्ताम्बर स्तोत्र की ख्याति विश्व विख्यात है उसी प्रकार आचार्य श्री  पूज्यपाद स्वामी को आकाश गमनी विद्या सिद्ध थी  जब वह आकाश  में  गमन कर रहे  थे  तब  सूर्य  की प्रचंड  तेज  रोशनी  से  श्री पूज्य पाद  स्वामी जी नेत्र ज्योति चली गई थी  तब  उन्होंने  शांति भक्ति की रचना की थी  उसी भक्ति से नेत्र ज्योति वापस मिली थी संघ में रहकर स्वाध्याय तथा गुरुओ के सानिध्य में आपको इस स्तुति की जानकारी थी मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी ने एलोपैथिक इलाज नही कराते हुए    प्रभु भक्ति पर श्रद्धान रखा। उसी  पुण्य कारण नेत्र ज्योति वापिस आई.



आचार्य श्री धर्म सागर जी और आचार्य श्री ज्ञान सागर जी संघ समागम


सन 1971  किशनगढ़ राजस्थान में आचार्य श्री धर्म सागर जी और  आचार्य श्री ज्ञानसागर जी का संघ 15 दिन एक साथ किशनगढ़ रहे दोनों संघ एक साथ पंचामृत अभिषेक देखते दोनों संघो में दो 2 भावी आचार्य मुनि रूप में विद्यमान रहे मुनि श्री विद्या सागर जी और मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी 1972  में आचार्य श्री देश भूषण जी गुरुदेव ने शक्ति नगर पंच कंल्याणक में मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी को आशीर्वाद दिया और कामना कि असीम ऊंचाइयों को मुनि वर्द्धमान सागर जी प्राप्त करे 1974 देहली में चातुर्मास  तथा भगवान महावीर स्वामी के 2500 निर्वाण महोत्सव को सफल बनाने में उल्लेखनीय सहयोग रहा सन 1981 भीलवाड़ा चातुर्मास.


गुरुओं से मिलन


भीलवाड़ा के बाद संघ ने भींडर की ओर  विहार किया वहाँ पर तृतीय पट्टाधिश धर्म शिरोमणि आचार्य श्री धर्म सागर जी अभिनंदन ग्रंथ का लोकार्पण 3 दिवसीय कार्यक्रम के माध्यम से हुआअत्यधिक परिश्रम असाता कर्मो के उदय से मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी का कंठ अवरुद्ध। हो गया  संघ के साथ भींडर से धरियावद विहार किया  वहाँ पूर्व से विराजित दीक्षा गुरु आचार्य श्री धर्म सागर जी के श्री चरणों मे आचार्य भक्ति कर नमोस्तु कहा तब चमत्कार हुआ मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी की आवाज वापस प्राप्त हुईविभिन्न नगरो में कार्यक्रमों वर्षा योग पश्चात  सन 1986  माह दिसम्बर में आचार्य धर्म सागर जी संघ सहित सीकर पहुँचे


आचार्य श्री धर्म सागर जी के समाधिमरण पश्चात संघ के चतुर्थ पट्टाधिश आचार्य श्री अजित सागर जी बनाये गएसन 1987 में आचार्य श्री अजित सागर जी भींडर विराजित हैमुनि श्री वर्द्धमान सागर जी संघ के वरिष्ठ साधुओ सहित। अजमेर से भींडर की ओर विहार किया जैसे ही मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी ने आचार्य श्री अजित सागर जी की चरण वंदना  भक्ति कि मुनि श्री के नेत्रों के अश्रुओं ने  आचार्य श्री के चरणों का प्रक्षालन किया  वही आचार्य श्री के वात्सल्य  का झरना मुनि श्री  वर्द्धमान सागर जी के मस्तक पर प्रवाहित हो रहा थागुरु शिष्य का मिलन देख रहे भक्तों के नेत्रों से भी हर्ष के अश्रु चमक रहे थे जैसे लग रहा थाजैसे गुरु शिष्य का आगामी पट्टाभिषेक हो रहा हो


छोटे भाई पिता का निधन.


मुनि श्री वर्द्धमान सागर जी के गृहस्थ अवस्था के छोटे भाई श्री जयवन्त का निधन सन 1989 मेंअचानक हो जाता हैपुत्र के निधन से दुःखी पिता श्री कमल चंद जी बहु शोभा और पोते पारस को छोड़कर का निधन 15 दिन बाद हो जाता है


आचार्य श्री का आचार्य पद हेतु लिखित आदेश.


चतुर्थ पट्टाधिश आचार्य श्री अजित सागर जी 31 जनवरी 1990 को पत्र लिखकर  संघ के  अगले आचार्य श्री श्री वर्द्धमान सागर जी का आदेश देते है!आचार्य श्री अजित सागर जी की समाधि के बाद  24  जून 1990 आषाढ़ सुदी  दूज को  प्रथमाचार्य चारित्र चक्र वति आचार्य श्री शांति सागर जी की मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा का पंचम पट्टाधिश धोषित किया जाता है


श्री श्रवण बेलगोला महामस्तकाभिषेक जैन मठ श्रवण बेलगोला के भट्टारक श्री चारुकीर्ति जी स्वामी जी के निवेदन पर  आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी का गुजरात राजस्थान होते  हुए  मध्यप्रदेश विहार होता हैगृह त्याग के 26 वर्ष बाद तथा संयम पद के 24 वर्ष बाद जन्म भूमि आचार्य बन कर प्रथम प्रवेश मध्यप्रदेश सनावद निमाड़ के गौरव आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी का 26  वर्षों बाद प्रथम आगमन होता है तब 11 पिच्छी सहित 11 दिन के प्रवास के बाद महाराष्ट्र कर्नाटक होते हुए श्री श्रवण बेलगोला प्रवेश होता है.


3 बार महामस्तकाभिषेक में शामिल. चारित्र चक्र वति आचार्य श्री शांति सागर जी की परम्परा के पंचम पट्टाधिश होने के कारण वर्ष 1993 वर्ष 2006  तथा   वर्ष  2018   में विश्व प्रसिद्ध 1008 श्री बाहुबली भगवान का महामस्तकाभिषेक आपके प्रमुख सानिध्य निर्देशन में हुआ!आचार्य श्री शांति सागर जी की परम्परा के  प्रथम आचार्य जिन्होंने कर्नाटक प्रवेश किया आचार्य श्री शान्ति सागर जी की परम्परा में आचार्य श्री वीर सागर जी आचार्य श्री शिव सागर जी आचार्य श्री धर्म सागर जी आचार्य श्री अजित सागर जी का आचार्य पद प्राप्ति के बाद कर्नाटक महाराष्ट्र  तमिलनाडु आगमन नही हुआ मात्र पंचम पट्टाधिश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ही महाराष्ट्र कर्नाटक तमिलनाडु आये!


चातुर्मास


1950 में जन्मे तथा सन 1969 में दीक्षित श्रमण श्री ने अभी तक मुनि तथा आचार्य अवस्था मे 52 चातुर्मास देश के विभिन्न राज्यो सिद्ध  अतिशय क्षेत्रो। नगरो में किये हैसन 2021 का  53 वा वर्षायोग कोथली कर्नाटक में हो रहा है


पंच कंल्याणक


पंचम पट्टाधिश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने वर्ष 1990 से अभी तक अनेक पंच कंल्याणक करवाये हैअनेक लधु तथा मितव्यवता पूर्वक सादगी पूर्ण करा कर समाज के समक्ष आदर्श प्रस्तुत किया है दीक्षायें


वात्सल्य वारिधि आध्यात्मिक संत शिरोमणि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने निम्न  दीक्षाये दी है.


मुनि   दीक्षाये       30.


आर्यिका दीक्षाये   33.


ऐलक दीक्षा           1.


क्षुल्लक दीक्षाये।   13.


क्षुल्लिका दीक्षाये   10.


कुल दीक्षायें          87.


सल्लेखना समाधि


श्रेष्ठ निवापकचार्यआचार्य के सानिध्य में होने वाली उत्कृष्ट सल्लेखना से  साधु का जीव अगले दो भाव से अगले आठ के बीच सिद्धालय में विराजित होता है   यही कारण है कि समाधि सम्राट वात्सल्य बारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी के सानिध्य में सभी साधुओ की यही भावना होती है कि उनकी समाधि। उत्कृष्ट हो  आचार्य श्री ने अभी तक 59 से अधिक साधुओ  श्रावको श्राविकाओं की समाधि करवाई है


वर्ष 2020  में आचार्य श्री के शिष्य मुनि श्री देवकांत सागर जी ने यम सल्लेखना ली12 वे दिन आचार्य श्री द्वारा संबोधन किया गया इस वीडियो को जैन न्यूज उदयपुर के फेसबुक पेज पर एक करोड़ 76 लाख लोगों ने देखा  तथा 35000 पेंतीस हजार ने शेयर भी किया आचार्य श्री के ऐसे विश्व रिकार्ड सहज ही बन जाते है!


आचार्य पदारोहण.


वर्ष 1990 से वर्ष  2021 तक आपके 32 आचार्य पदारोहण कार्यक्रम मनाए गए हैआपको आचार्य श्री अजित सागर जी के लिखित आदेश  पत्र अनुसार 24  जून 1990 आषाढ़ सुदी  दूज को पारसोला राजस्थान में आचार्य पद  मिला है.


वर्ष 2021 का 32 वा आचार्य पदारोहण कोथली  में मनाया गयाकोई लौकिक प्रोजेक्ट मंदिर गिरी नही कोई संतवाद पंथ वाद ग्रंथवाद नहीपंचम पट्टाधि श आचार्य श्री के संघ में 30 वर्ष से 88 वर्ष तक के साधु है आप  सभी साधुओ का वात्सल्य से ध्यान रखते हैआपके  नाम पर किसी भी नगर क्षेत्र में कोई कीर्ति स्तंभ नहीकोई क्षेत्र गिरी नही है कुछ अपवाद छोड़कर आपके प्रवचन T V पर भी प्रसारित नही होते हैसमाज की राशि का सदुपयोग हो यही चिंतन रहता हैजहाँ जैसी परम्परा प्राचीन चली आ रही है या जो जहाँ की परम्परा है उसे यथावत रखने के पक्ष धर  हैहम हमारी छोड़ेंगे नही  दूसरे की बिगाड़ेंगे नहीसमाज मे समन्वय का इससे बड़ा उदाहरण नही हो सकता है! इसी कारण वर्तमान साधुओ में आपकी निर्विवाद छबि है वर्ष 2018 श्री बाहुबली भगवान के महामस्तकाभिषेक में 86 से अधिक आचार्य संघो के 35 से अधिक आचार्यों गणनी आर्यिका माताजी सहित 380 से अधिक साधुओ की उपस्तिथि साक्षात उदाहरण है. अनेक राजनेताओं ने दर्शन किये महामस्तकाभिषेक अवसर एवम अनेक नगरो में भारत देश के अनेक राष्ट्र पति जी  प्रधानमंत्री जी राज्यपाल  केंद्रीय मंत्री मुख्यमंत्री जी अनेकों ने आपसे आशीर्वाद एवम मार्गदर्शन प्राप्त कर धन्य हुए है. विदेशी एवम देश मे डॉक्युमेंट्री फ़िल्म वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी की एवम संघ की चर्या चतुर्थ कालीन चर्या हैसंघ में कोयले की अंगीठी तथा कुँए का पानी ही उपयोग होता हैपिंड शुद्धि  शुद्ध जल ग्रहण करने वाले भाग्य शाली को आहार  देने की पात्रता होती है  वही दर्शन  चरण स्पर्श चर्चा के लिए कोई भेदभाव नही है सहज दर्शन उपलब्ध है इसी कारण जो एक बार दर्शन करता है हमेशा के लिए भक्त हो जाता है.


पैर में  चक्र  का निशान.


श्री श्रवण बेलगोला के भट्टारकस्वामी जी ने आचार्य श्री के पैर में चक्र का निशान देख कर यही बताया कि यह शुभ संकेत है कि आचार्य श्री द्वारा बहुत धर्म प्रभावना प्रचार प्रसार होगानगर गौरवसनावद जो कि सिद्ध  क्षेत्र सिद्धवरकूट। उन  बावनगजा जी के निकट है आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी सनावद ही नही निमाड़ के पहले दिगम्बर साधु हुए  हैआज सनावद से आचार्य श्री  मुनिराज  आर्यिका माताजी क्षुल्लक जी सहित  16  साधु हैअनेक बाल ब्रह्मचारी  ब्रह्मचारणीअनेक संधो में  कि मैने सन 1969 में आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी की मुनि दीक्षा देखी हैतथा  के सनावद नगर से  6  निम्न साधु है1आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी2 मुनि श्री चारित्र सागर जी3 मुनि श्री श्रेष्ठ सागर जी4 आर्यिका श्री सुदृढ़ मति जी5 आर्यिका श्री महायश मति जी6 क्षुल्लक श्री मोती सागर जी.


अनेक उपाधियां.


पंचम पट्टाधिश आचार्य श्री कोसमाज द्वारा अनेक उपाधियांदी गई। हैवात्सल्य  वारिधि  आध्यात्मिक संत शिरोमणि   राष्ट्र गौरव तपोनिधि  परम्परा के परम्पराचार्य जिन धर्म प्रभावकसमाधि सम्राट  कुशल संघ संचालकसाभार आभारइस लेख को वात्सल्य वारिधि ग्रंथ के आधार पर तैयार किया गया ह!वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी के पावन युगल श्री  चरणों मे कोटिशःनमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु



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